आसान नहीं मुख्यमंत्री शिवराज का श्राद्ध

0

 

– प्रमोद भार्गव

विधानसभा चुनाव के महासंग्राम की शुरुआत होते ही कांग्रेस एवं भाजपा में श्राद्ध को लेकर जुबानी जंग छिड़ गई है। दरअसल सोशल मीडिया पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का गंगा नदी के किनारे निश्चिंत व निर्लिप्त बैठे हुए एक चित्र जारी हुआ था। इसमें शिवराज चुनाव की चिंता और मुख्यमंत्री बनने की इच्छा से मुक्त नजर आ रहे थे। वास्तव में वे ऋषिकेश में स्थित परमार्थ निकेतन में स्वामी चिदानंद मुनि के आश्रम में समय बिताने पहुंचे थे। वे यहां गंगा दर्शन कर गंगा आरती में शामिल हुए और संतों का आशीर्वाद लिया। इस पल चित्र सोशल मीडिया पर किसी ने डालकर लिख दिया, ‘मामा का श्राद्ध, श्राद्ध में भाजपा ने दिया शिवराज मामा को टिकट।’

इसे कांग्रेस की हरकत बताते हुए शिवराज ने कहा कि सनातन धर्म को अपशब्द कहने वाली कांग्रेस सत्ता की भूखी है। जबकि कांग्रेस को अपनी कुंठित सोच और कुसंस्कारों का श्राद्ध करने की जरूरत है। मैं मर भी जाऊंगा तो राख के ढेर से फीनिक्स पक्षी की तरह फिर से पैदा हो जाऊंगा, जनता की सेवा के लिए।’ हालांकि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने शालीनता बरतते हुए कहा कि ‘शिवराज जी ईश्वर आपको दीर्घायु दे। मेरी समझ में नहीं आता कि आपको हर चीज के पीछे कांग्रेस पार्टी ही क्यों नजर आती है ? श्राद्ध पक्ष में आपको टिकट आपकी पार्टी ने दिया है, आपके व्यक्तिगत दुश्मन आपकी पार्टी में बैठे हैं और आपका अहित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।’

मिथकों में फीनिक्स को एक मायावी पक्षी माना जाता है। अरब, ईरानी, मिश्र और भारतीय दंत-कथाओं में ऐसे विलक्षण पंछी का उल्लेख मिलता है। धारणा है कि इसका जीवन चक्र 500 से 1000 वर्ष का होता है। उम्र पूरी होने पर वह जल जाता है और फिर अपनी ही राख से पुनः जीवन प्राप्त कर लेता है। यह अवधारणा भारतीय दर्शन के पुनर्जन्म से मेल खाती है। श्रीमद् भगवत गीता के इस दर्शन को दुनिया के अनेक वैज्ञानिक भी अब यह मानने लगे हैं। दरअसल पदार्थगत रूपांतरण को ही पुनर्जन्म माना जाता है। पदार्थ और ऊर्जा दोनों ही परस्पर परिवर्तनशील है। ऊर्जा कभी नष्ट नहीं होती है, परंतु रूपांतरित होकर अदृश्य हो जाती है। इसीलिए डीएनए यानी महा रसायन मृत्यु के बाद भी संस्कारों के रूप में अदृश्य अवस्था में उपस्थित रहता है और नए जन्म के रूप में पुनः अस्तित्व में आ जाता है। इसीलिए सनातन दर्शन मृत्यु के साथ मनुष्य का पुर्णतः अंत नहीं मानता है। बल्कि मृत्यु के माध्यम से आत्मा को शरीर से अलग होकर वायुमंडल में विचरण करना मानता है। यही आत्मा मनुष्य के जीवित रहते हुए भी स्वप्न अवस्था में शरीर से अलग होकर भ्रमण करती है, लेकिन शरीर से उसका अंतर्संबंध बना रहता है। बीमारी की स्थिति में भी आत्मा और शरीर का अलगाव बना रहता है। परंतु मृत्यु के बाद आत्मा शरीर से पृथक हो जाती है।

ऋग्वेद में कहा भी गया है कि ‘जीवात्मा अमर है और प्रत्यक्षतः नाशवान है।’ इसे ही और अधिक विस्तार से गीता में उल्लेखित करते हुए कहा है, ‘आत्मा किसी भी काल में न तो जन्मती है और न ही मरती है। जिस तरह से मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्याग कर नए वस्त्र धारण कर लेता है, उसी अनुरूप जीवात्मा मृत शरीर को त्याग कर नए शरीर में प्रवेश कर जाती है।’ इसलिए हमें बिना पढ़ी-लिखी या अल्पशिक्षित होने के बावजूद अनेक ऐसी प्रतिभाएं देखने में आती हैं, जिनके ज्ञान को देखकर आश्चर्य होता है। दरअसल वे पूर्व जन्म के संचित ज्ञान का ही प्रतिफल होती हैं। इसीलिए कहा जा सकता है कि जीवात्मा वर्तमान जन्म के संचित संस्कारों को साथ लेकर ही अगला जन्म लेती हैं। यहां यह भी रेखांकित किया जाना जरूरी है कि जींस (डीएनए) में पूर्व जन्म यह पैतृक संस्कार मौजूद रहते हैं। इसी वेश से निर्मित नूतन संरचना के चेतन अर्थात प्रकाशकीय भाग को सनातन दर्शन में ‘प्राण’ कहते हैं। वर्तमान वैज्ञानिक तो जीवन मृत्यु के रहस्य को आज समझ रहे है, किंतु हमारे ऋशि-मुनियों ने तो हजारों साल पहले ही शरीर और आत्मा के इस विज्ञान को समझकर विभिन्न संस्कारों से जोड़ दिया था, जिससे रक्त संबंधों की अक्षुण्ण्ता जन्म-जन्मांतर स्मृति पटल पर अंकित रहे। फीनिक्स पक्षी के जल-मर कर जी उठना इसी भारतीय दर्शन का प्रतीक है।

अर्थात शिवराज सिंह मध्य प्रदेश के एक ऐसे नेता बन चुके हैं, जिन पर 1 करोड़ 31 लाख लाड़ली बहनाओं का आशीर्वाद है। वह शिवराज ने सगे भाई की झलक देखती हैं। लाड़ली लक्ष्मियां भी उनके इर्द-र्गिद हैं, जो अपने जीवन की सुरक्षा उन्हीं के लाड़-प्यार में देखती हैं। 18 से 25 साल के युवाओं की कतार भी इस उम्मीद में उनके पीछे खड़ी है कि उन्हें रोजगार शिवराज ही देंगे। बुर्जुग, पुरुष एवं महिलाएं उन्हें पुत्रवत मानते हैं। क्योंकि लाखों वृद्धों को तीर्थ दर्शन कराने का काम इसी श्रवण कुमार ने किया है। न केवल हिंदुओं का बल्कि जैन, बौद्ध, सिख और इस्लाम धर्मावलंबियों को भी शिवराज ने अपने कार्यकाल में निशुल्क तीर्थ यात्राएं कराई हैं। अत एव शिवराज सिंह आम लोगों के बीच अपनी छवि सरल, सहज और संवेदनशील व्यक्ति के रूप में गढ़ चुके हैं। ऐसे मामा, भैया और बेटे का श्राद्ध फिलहाल आसान नहीं है। बहरहाल मानकर चलिए यदि भाजपा मध्य प्रदेश में 2023 के विधानसभा चुनाव में बहुमत प्राप्त कर लेती है तो इसका श्रेय किसी केंद्रीय या राज्यस्तरीय नेतृत्व को नहीं बल्कि शिवराज को ही जाएगा ?

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *