जलवायु परिवर्तन से बदल गई प्रवासी पक्षियों की दिनचर्या, प्रजनन क्षमता पर पड़ रहा बुरा असर
नई दिल्ली। जलवायु परिवर्तन का प्रभाव केवल इंसनों पर ही नहीं बल्कि पक्षियों पर भी पड़ रहा है। उनकी प्रजनन क्षमता भी प्रभावित हो रही है। यह बात विभिन्न पक्षी विज्ञानियों के द्वारा किए गए शोध में सामने आई है। इस बात की जानकारी गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार के पर्यावरण विज्ञान विभाग के अंतरराष्ट्रीय पक्षी विज्ञानी प्रोफेसर डा दिनेश चंद्र भट्ट ने दी।उन्होंने बताया कि 40 हजार की तादाद में राजहंस केंद्रीय एवं दक्षिणी एशिया में अलग-अलग तालाबों और झीलों में रहते हैं। जलवायु में लगातार बदलाव के कारण इनकी तादाद कम हुई है। प्रोफेसर भट्ट के अनुसार विश्व के कई पक्षी विज्ञानी राजहंस पक्षियों की दिनचर्या और उनके जीवन में आ रहे उतार-चढ़ाव और उनके विशिष्ट शरीर की जैविकता पर शोध कर रहे हैं।
कुछ सालों में राजहंस पक्षियों के प्रवास की तिथि में परिवर्तन हुआ है और इस साल तो यह ज्यादा देखने को मिल रहा है। प्रोफेसर भट्ट ने बताया की भारत में आने वाले राजहंस मंगोलिया, चीन, तिब्बत के पठार तथा कजाकिस्तान के हिस्सों से हिमालय पर्वत की एवरेस्ट एवं अन्य ऊंची पर्वत शृंखलाओं को पार कर भारत भूमि पर शीतकालीन प्रवास के लिए अक्तूबर महीने में आते रहे है।ब्रिटेन, भारत एवं अन्य देशों के विज्ञानियों की संयुक्त टीम ने पाया है कि राजहंस 53 से 55 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से अपनी उड़ान का रास्ता तय करते हैं। ये उत्तराखंड के देहरादून, हरिद्वार, ऋषिकेश तथा अन्य पर्वतीय और मैदानी क्षेत्रों में पहुंचते हैं और इन स्थानों पर कुछ दिन ठहरकर दक्षिण भारत के प्रदेशों की यात्रा में जाते हैं। वहां वे मार्च तक रुकते हैं और फिर उत्तराखंड होते हुए लौट जाते हैं।
इस साल राजहंस पक्षी अपने पहले पड़ाव देहरादून, हरिद्वार और ऋषिकेश के क्षेत्र में पिछले साल मध्य अक्तूबर के महीने में दिखाई नहीं दिए और इस बार दो महीने विलंब से जनवरी महीने के मध्य में दिखाई दिए। गंगा के तट पर इस बार इनकी तादाद 20 और 25 के बीच ही दिखाई दी जबकि पिछले बरस 50 से 60 की संख्या में हरिद्वार में देखे गए थे।
इसके अलावा राजहंस पक्षी देहरादून के आसन बांध और ऋषिकेश के गंगा के पशुलोक बैराज के क्षेत्र में दिखाई देते हैं। इन तीनों क्षेत्रों में अभी तक केवल 40 से 50 के बीच में ही देखे गए हैं पक्षी विज्ञानी राजहंस पक्षियों के आने जाने के क्रम में बदलाव और उनकी घटती तादाद की वजह वायुमंडल में लगातार हो रही परिवर्तन को मानते हैं। पक्षी विज्ञानियों के अनुसार इस बार हिमालय तथा अन्य देशों में बर्फबारी देरी से शुरू हुई है। इस वजह से उनके आने के क्रम में बदलाव हुआ है और इनकी तादाद भी कम हुई है। जो पक्षी वैज्ञानिकों के लिए एक चिंता और शोध का विषय है।