डेंगू के डंक की जद में दुनिया की आधी आबादी

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– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

देश-दुनिया में डेंगू के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इस साल के देश के आंकड़ों की ही बात करें तो डेंगू से मरने वालों की संख्या लगभग 100 के आंकड़े को छू रही है। अकेले केरल में डेंगू के कारण 38 लोगों की मौत की सूचना है। डेंगू की गंभीरता को देखते हुए केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया ने दो दिन पहले उच्चस्तरीय बैठक कर आवश्यक निर्देश दिए हैं। दरअसल हमारे देश में डेंगू का पीक सीजन जुलाई से अक्टूबर तक रहता है। वैसे, डेंगू अब किसी देेश की सीमा में बंधा नहीं है और दुनिया के 129 देशों या यों कहें कि दुनिया की आधी आबादी के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है। देश-दुनिया की सरकारों और विश्व स्वास्थ्य संगठन के सामने डेंगू बड़ी चुनौती बनकर उभरा है।

यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट अतिश्योक्तिपूर्ण मानें तब भी इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि डेंगू आज और आने वाले समय के लिए दुनिया के देशों के लिए गंभीर समस्या बनता जा रहा है। दुनिया के 129 देश डेंगू की गिरफ्त में आ चुके हैं तो इससे भी मतभेद नहीं हो सकता कि दुनिया के देशों में होने वाली बीमारियों में से 70 फीसदी बीमारी का केन्द्र एशिया महाद्वीप बना हुआ है। डेंगू दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से दुनिया के देशों को अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है। डब्लूएचओ की मानें तो आज दुनिया की आधी आबादी डेंगू संभावित क्षेत्र के दायरे में आ गई है। डेंगू की गंभीरता को इसी से समझा जा सकता है कि पेरू के अधिकांश इलाकों में डेंगू के कारण इमरजेंसी लगाई जा चुकी है तो अमेरिका जैसा विकसित देश भी इसके दायरे से बाहर नहीं हैं। एक मोटे अनुमान के अनुसार भारत में ही डेंगू के औसतन 600 मामले प्रतिदिन आ रहे हैं।

डेंगू एडीज प्रजाति के मच्छर से फैलता है। डेंगू के मच्छर के बारे में यह माना जाता है कि नमी वाले क्षेत्र खासतौर से पानी एकत्रित होने वाले स्थानों पर यह तेजी से फैलता है। सुबह के समय यह अधिक सक्रिय रहता है। यह भी माना जाता है कि डेंगू होने का दो-तीन दिन के बुखार में जांच के दौरान तो पता ही नहीं चलता, वहीं तीन-चार दिन तक लगातार बुखार के बाद जांच कराने पर डेंगू का पता चलता है। यह भी सही है कि डेंगू प्रभावित लोग एक से दो सप्ताह में ठीक भी हो जाते हैं। पर कमजोर इम्यूनिटी वाले या डेंगू के गंभीर होने की स्थिति में तेजी से प्लेटरेट्स कम होने लगती हैं और यहां तक कि शरीर के दूसरे ऑरगन्स को प्रभावित करती हुई मौत का कारण भी बन जाती है। हालांकि डेंगू के कारण मौत की रेट नाममात्र है पर डेंगू की कारण मौत के आंकड़े भी साल दर साल बढ़ रहे हैं।

कोरोना ने दुनिया के देशों को बहुत कुछ सिखाया है। घर की चारदीवारी में कैद होने से लेकर सबकुछ बंद होने के हालात से दो-चार हो चुके हैं। कोरोना त्रासदी से अभी उबर भी नहीं पाये हैं कि जानलेवा बीमारियों के नित नए वेरियंट सामने आ रहे हैं। इनके पीछे पिछड़ों देशों के सामने गरीबी एक कारण है तो दूसरी और जलवायु परिवर्तन के कारण डेंगू जैसे रोग तेजी से फैल रहे हैं। अत्यधिक बारिश, बाढ़, अत्यधिक गर्मी, अत्यधिक सर्दी यहां तक की बेमौसम की बरसात जैसे हालात और आए दिन आने वाले समुद्री तूफान चिंता के कारण बनते जा रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की हालिया रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के चार अरब लोग डेंगू प्रभावित क्षेत्र में हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के वैश्विक कार्यक्रम प्रमुख डॉ. रमन वेलायुधन का मानना है कि 2000 की तुलना में 2022 तक डेंगू से प्रभावित लोगों के आंकड़े में आठ गुणा तक की बढ़ोतरी हो चुकी है। यदि हम भारत की ही बात करें तो 2018 में 101192 मामले सामने आये थे वहीं 2022 में डेंगू के 233251 मामले सामने आए हैं। यदि 2020 के साल को छोड़ दिया जाए तो भारत में डेंगू के मामले लगातार बढ़ते रहे हैं। कमोबेश यही हालात दुनिया के दूसरे देशों में देखने को मिल रहा है।

डेंगू के संभावित खतरे को देखते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन और दुनिया के देशों को कोई खास व प्रभावी रणनीति बनानी होगी। इसके लिए जहां साधन संपन्न व विकसित देशों को खुले दिल से आगे आना होगा वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन को दुनिया के देशों में कार्यरत गैर सरकारी संगठनों व समाजसेवियों को आगे लाना होगा। जिस तरह कोरोना का एकजुट होकर मुकाबला किया गया ठीक उसी प्रकार का प्रयास, जन जागरण अभियान, अवेयरनेस कार्यक्रम व रोकथाम के संभावित उपायों को प्रभावी तरीके से अंजाम देना होगा।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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