पिछली बार तो मार लिया था चुनाव मैदान, इस बार जरा मुश्किल

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पिछली बार मप्र विधानसभा चुनाव में जीते भाजपा के 95, कांग्रेस के 91, निर्दलीय चार, बसपा के दो और सपा का एक प्रत्याशी फ‍िर चुनाव मैदान में।

पिछली बार तो मार लिया था चुनाव मैदान, इस बार जरा मुश्किल है
टीम नईदुनिया, इंदौर । मध्‍य प्रदेश में इस बार 193 वैसे प्रत्याशी चुनाव मैदान में ताल ठोक रहे हैं, जिन्होंने पिछली बार के विधानसभा चुनाव में मैदान मार लिया था, जीत जिनके हिस्से आई थी। इनमें भाजपा के 95, कांग्रेस के 91, निर्दलीय चार, बसपा के दो और सपा के एक प्रत्याशी हैं।

वक्त गुजरने के साथ जीत का धुन तो उनका नहीं बदला, मगर इस जीत को फिर से हासिल करने के लिए उनकी मेहनत बढ़ गई है। किसी ने पार्टी बदल ली तो किसी के सामने बगावत चुनौती दे रही है। ऐसे में पब्लिक तो पब्लिक, गाहे ब गाहे इन ‘योद्धाओं” की जुबां से भी निकल ही आता है कि इस बार तो बड़ी मुश्किल है भाया…! दरअसल इस बार “होनहार” पूरी तरह खबरदार हैं। आइए देखते हैं कहां क्या है आलम…

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उज्जैन जिले की सात सीटों से छह प्रत्याशी ऐसे हैं, जो पिछली बार जीत गए थे। इनमें चार कांग्रेस और दो भाजपा उम्मीदवार हैं। सभी को कांटे की टक्कर मिल रही है। धार से भाजपा विधायक नीना वर्मा इस बार भी मैदान में हैं, लेकिन भाजपा के ही जिलाध्यक्ष रह चुके राजीव यादव ने बगावत कर दी है। इस कारण उनकी मेहनत बढ़ गई है। खरगोन की छह सीटों पर मौजूदा विधायक मैदान में हैं। इनमें पांच कांग्रेस और एक कांग्रेस समर्थित हैं।

पिछली बार सत्ता विरोधी लहर से सभी सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज कर ली थी, इस बार तस्वीर बदली हुई है। शाजापुर की तीनों सीटों में तीन प्रत्याशी ऐसे हैं, जो पिछला चुनाव जीते थे। इनमें दो कांग्रेस और एक भाजपा के हैं। झाबुआ के थांदला में भाजपा के बागी तानसिंह निर्दलीय डटे हुए हैं। झाबुआ में ही भाजपा के बागी धनसिंह बारिया भी लड़ रहे हैं। बुरहानपुर से सुरेंद्र सिंह दूसरी बार मैदान में हैं। पिछले चुनाव में वे निर्दलीय जीत जीते थे।भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा 10 नवंबर को जारी करेंगे पार्टी का घोषणा पत्र

इस बार कांग्रेस से अधिकृत हैं। कांग्रेस के बागी व एआइएमआइएम के टिकट पर लड़ रहे नफीस मंशा खान उनके लिए खतरा बने हुए हैं। भाजपा की अर्चना चिटनीस फिर इसी सीट से चुनाव मैदान में हैं। बागी हर्षवर्धन सिंह चौहान समीकरण बिगाड़ सकते हैं। नेपानगर से भाजपा ने पूर्व विधायक मंजू दादू को प्रत्याशी बनाया है। बागी रतिलाल चिल्लात्रे उनके सामने हैं। नीमच में तीनों सीटों पर भाजपा ने विधायकों को ही उतारा है।

