सनातन हिन्दू धर्म में हवन का ये है महत्व
उज्जैन । आपने देखा होगा कि जब भी हवन में आहुति डाली जाती है, तो हर बार पंडित जी स्वाहा बोलने के लिए कहते हैं। क्या आपने सोचा है कि आखिर इस शब्द का मतलब क्या होता है, जो इसी का इस्तेमाल किया जाता है। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म कोरा पर लोगों ने इस सवाल का जवाब जानना चाहा तो सबने अलग-अलग वजह बताई। जो जवाब यूज़र्स ने दिए उसके मुताबिक स्वाहा का तात्पर्य है देवों का आह्वान करना। साधारण भाषा में समझें तो यज्ञ की अग्नि में डाली जाने वाली आहुति को देवताओं तक पहुंचाने के लिए ‘स्वाहा’ शब्द बोलकर उन्हें निमंत्रण दिया जाता है।
स्वाहा को देवों को हवि प्रदान करने का मंत्र माना जाता है। कहते हैं कि स्वाहा जोड़कर हवि देने से देवताओं को हवि प्राप्त होती है। इतना ही नहीं अगर मान्यताओं की बात करें तो स्वाहा को अग्नि की शक्ति माना जाता है। ये अग्निभार्या यानि अग्निदेव की पत्नी मानी जाती हैं और जो भी चीज़ें अग्नि में डाली जाती हैं, वो इन्हीं से होते हुए देवों तक पहुंचती हैं।स्वाहा को कुछ जगहों पर प्रजापति दक्ष की पुत्री भी माना गया है। अगर सामान्य तौर पर देखें तो स्वाहा का अर्थ विन्यास करने पर पता चलता है कि ये स्व अर्थात अपना और हा अर्था त्याग से बना है। अपने अहंकार या धन का त्याग करना भी स्वाहा का अर्थ हो सकता है।
एक प्रकार की समर्पण की भावना को दिखाने के लिए स्वाहा शब्द का प्रयोग अग्नि में कुछ भी डालने के वक्त किया जाता है। बता दें कि हमारे आसपास बहुत से ऐसे शब्द बोले जाते हैं, जिन्हें इस्तेमाल तो रोज़ाना ही किया जाता है लेकिन कभी ठहरकर उसके बारे में सोचा नहीं है। खासतौर पर अगर धर्म और पूजा से जुड़े शब्दों की बात करें तो लोग जैसा पंडित जी बोलते हैं, वैसा ही दोहराते जाते हैं। कभी इसका मतलब जानने की कोशिश नहीं की जाती है।