मोदी-जयशंकर जोड़ी की अग्निपरीक्षा, फांसी से कैसे बचेंगे देश के 8 पूर्व नौ सैनिक
नई दिल्ली: चीन से लेकर कनाडा तक। रूस-यूक्रेन युद्ध में पश्चिमी देशों से लेकर अमेरिका तक को दो-टूक सुनाने वाले भारत के लिए खाड़ी देश कतर ने एक ऐसी मुश्किल खड़ी कर दी है जो पीएम नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) और विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) के लिए कठिन परीक्षा की घड़ी है। हाल के वर्षों में भारत ने दुनिया में जो रसूख हासिल किया है वो इसकी ताकत को दिखाता है। लेकिन कतर में 8 पूर्व भारतीय नौसैनिकों को फांसी की सजा की खबर ने भारतीय राजनय को को मुश्किल में डाल दिया है। विपक्षी दल कांग्रेस ने कतर के इस फैसले के बाद केंद्र सरकार को निशाने पर ले लिया है।
मोदी-जयशंकर की जोड़ी की अग्निपरीक्षा
दरअसल, कतर में गुरुवार को भारत के पूर्व 8 नौसैनिकों को मौत की सजा सुनाई गई है। सजा पाए लोगों में पूर्व भारतीय नौसेना कर्मी कैप्टन सौरभ वशिष्ठ, कमांडर पूर्णेंदु तिवारी, कैप्टन बीरेंद्र कुमार वर्मा, कमांडर सुगुनाकर पकाला, कमांडर संजीव गुप्ता, कमांडर अमित नागपाल और नाविक रागेश शामिल हैं। भारत इस मसले को कतर के सामने भी उठाया है।अबतक कूटनीति में पूरी दुनिया में भारत का झंडा गाड़ने वाले जयशंकर के लिए खाड़ी देश कतर ने एक ऐसा टास्क दे दिया है जो काफी मुश्किल भरा होगा। कतर शरिया कानून के तहत शासन करता है। भारत ने शुरुआत में तो इस मामले को कतर के सामने उठाया था और उन्हें बेदाग बताया था। लेकिन कतर की अदालत के फैसले के बाद भारत के लिए हालात बदल गए हैं।
पीएम मोदी अब क्या करेंगे?
जी-20 सम्मेलन में जब यूक्रेन और रूस युद्ध को लेकर ऐसा अंदेशा जताया जा रहा था कि नई दिल्ली में हुए इस बैठक में कोई घोषणापत्र नहीं आ पाएगा। तब पीएम मोदी ने अपने निजी रिश्तों का इस्तेमाल करते हुए अमेरिका समेत सभी देशों को मनाया था और जी-20 सम्मेलन में सर्वसम्मति से घोषणापत्र जारी हुआ था। पूरी दुनिया में भारत के इस पहल की तारीफ हुई थी और खुद भी कई बार पीएम मोदी देश की इस उपलब्धि का जिक्र कर चुके हैं। लेकिन इस बार हालात कुछ इतर हैं। सऊदी अरब और यूएई के साथ भारत के रिश्ते तो बेहतर हैं लेकिन कतर के साथ भारत के रिश्ते गर्मजोशी वाले नहीं है। पीएम मोदी देश को इस मुश्किल घड़ी से निकालने के लिए कौन सा कूटनीतिक रुख अपनाएंगे उसपर सबकी नजरें हैं।
जयशंकर के लिए सबसे मुश्किल घड़ी
भारतीय कूटनीति के ‘हनुमान’ के रूप में उभरे विदेश मंत्री जयशंकर के लिए कतर का मामला इतना आसान नहीं रहने वाला है। कतर के साथ भारत के रिश्ते तो ठीक हैं लेकिन ये नहीं भूलना होगा कि कतर पर आतंकी संगठनों के मदद के भी आरोप लगते रहे हैं। कहा जाता है कि कतर पूरी दुनिया में आतंकवाद का सबसे बड़ा समर्थक भी है। यही नहीं, हमास से भी कतर के मधुर रिश्ते रहे हैं। कतर के पैसे के जरिए ही हमास इजरायल में हमले करते रहता है। लेकिन अभी तक इस देश के खिलाफ दुनिया में कोई आवाज नहीं उठी है। तो फिर जयशंकर कैसे इस मुश्किल स्थिति से निकलकर विजयी बनते हैं ये देखना होगा।
भारत करेगा बैकडोर टॉक?
वैसे कूटनीति में तो हर देश अपने बैकडोर चैनल हमेशा खुला रखते हैं। हो सकता है कि भारत अपने संपर्क के जरिए कतर से मध्यस्थता की कोशिश में जुट गया होगा। लेकिन जैसाकि ऊपर इस बात पर चर्चा हो चुकी है कि कतर के साथ भारत के रिश्ते वैसे नहीं है जिससे सबकुछ आसानी से हो पाए। ऐसे में भारत कूटनीति का कौन सा रास्ता अपनाएगा और कैसे इस मुसीबत से निकलेगा ये एक अहम सवाल है। अभी तक हर मोर्चे पर मोदी के ‘हनुमान’ बने जयशंकर एक्टिव तो हो गए हैं लेकिन अभीतक के माहौल से लग रहा है कि भारत को सफलता नहीं मिली है।
पूर्व नौसैनिकों को कैसे मिलेगी राहत?
चूंकि कतर की अदालत ने पूर्व नौसैनिकों को फांसी की सजा दे दी है तो अदालत से उन्हें कोई राहत नहीं मिलने वाली है। ऐसे में कतर के अमीर तमीम बिन अहमद अल थानी के पास ही इन भारतीय पूर्व नौसैनिकों को माफी देने का अधिकार है। कतर में दो मौकों पर यहां के अमीर कैदियों को माफी देते हैं। पहला, रमजान के मौके पर। दूसरा कतर के राष्ट्रीय दिवस को। चूंकि रमजान का मौका तो निकल चुका है। ऐसे में अब 18 दिसंबर को कतर के राष्ट्रीय दिवस के मौके पर भारतीय नागरिकों के लिए माफी का मौका है। यानी घड़ी की टिक-टिक बहुत तेजी के साथ आगे बढ़ रही है। भारत को कूटनीतिक रिश्तों के अपने सारे घोड़े खोलने होंगे तभी पूर्व नौसैनिकों को राहत मिल सकती है।