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इनमें से जावद में भाजपा की मुश्किलें निर्दलीय प्रत्याशी ने बढ़ा दी है। देवास में 1990 से भाजपा का कब्जा है, लेकिन इस बार चुनौती बढ़ी है। खातेगांव में भाजपा के सामने कांग्रेस में गए पूर्व मंत्री की चुनौती है और ज्यादा चिंता अपनों से निपटने की है। रतलाम में जावरा पर भाजपा के डा. राजेंद्र पांडेय 500 मतों से जीते थे, इस बार करणी सेना परिवार के जीवन सिंह राजपूत ने निर्दलीय मैदान में आकर दोनों दलों के समीकरण गड़बड़ा दिए हैं। यही हाल आलोट में कांग्रेस के मनोज चावला का है। रतलाम ग्रामीण में भाजपा के मथुरालाल डामोर को कांग्रेस के बागी जयस प्रत्याशी डा. अभय ओहरी की वजह से फायदा होगा, यहां कांग्रेस के प्रत्याशी लक्ष्मणसिंह डिंडोर को स्थानीय-बाहरी मुद्दे का सामना करना पड़ रहा है। मंदसौर के मल्हारगढ़ में कांग्रेस के बागी श्यामलाल जोकचंद ने भाजपा-कांग्रेस दोनों की धड़कने बढ़ा रखी हैं।

अधिकतर महत्वपूर्ण सीटों पर पुराने चेहरे फिर सामने हैं। चुनौतीपूर्ण सीटों की बात करें तो नर्मदापुरम में भाजपा के पुराने चेहरे सीताशरण शर्मा के सामने चुनौती बड़ी है, उन्हें न केवल कांग्रेस में गए अपने भाई सीताशरण शर्मा का सामना करना है, बल्कि भाजपा से ही असंतुष्ट भगवती चौरे की चुनौती भी सामने है। इसी तरह की चुनौती राजधानी में दक्षिण पश्चिम विधानसभा से 2018 में जीतने वाले कांग्रेस के पीसी शर्मा और मध्य क्षेत्र विधायक आरिफ मसूद के सामने है। दोनों के सामने क्रमश: भगवान दास सबनानी और ध्रुवनारायण सिंह के रूप में चुनौती है। रायसेन के भोजपुर से मंत्री प्रभुराम चौधरी तो सागर में मंत्री भूपेंद्र सिंह, गोविंद सिंह और गोपाल भार्गव फिर से मैदान में हैं, जिनके सामने अपने कद के अनुरूप विकास का रिपोर्ट कार्ड पेश करने की चुनौती है। उधर, सागर के रहली से आठ बार के विधायक और नौवीं बार चुनाव लड़ रहे गोपाल भार्गव अपनी जीत के प्रति आश्वस्त हैं। भार्गव चुनाव प्रचार के लिए बाहर नहीं निकल रहे हैं। उनका कहना है कि वे पांच साल जनता से मिलते रहे हैं, चुनाव के समय मिलना दिखावा है, इसकी जरूरत नहीं है।

ग्वालियर-चंबल

ग्वालियर की दक्षिण सीट से कांग्रेस से प्रवीण पाठक महज 121 वोटों से जीते थे। बड़ी वजह भाजपा के उम्मीदवार नारायण सिंह के खिलाफ बागी पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता को 31 हजार से अधिक मतों का मिलना था। इस बार ऐसा नहीं है। ग्वालियर ग्रामीण से भाजपा उम्मीदवार और राज्यमंत्री भारत सिंह कुशवाह के खिलाफ कांग्रेस उम्मीदवार साहब सिंह गुर्जर मैदान में है। साहब सिंह ने पिछला चुनाव बसपा से लड़ा था और वे दूसरे नंबर रहे थे। उप चुनाव वे महज डेढ़ हजार वोटों से हारे थे। कांग्रेस का प्रत्याशी तीसरे नंबर पर था। इस बार वे पूरे दमखम से लड़ रहे हैं।

