खिलौना उद्योग में भारत की धमक

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– डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

मजबूत इच्छाशक्ति से बहुत कुछ हासिल किया जा सकता है। इसका जीता जागता उदाहरण देश का खिलौना उद्योग है। यह अभी कल की ही बात लगती है जब भारत 20 हजार करोड़ रुपये के खिलौने अकेले चीन से आयात करता था। कोरोना के बाद बदली परिस्थितियों में चीन को लेकर दुनिया के देशों का मोहभंग हुआ और उसके बाद हालात यह होने लगे कि दुनिया के देश चीन और उसकी नीतियों को हिकारत की दृष्टि से देखने लगे। सरकार ने भी इसे गंभीरता से लिया और सरकार के एक आह्वान और सकारात्मक नीतियों का परिणाम यह रहा कि देश में खिलौना उद्योग ने रफ्तार पकड़ी। हालात में तेजी से बदलाव का ही परिणाम है कि आज भारत में खिलौना उद्योग तेजी से फलने-फूलने लगा है। देशी बाजार में स्वदेशी खिलौनों की मांग बढ़ी तो विदेशी बाजार में भी भारतीय खिलौनों की तेजी से मांग बढ़ी है। इसमें कोई दोराय नहीं कि इसमें प्रमुख कारण खिलौना उद्योग के लिए प्रोत्साहन नीतियां प्रमुख कारण रहीं। आयात शुल्क बढ़ाने के साथ ही सरकार प्रोडक्शन लिंक इंसेटिव स्कीम लागू कर उद्योग के विकास में सहभागी बनी। आज 12 प्रतिशत विकास दर के साथ खिलौना उद्योग बढ़ रहा है। यह चक्रवृद्धि विकास दर है। इसे भारतीय खिलौना उद्योग के लिए शुभ संकेत ही माना जा सकता है।

देखा जाए तो खिलौना उद्योग पर चीन का एकाधिकार ही रहा है। लगभग 80 प्रतिशत बाजार चीन के पास रहा है। ऐसे में चीन के खिलौना उद्योग को चुनौती देना बड़ी मुश्किल भरा काम रहा है, पर सरकार के एक आह्वान ने सब कुछ बदल कर रख दिया। केन्द्र व राज्य सरकारों के समन्वित प्रयासों से देश में खिलौना उद्योग ने गति पकड़ ली है। पहले भारत, चीन से 20 हजार करोड़ के खिलौना आयात करता था। और अब हालात यह हो गए हैं कि आज भारत में खिलौनों का घरेलू बाजार 124.73 अरब रुपये का हो गया है। भारत से खिलौनों के निर्यात में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है। 2018-19 में 16.81 करोड़ के खिलौने निर्यात होते थे 2022-23 में बढ़कर 27.08 अरब डालर हो गया है। माना जा रहा है कि 2028 तक भारत में खिलौना उद्योग 249.47 अरब रुपये को पार कर जाएगा। इसके पीछे एक कारण यह भी है कि जो माहौल बना और बनाया गया उसका परिणाम यह रहा कि बच्चों की पहली पसंद भी भारतीय खिलौने ही हो गए हैं।

खिलौना उद्योग में आज 4000 एमएसएमई अपनी भागीदारी निभा रही है। एक सबसे महत्वपूर्ण बात यह भी है कि एमएसएमई उद्योग देश का ग्रोथ इंजन होता है। एमएसएमई उद्योगों से जहां रोजगार के अधिक अवसर विकसित होते हैं वहीं स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध होता है। होता यह है कि बड़े उद्योगों में एक सीमा तक ही रोजगार के अवसर होते हैं क्योंकि वहां टेक्नीक का अधिक उपयोग होता है तो दूसरी और एमएसएमई उद्योग में रोजगार के अधिक अवसर होने से आर्थिक व्यवस्था को नई दिशा मिलती है। स्थानीय स्तर से लेकर निर्यात तक के अवसर आसानी से उपलब्ध होते हैं।

जहां तक खिलौनों का संबंध है 2600 ईसा पूर्व सुमेरियन सभ्यता के अवशेषों में मानव और पशु आकृति के अवशेष मिले हैं जिनके बारे में यह माना जाता है कि यह उस जमाने के खिलौनों के ही अवशेष हैं। 500 ईसा पूर्व अवशेष पूर्व ग्रीक के अवशेषों में खिलौनों के अवशेष देखे गए हैं। जहां तक हमारे देश की बात है रामायण-महाभारत व पुराणों में खेल-खिलौनों की बाकायदा चर्चा मिलती है। आज प्लास्टिक का दौर है तो सर्वाधिक खिलौने प्लास्टिक के ही बनने लगे हैं। हमारे यहां मिट्टी, धातु, टेरीकोट्टा, कपड़े, लकड़ी, सींग, रत्नों आदि से निर्मित खिलौने तैयार होते हैं। समय के अनुसार खिलौनों की मांग भी बदलती रही है। एक समय था और आज भी बार्बी की मांग सबसे अधिक देखी जाती है। इसके बाद क्यूबिक की भी मांग सबसे अधिक देखी गई। गेंद, बंदूक, जहाज, कार, ट्रेन, डमडमी, बाजे, सिटी और इसी तरह के खिलौने सामान्य से लेकर ऑटोमेटिक, चाबी से चलने वाले और आज तो सेल व सोलर से चलने वाले खिलौने बाजार में आने लगे हैं। दरअसल खिलौने बच्चों के मन बहलाव के ही साधन ना होकर ज्ञानवर्द्धक और बच्चों की मानसिकता के विकास में भी सहायक रहे हैं। खेल खेल में सीखने की प्रवृत्ति खिलौनों के माध्यम से रही है। खिलौने मानसिक विकास के भी प्रमुख माध्यम रहे हैं।

दरअसल सरकार के खिलौनों पर आयात शुल्क 20 प्रतिशत से बढ़ाकर 70 प्रतिशत कर देने, कच्चे माल की सहज उपलब्धता, ईज ऑफ डूइंग के तहत आसानी से उद्योगों की स्थापना और इसके साथ ही पीएलआई यानी कि प्रोडक्शन लिंक इंसेटिव से उद्योग को बढ़ावा मिला है। इसके साथ ही सरकार द्वारा निर्यात को आसान और आम उद्यमी की पहुंच में करने से देशी विदेशी बाजार मिलने में आसानी हुई है। देश के हस्तशिल्प निर्यात संवर्द्धन परिषद द्वारा भी आवश्यक सहयोग दिया जा रहा है। इसके साथ ही राज्य सरकारें भी आगे आई हैं और यही कारण है कि बहुत कम समय में देश के खिलौना उद्योग ने देश-विदेश में अपनी पहचान बनाई है।

अंत में एक बात और विदेशों में प्रतिस्पर्धा में बना रहना है तो गुणवत्ता, मूल्य प्रतिस्पर्धा के साथ ही नवाचार और शोध को बढ़ावा देना होगा। सशक्त आरएंडटी टीम बनानी होगी और इसके साथ बाजार की मांग को भी समझना होगा। यह भी ध्यान रखना होगा कि खिलौना उद्योग का लक्षित वर्ग बच्चे हैं, ऐसे में बच्चों के लिए हानिकारक ना हो ऐसे कच्चे माल का ही उपयोग करना होगा। बच्चों के स्वास्थ्य का भी ध्यान रखना होगा। सरकार को भी इस दिशा में सहयोगी की भूमिका निभानी होगी और तकनीकी, वित्तीय व मार्गदर्शक की भूमिका निभानी होगी।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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