अपने ऑफिस में कितने घंटे हों काम के घंटे, कार्यावधि पर फिर विवाद तेज

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नई दिल्ली । हाल ही में इफोसिस के मेंटॉर नारायण मूर्ति ने कहा कि भारत में युवाओं को एक सप्ताह में कम से कम 70 घंटे काम करना चाहिए। मूर्ति के इस बयान ने एक बार फिर से इस बहस को छेड़ दिया है कि आखिर ऑफिस में कितने घंटे काम करना मुफीद या उचित है। एक कर्माचारी को कितने घंटे काम करना चाहिए यह कई कारकों पर निर्भर करता है जिसमें काम के प्रकार से लेकर सेहत और काम की प्रभावोत्पादकता जैसे कई कारक तक शामिल हैं।

गौरतलब है कि आज की दुनिया में लोगों के लिए कार्य (ऑफिस का कार्य) ही सब कुछ हो गया है। लेकिन कई बार देखा गया है कि अधिकारी, टीम लीडर या बॉस अमूमन अपने अधीनस्थों से संतुष्ट नहीं रहते हैं। लक्ष्य का दवाब उन्हें इस बात पर विचार करने पर मजबूर कर रहा है कि कर्मचारियों के कार्यावधि यानि हफ्ते के घंटों में इजाफा किया जाना चाहिए।

देखा गया है कि कई बार लक्ष्य में पीछे होने के कारण कर्मचारियों को अनाधिकारिक तौर पर अपनी कार्यावधि बढ़ानी पड़ती है। फिलहाल दुनिया भर की कंपनियों में औपचारिक 9 घंटे प्रतिदिन की कार्यावधि है जिससे की पांच दिन के हफ्ते में ये घंटे 45 घंटे हो जाते हैं। लेकिन ये घंटे प्रभावी तौर पर 40 यानी 8 घंटे प्रति दिन ही माने जाते हैं।

यह 8 घंटे काम करने की संस्कृति यूं ही पैदा नहीं हुई बल्कि औद्योगिक क्रांति के समय जब कंपनियां अपना उत्पादन बढ़ाने का प्रयास कर रही थीं, तब तो मजदूरों से 10 -16 घंटे प्रतिदिन कार्य कराने का चलन बन चुका था। 19वीं सदी के अंत 8 घंटे दिन की कार्यावधि करने की मांग जोर पकड़ने लगी थी।

1914 में हेनरी फोर्ड ने अपने कर्माचरियों के लिए दिन के काम करने के घंटे 8 घंटे कर दिए और साथ ही उनके वेतन तक बढ़ा दिया। इसका नतीजा उम्मीद के खिलाफ बहुत ही शानदार रहा और दूसरी कंपनियों ने इसे अपना लिया और 8 घंटा प्रति दिन काम करना एक नियम सा बन गया था। इसके बाद से 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध में तो और अभी कई अध्ययन और शोध हुए और कर्मचारियों को कारगरता पर विचार होने लगा कार्यसंस्कृति में बदालव देखने को मिले लेकिन कार्यावधि का स्वरूप अमूमन वही रहा।

लेकिन कई बार देखा जाता है कि लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कुछ दिनों के कंपिनियों में कर्मचारियों के कार्यावधि अस्थायी तौर पर बढ़ा दी जाती है। अगर आपको लगता है कि दिन में 12-14 घंटे काम करने का आपकी सेहत पर बुरा असर नहीं होगा तो आप गलत है। ज्यादा काम करने से हृदय संबंधी समस्याओं के बढ़ने का जोखिम 60 फीसदी बढ़ जाता है।

साथ ही मोटापा, डायबिटीज जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। इसके लिए 8 घंटे काम, आठ घंटे नींद और आठ घंटे की निजी जीवन के तौर पर एक संतुलित जीवनचर्चा के नियम केरूप में प्रचलित है। पिछले कुछ दशकों से देखने में आया है कि कार्यावधि से अधिक अहम कार्य की प्रभावोत्पदाकता अधिक मायने रखती है। साथ ही समय प्रबंधन और कार्य प्रबंधन पर अधिक जोर दिया जाने लगा है।

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