डबरा से इमरती देवी ने 2018 का चुनाव कांग्रेस से जीता था, 2020 में भाजपा से लड़ीं और समधी कांग्रेस के उम्मीदवार सुरेश राजे से हार गईं। भाजपा ने फिर उन्हें उम्मीदवार बनाया है। इमरती के लिए प्रदर्शन दोहराना मशक्कत भरा होगा। वीआइपी सीटों में शुमार दतिया से गृहमंत्री डा. नरोत्तम मिश्रा 2656 वोटों से जीते थे, इस बार उनके सामने चिर प्रतिद्वंद्वी राजेंद्र भारती मैदान में हैं। कड़ा मुकाबला इस बार भी है। भिंड की अटेर सीट पर मंत्री अरविंद भदौरिया के सामने हेमंत कटारे हैं। पिछली जीत पांच हजार वोटों से हुई थी। बता दें कि इस सीट पर हर बार विधायक बदलता है।

महाकोशल-विंध्य

जबलपुर की पूर्व सीट से भाजपा प्रत्याशी अंचल सोनकर पिछली बार कांग्रेस प्रत्याशी लखन घनघोरिया से पराजित हो गए थे, लेकिन पार्टी ने पुन: टिकट दिया है। मुस्लिम मतदाताओं की अच्छी खासी संख्या और पार्टी के विभीषण अंचल की जीत के आगे हैं। सिवनी की केवलारी सीट से भाजपा प्रत्याशी राकेश पाल सिंह हैं। कांग्रेस से रजनीश सिंह ठाकुर पिछले चुनाव में पराजित हो गए थे, इसके बाद उन्होंने निरंतर मैदानी क्षेत्र में कार्य किया, इसलिए चुनौतियां बढ़ी हैं। दमोह के जबेरा से भाजपा विधायक धर्मेंद्र सिंह लोधी के समक्ष भाजपा के जिला उपाध्यक्ष रहे विनोद राय गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से चुनौती पेश कर रहे हैं।

डिंडौरी से कांग्रेस विधायक ओमकार सिंह मरकाम को इस बार जिला पंचायत अध्यक्ष रहे रुद्रेश परस्ते के निर्दलीय चुनाव लड़ने से चुनौती मिल रही है। कटनी की मुड़वारा, विजयराघवगढ़ और बहोरीबंद सीट से भाजपा ने तीनों विधायकों को टिकट दिया है। मुड़वारा में संदीप जायसवाल को उम्मीदवार बनाने से कई पार्टी नेता नाराज हैं। वहीं, बहोरीबंद में विधायक प्रणय पांडेय के सामने भाजपा छोड़कर कांग्रेस में गए पूर्व जनपद अध्यक्ष शंकर महतो का अब समाजवादी पार्टी से मैदान में उतरना मुश्किल खड़ी कर रहा है।

विजयराघवगढ़ में भाजपा के संजय पाठक के सामने कांग्रेस के युवा प्रत्याशी नीरज सिंह बघेल हैं। पूर्व विधायक ध्रुवप्रताप सिंह के भाजपा छोड़कर कांग्रेस में जाने से संजय पाठक की परेशानी बढ़ी हुई है। कांग्रेस ने बड़वारा से विधायक विजय राघवेन्द्र सिंह को प्रत्याशी बनाया है, भाजपा ने उनके ही परिवार के धीरेन्द्र सिंह को उम्मीदवार बना दिया है। मउगंज की देवतालाब सीट से भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम मैदान में हैं, इनका भतीजा पद्मेश गौतम कांग्रेस से मैदान में है।

रीवा की सिमरिया सीट से भाजपा विधायक केपी त्रिपाठी को कांग्रेस के प्रत्याशी अभय मिश्रा टक्कर दे रहे हैं। वह भाजपा से बगावत कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं। गुढ़ से नागेंद्र सिंह भाजपा प्रत्याशी हैं, यहां से पिछले चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी कपिध्वज सिंह दूसरे स्थान पर थे, इन्हें कांग्रेस ने टिकट दे दिया है। सतना से कांग्रेस ने अपने विधायक सिद्धार्थ कुशवाहा पर भरोसा जताया है, लेकिन इस बार उनका मुकाबला सतना से चार बार के सांसद गणेश सिंह से है।

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