किसान संगठनों की सभी मांगे पूरी किए जाने की बेकार जिद- (डॉ. मयंक चतुर्वेदी)

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देश में भाजपा की एनडीए सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्‍व में दिन प्रतिदिन एक ताकत के रूप में उभरी है। इस बार के संसद सत्र में कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों ने भारतीय जनता पार्टी को घेरने की कई सघन योजनाए बनाईं, किंतु मोदी तरकस से निकले वाणों ने एक के बाद एक सभी को भेद दिया, ऐसे में विपक्ष के पास कोई मुद्दा नहीं बचा और महंगाई, गरीबी और बेरोजगारी पर जब देश भर में उसकी कहीं कोई दाल नहीं गल रही तब वह फिर से किसान आन्‍दोलन को हवा देने में लग गई है। इन दिनों किसान आन्‍दोलन के नाम पर आन्‍दोलन जीवी एक बार फिर से सक्रिय हो उठे हैं। कुल मिलाकर विपक्ष का उद्देश्‍य हर हाल में देश की शांति को बहाल नहीं रहने देने की है। अब उसका लक्ष्‍य यही होगा कि वह किसी तरह से यह सिद्ध करने में कामयाब हो जाए कि मोदी सरकार किसान विरोधी है और उसे अन्‍नदाताओं की कोई फिक्र नहीं ।

वैसे देखा जाए तो स्‍वतंत्र भारत में स्‍वाधीनता के बाद से किसान समस्‍या हमेशा किसी न किसी रूप में बरकरार रही है। भले ही आज का बहुसंख्‍यक किसान साहूकार के ऋण चंगुल से बाहर आ गया हो, किंतु केंद्र और राज्‍य सरकारों के तमाम प्रयासों के बाद भी आज तक किसानों की समस्‍याओं का अंत नहीं हुआ है। कभी-कभी लगता है कि उन्‍हें सब कुछ फ्री में दे भी दिया जाएगा तब भी किसानों में एक बड़ी संख्‍या फिर भी ऐसी रहेगी जिनकी शिकायतों का कोई अंत नहीं किया जा सकता। इस बार संयुक्त किसान मोर्चा का बैनर गायब है, लेकिन पंजाब, हरियाणा और उत्‍तरप्रदेश के कई किसान संगठन अपनी प्रमुख मांगों को लेकर आगे आए हैं। इसकी कुछ मांगे उचित भी जान पड़ती है, किंतु साथ ही कुछ मांग ऐसी भी हैं जिन्‍हें पढ़कर सोचना पड़ रहा है कि यह किसी भी सरकार के वश में नहीं कि वह पूरा करके उन्‍हें दे दे, फिर क्‍यों ये व्‍यर्थ में इन्‍हें पूरा करा लेने की जिद ठान बैठे है।

इस बार किसान संगठन कृषि ऋण माफ करने की मांग कर रहे हैं। साथ ही सभी किसानों का सरकारी और गैर सरकारी कर्ज माफ करने की उनकी मांग है । अपने को प्रदूषण कानून से बाहर रखने के लिए कह रहे हैं। 58 साल से अधिक उम्र के किसानों के लिए पेंशन योजना लागू कर उन्‍हें 10 हजार रुपए मासिक पेंशन दिए जाने के लिए सरकार पर दबाव बना रहे हैं। साल 2021-22 के किसान आंदोलन में जिन किसानों पर मुकदमें दर्ज किए गए थे, उन्हें रद्द करने की मांग की जा रही है। केंद्र सरकार से किसानों की मांग है कि पिछले आंदोलन में जिन किसानों की मौत हुई थी उनके परिवार को मुआवजा तथा एक सदस्य को नौकरी दी जाए। किसान नेता किसान स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने की मांग भी कर रहे हैं। न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य के लिए कानून बनाए जाने की बात भी इस बार है। केंद्र सरकार से किसान कीटनाशक, बीज और उर्वरक अधिनियम में संशोधन करके कपास सहित सभी फसलों के बीजों की गुणवत्ता में सुधार करने की मांग भी की गई है ।

