गांधी विश्व सभ्यता के विरल नायक
– हृदयनारायण दीक्षित
देश गांधी जयंती के उत्सवों में है। गांधी विश्व सभ्यता के विरल नायक थे। बहुआयामी व्यक्ति थे। वैसे भारत का प्रत्येक व्यक्ति बहुआयामी है। यूरोप में विशेषज्ञों की भरमार है लेकिन जीवन के सभी क्षेत्रों का ज्ञान रखने वाले जनसामान्य भारत में होते हैं। भारत का प्रत्येक व्यक्ति थोड़ा थोड़ा दार्शनिक है। कामचलाऊ नास्तिक है। यथार्थवादी आस्तिक है। वह धार्मिक है, वह तार्किक है, वह साहित्यिक है, वह घरेलू वैद्य या डाक्टर है। वह संगीत पारखी/प्रेमी है। वह परिवर्तनकामी है। लेकिन उसके व्यक्तित्व का सर्वोत्तम किसी एक या दो आयामों में ही प्रकट होता है। मनुष्य की सर्वोत्तम उर्जा प्रेम या युद्ध में चरम पर पहुंचती है। गांधी जी का सर्वोत्तम जीवन के सभी आयामों में प्रकट होता है। कदाचित इसका मूलकारण विश्व मानवता के प्रति उनका प्रेम है। संगीत भारतीय ज्ञान परम्परा का प्रतिष्ठित अनुशासन है। गांधी जी ने लिखा, ‘हम पर संगीत का बहुत असर होता है। वेद मंत्रों की रचना संगीत के आधार पर हुई जान पड़ती है। मधुर संगीत आत्मा के ताप को शान्त कर सकता है। अगर संगीत की शुद्ध शिक्षा मिले तो नाटक के गीत गाने में और बेसुरा राग अलापने में उनका (बच्चों) समय नष्ट न हो।” आश्चर्यजनक है कि एक सत्याग्रही संयमी महात्मा संगीत के बारीक तत्वों और उसके आत्यंतिक प्रभावों से भी सुपरिचित था।
गांधी जी का सौन्दर्य बोध अप्रतिम था। अनुभूतियां गहरी थीं। उन्होंने ब्रह्मपुत्र नदी के वर्णन में लिखा, ‘नदी समुद्र की तरह विशाल जान पड़ती है। नदी की भव्य शान्ति मनोहर प्रतीत होती है। बादलों में छिपा हुआ चन्द्रमा पानी पर अपनी हल्की रोशनी बिखेरे है। फिर भी मेरे मन को चैन कहां?’ यह राजनेता या पत्रकार की भाषा नहीं है। यहां गहन सौन्दर्यबोध की भावाभिव्यक्ति है। 1920 में वे काशी में थे, लिखा है ‘आकाश में जैसे जैसे प्रकाश बढ़ता जाता, वैसे वैसे गंगा के पानी पर स्वर्णिम प्रकाश बिखरता जाता है और अंत में जब सूर्य पूर्णतया दृष्टिगोचर होता, उस समय ऐसा प्रतीत होता मानो पानी में एक वृहदाकार स्वर्ण स्तंभ प्रतिष्ठापित कर दिया गया है। उस भव्य दृश्य को देखने के बाद सूर्य की उपासना, नदियों की महिमा और गायत्री मंत्र के अर्थ को मैं अच्छी तरह समझ सका।” इन शब्दों में प्राणवान काव्यरस का प्रवाह है। वेद नदियों की स्तुतियों से भरे पूरे हैं। यही अनुभूति गांधी जी को भी हुई थी। इसका मूल उनका सौन्दर्य बोध था।
सौन्दर्यबोध काव्य सृजन का मूल है लेकिन गांधी जी के सौन्दर्यबोध में सुन्दरतम् के साथ सत्य और शिवत्म भी हैं। मनुष्य जन्मजात सौन्दर्यप्रेमी है। प्रकृति विविध रूपों से भरी पूरी है। यहां रूप रूप प्रतिरूप सौन्दर्य की छटा है। सौन्दर्यबोध मनुष्य को सुकुमार, सुकोमल और निरहंकारी बनाता है। जिसमें जितना गहन सौन्दर्यबोध वह उतना ही सुकोमल भावनिष्ठ। वैदिक ऋषि कवि भी सौन्दर्यबोध से लबालब परिपूर्ण थे। दुनिया की सभी सभ्यताओं का विकास सौन्दर्यबोध से हुआ। चाल्र्स डारविन ने लिखा है कि, ‘प्रकृति के रूपों को देखकर भावोत्तेजन होते हैं।’ भावोत्तेजन के संकेत मस्तिष्क में जाते हैं। मनुष्य की बुद्धि इन भावोत्तेजनों का विवेचन करती है। विवेचन से आया निष्कर्ष बोध सम्बंधित व्यक्ति का ‘सौन्दर्यबोध’ होता है। आधुनिक काल में रवीन्द्रनाथ टैगोर का सौन्दर्यबोध याद किये जाने योग्य है। गांधी जी का सौन्दर्यबोध वैदिक ऋषियों की याद दिलाता है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर का सौन्दर्यबोध परिधिगत है। बेशक उसमें सत्यम्, शिवम् ओर सुन्दरतम् की त्रयी है लेकिन उसमें रूप की सत्ता है। गांधी जी का सौन्दर्यबोध रूप से परे जाता है। यजुर्वेद के 40वें अध्याय (ईशावास्योपनिषद्) में सत्य का मुख हिरण्यपात्र से ढका हुआ बताया गया है – हिरण्यमय पात्रेण सत्यस्यापिहितं मुखम्। प्रार्थना है कि यह हिरण्यपात्र हटाओ, ऋषि सत्य का दर्शनाभिलाषी है। यहां हिरण्य सौन्दर्य से ढका हुआ सत्य देखने का आग्रह है। गांधी जी का सौन्दर्य बोध भी ऐसा ही है बिल्कुल सीधा, सरल और निश्च्छल। रवीन्द्र नाथ का सौन्दर्यबोध विशिष्ट है, गांधी जी का सौन्दर्य बोध ऋक् है, सरल और सामान्य है। 