आज मतदान का महापर्व- प्रदेश और राष्ट्रहित में अपने मत का उपयोग अवश्य करें
डॉ. राघवेंद्र शर्मा
आज मतदान का महापर्व है। वह महत्वपूर्ण पर्व जो 5 साल में एक बार आता है। साथ में यह सहूलियत भी लाता है कि जिसे चाहो चुन लो, यह अधिकार आपके पास सुरक्षित है। तब सबसे बड़ा यक्ष प्रश्न यह होता है कि हम अपना मत किसे दें। क्योंकि सभी राजनीतिक दलों के बढ़-चढ़कर दावे सामने है। सबके द्वारा परोसे गए प्रलोभन भी मन मस्तिष्क को आकर्षित करते हैं। तब आवश्यक हो जाता है कि हम ईश्वर द्वारा प्रदत्त अपने उस विवेक का इस्तेमाल करें जो संपूर्ण प्रकृति में केवल और केवल मनुष्य को ही सुलभ है। हम एकाग्र चित्त होकर चिंतन मनन करें कि वह कौन लोग हैं, अथवा वह कौन संगठन है जो प्रदेश समेत समूचे देश की एकता, अखंडता, संप्रभुता और उसकी वैश्विक प्रतिष्ठा को बचाए रखने तथा उसे बढ़ाने में समर्थ दिखाई देते हैं।
हमें इसलिए भी बड़ा सोचकर मतदान करना है, क्योंकि देश है तो प्रदेश है और प्रदेश है तो हम हैं। सत्ता महत्वपूर्ण नहीं होती, जरूरी होता है कि लोकतंत्र द्वारा प्रदत्त अधिकारों का इस्तेमाल कर किस प्रकार अधिक से अधिक जन कल्याण किया जा सकता है। एक ऐसी सरकार के लिए मतदान करें जो स्वयं को शासक और नागरिकों को शासित की भेद भरी दृष्टि के साथ शासन ना करे, बल्कि वह परिवारवाद, वंशवाद से अलग हटकर देश और प्रदेश की जनता को ही अपना परिवार मानकर चले।
हम ऐसे जनप्रतिनिधि और जनसेवक चुनें जो जन समुदाय के बीच उपस्थित महिलाओं में अपनी मां, बहन और बेटी की छवि निहारते हों। बुजुर्गों में जिसे अपने अभिभावक, युवाओं में अग्रज अथवा अनुज और बालकों में अपनी संतति नजर आती हो। जब संगठन की दृष्टि से जनप्रतिनिधि चुनने की चुनौती सामने हो तब हमारी जिम्मेदारी और अधिक बढ़ जाती है। क्योंकि वर्तमान भारत वैश्विक नेतृत्व की भूमिका में स्थापित हो चला है। ऐसे में हमें यह सुनिश्चित करना होगा की देश और प्रदेश की कमान उन शक्तिशाली हाथों में ही रहे, जो भारत के इस सामर्थ्य को और अधिक मजबूती प्रदान करने में सक्षम हों।
स्मरण रहे – व्यक्तियों से परिवार, परिवारों से समुदाय, समुदायों से प्रांत और प्रांतों से मिलकर देश बनते हैं। ऐसे में यह भी विचार करने योग्य विषय है कि क्या हम जिन जनप्रतिनिधियों अथवा संगठन को सत्ता में बिठाने जा रहे हैं, क्या वो भविष्य में देश के साथ विकास और सुरक्षा के क्षेत्र में कदम से कदम मिलाकर चल सकेंगे? क्योंकि वैश्विक प्रतिष्ठा में और अधिक सामर्थ्य प्राप्त करने हेतु देश और प्रांत के बीच राजनीतिक संतुलन की महती आवश्यकता होती है। यह दोनों ही पक्ष जब केवल देश को ध्यान में रखकर अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं तब देश एक निश्चित दिशा की ओर अग्रसर हो पता है। तभी यह सुनिश्चितता प्राप्त की जा सकती है कि अंततः हम अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफल होने जा रहे हैं।
जिन चार राज्यों में चुनाव संपन्न होने जा रहे हैं उनमें से एक छत्तीसगढ़ धान का कटोरा है। तो दूसरा मध्य प्रदेश भारत का हृदय प्रदेश होने का गौरव रखता है। जबकि तीसरा राजस्थान शौर्य और बलिदान की भूमि है। इसके बाद चौथा राज्य तेलंगाना नवाकार लेकर विकास की नई बुलंदियों को छूने हेतु लालायित है। इन सभी राज्यों के मतदाता जब मतदान करने पहुंचे तो एक बार यह विचार अवश्य करें कि हम भौगोलिक दृष्टि से भले ही भिन्न-भिन्न प्रांतों के रूप में यत्र तत्र स्थापित हों। किंतु सत्यता यही है कि सनातन काल से ही हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुंबकम् की रही है। यानि हम इस वसुधा पर अवस्थित प्रत्येक मनुष्य को अपना परिजन, कुटुंबी जन मानने वाले भारतीय हैं। अतः देश और प्रदेश को समर्पित व्यक्तियों को ही अपने नीति नियंता के रूप में चुनें। उन्हें चुनें जो भारत में एक बार फिर रामराज की परिकल्पना को साकार करने का सद्विचार अपने हृदय में अक्षुण्ण बनाए हुए हैं। आप सभी को लोकतंत्र के महापर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। प्रदेश और राष्ट्रहित में अपने मत का इस्तेमाल अवश्य करें।
लेखक- स्वतंत्र पत्रकार है