किसानों की ओर से की जा रही इन तमाम मांगों पर आप गौर करेंगे तो ध्‍यान में आएगा कि कई मांगे इस प्रकार की हैं जिन्‍हें कोई भी सरकार पूरा नहीं कर सकती है। खुद यदि इन किसान नेताओं की भी सत्‍ता क्‍यों न हो वह भी इन मांगों में से कई को पूरा नहीं करेगी। जैसे कि सभी प्रकार के ऋणों की मांफी। वस्‍तुत: ऋण लेकर घी पीने के बाद ऋण की वसूली भी न हो, यह कैसे संभव है! देश के हर किसान ने लिए जो गारंटी 10 हजार रुपए मासिक पेंशन मांगी जा रही है, यह मांग भी कुछ इसी प्रकार की है, जिसे किसी भी सरकार द्वारा पूरा नहीं किया जा सकता । इन किसान संगठनों की एक व्‍यर्थ की मांग उन सभी के परिवारजनों को मुआवजा और नौकरी दिए जाने की है, जो पिछली बार आन्‍दोलन के बीच मृत्‍यु को प्राप्‍त हो गए थे।

इसी प्रकार की एक मांग इनकी अपने को प्रदूषण कानून से बाहर रखने के लिए कहना भी है । पटाखों को वायु प्रदूषण के लिए जिम्‍मेदार ठहराते हुए इस बार भी दीपावली पर पटाखे फोड़ने से रोका गया, किंतु यह मीडिया रिपोर्ट्स के जरिए सभी ने देखा कि कैसे पंजाब, हरियाणा, उत्‍तरप्रदेश के किसानों ने पराली जलाकर पूरे एनसीआर समेत आसपास के वातावरण को प्रदूषण की आग में झोंक दिया था। सांस संबंधी कई बीमारियां इसी प्रदूषण की देन रहीं, जिसमें कि कई लोगों को अपनी जान तक गवांनी पड़ गई, लेकिन ये किसान संगठन हैं कि अपने को प्रदूषण कानून से बाहर रखने की जिद पर अड़े हुए हैं, ताकि कुछ किसान अपराध करते रहें और उस अपराध की सजा वायु प्रदूषण के रूप में कोई ओर पाए । इनकी ठसक भी गजब है; क्‍यों न हो! अन्‍नदाता है, किसान है, जब वह खेतों में अन्‍न उगाता है, तब कहीं जाकर भारत के आम व्‍यक्‍ति का पेट भरता है, इसलिए उसे अपने खेती से जुड़े वायु प्रदूषण के अपराध किए जाने से मुक्‍ति तो मिलनी ही चाहिए! खैर, यह माफी उसे मिलनी चाहिए या नहीं, यहां यह विषय हम जनता के स्‍वविवेक पर छोड़ देते हैं।

हां, कुछ मांगे किसानों की मानने योग्‍य हैं जिनके प्रति मोदी सरकार को संजीदगी दिखानी चाहिए, कुछ पर तो सरकार की ओर से पूरा कर देने को लेकर सहमति भी दर्शायी गई है। लेकिन इन किसान संगठनों की सभी मांगों को पूरा करने की हठधर्मिता को देखकर लगता यही है कि वास्‍तव में जो किसान आन्‍दोलन इस बार हो रहा है उसे इसीलिए ही सभी किसान संगठनों का समर्थन नहीं मिला है, क्‍योंकि अन्‍य कई किसान संगठन भी इस बात को भलीभांति जान रहे हैं कि इसबार जो मांग सरकार से की जा रही हैं उनमें तमाम ऐसी हैं जिन्‍हें पूरा करना संभव नहीं, यह आन्‍दोलन इस बार सिर्फ मोदी सरकार को किसान विरोधी ठहराने के लिए हैं। क्‍योंकि जैसे ही मोदी सरकार के मंत्री इन मांगों को मानने से इंकार करेंगे उसके ऊपर लोस चुनाव के पहले किसान विरोधी होने का आरोप चिपकाना आसान हो जाएगा।

– डॉ. मयंक चतुर्वेदी

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