1980 के दशक में एक अर्थशास्त्री ई0एफ0 सूमाखर ने अर्थशास्त्र की अपनी किताब का नाम रखा था ‘स्माल इज ब्यूटीफुल”। यहां लघुता ही सुन्दरता है कि छोटे उद्योग, छोटी कारीगरी, घरेलू उत्पादन सुन्दर है। सुन्दरता में आकर्षण होते हैं। क्रान्तियां सुन्दर नहीं होती। उनके परिणाम सुन्दरता ला सकते हैं। जय प्रकाश नारायण ने देश की स्वतंत्रता के बाद समग्र क्रान्ति की बात की थी। उनके एक लेख आह्वान का शीर्षक था ‘दि रिवूल्यूशन ब्यूटीफुल”। प्रख्यात् गांधीवादी चिन्तक धर्मपाल जी ने अंग्रेजों के पहले के भारत को ‘ब्यूटीफुल ट्री” की संज्ञा दी थी।
रवीन्द्रनाथ और गांधी जी समकालीन थे। एक विश्वकवि और दूसरा विश्वमानव। विश्व कवि रवीन्द्र के सौन्दर्य बोध में मादकता थी। विश्वमानव गांधी के सौन्दर्य बोध में सम्मोहन था। विश्व कवि के सौन्दर्य बोध में भाव-दृश्य थे। यहां हृदय और रूप का वितान था। इसलिए उनका सौन्दर्य बोध चाक्षुष था, इन्द्रियबोध की परिधि में था। गांधी जी का सौन्दर्य बोध चाक्षुष ही नहीं था, उसमें मानवीय अनुभूति का अमृत था, संगधा पृथ्वी की सुगंध थी। गांधी जी का सत्याग्रह इसी मानवीय सौन्दर्यबोध का रूपांतरण था। संस्कृत के महाकवि माघ ने सुन्दरता की परिभाषा दी थी ‘क्षणे क्षणे यन्नवता मुपैति, तदैव रूपं रमणीयतायाः – सुन्दर – रमणीय वह है जो प्रतिक्षण नया हो, आकर्षित करता रहे।” सौन्दर्य की ऐसी परिभाषा फिर दूसरी नहीं हुई। माघ की यह परिभाषा वैदिक ऋषियों की ‘सत्य’ की परिभाषा से मिलती जुलती है – जो त्रिकाल अबाधित है, वही सत्य है। सत्य पर समय की सत्ता का प्रभाव नहीं पड़ता। वह तीनों कालों में सत्य रहता है। इसी तरह जो बोध प्रतिक्षण नया और आकर्षक हो वही सौन्दर्य है। गांधी जी के सौन्दर्यबोध में प्रकृति की सनातन सरलता है।
प्रकृति का सौन्दर्य स्वयं बोलता है। सौन्दर्य प्रेमी आंखों से भी सुन लेते हैं। कलांए प्रकृति की अनुकृति होती है। कला में व्यक्त सौन्दर्य को भी स्वयं बोलना चाहिए। गांधी जी सौन्दर्यबोध से युक्त थे। उन्होंने कहा, ‘चित्र ऐसे होने चाहिए जो मुझसे बोलें मेरे आगे नाचें, ऐसे चित्र दुनिया में बहुत थोड़े हैं।” गांधी जी की दृष्टि में आत्मबल से युक्त स्वस्थ शरीर ही सुन्दर होता है और जो स्वस्थ व सुन्दर होता है वह हथियारबंद यूरोपीय का सामना भी कर सकता है। उन्होंने लिखा, ‘भारत का ग्वाला भीमसेनी शरीर और बहुत अच्छे गठन वाला होता है। अपनी मोटी मजबूत लाठी से वह किसी भी तलवार वाले साधारण यूरोपीय का सामना कर सकता है। यहां गांधी का ध्यान स्वस्थ शरीर पर है, शरीर के सुन्दर गठन पर है पर इससे भी ज्यादा हथियारबंद यूरोपीय से टक्कर लेने पर है। गांधी जी अंग्रेजों से लड़ते समय उन्हें हराने की बात कभी नहीं भूले। यूरोपीय सभ्यता को पराजित करने की शक्ति से लैस व्यक्ति को ही स्वस्थ और सुन्दर कहा जाना चाहिए। गांधी जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नेता थे। वे भारत को संस्कृति आधारित राष्ट्र मानते थे। उन्होंने ‘हिन्द स्वराज’ में लिखा है कि, ‘आपको अंग्रेजों ने बताया है कि भारत को अंग्रेजों ने राष्ट्र बनाया है। यह बात गलत है। भारत अंग्रेजों के पहले भी राष्ट्र था।’ गांधी ने सत्याग्रह के बल पर विश्व को प्रभावित किया। भारतीय राष्ट्रवाद को जन जन तक पहुंचाया। वे ब्रिटिश सत्ता से टकराए। मैंने स्वयं देखा है कि उसी सत्ता के इंग्लैंड स्थित संसद भवन के सामने गांधी जी की प्रतिमा है। उनकी स्मृति प्रेरक है।
(लेखक, उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष हैं।)