राम मंदिर समारोह के समर्थन में दो शंकराचार्य, बताया मंदिर के निर्माण के पहले अभिषेक क्यों?

0

नई दिल्‍ली । अयोध्या (Ayodhya)में रामलला के प्राण प्रतिष्ठा समारोह (life consecration ceremony)को दो शंकराचार्यों (Shankaracharyas)का समर्थन (Support)मिल गया है। कांची और श्रृंगेरी के शंकराचार्यों का कहना है कि समारोह हिंदू रीति-रिवाजों से ही हो रहा है। साथ ही उन्होंने प्राण प्रतिष्ठा समारोह के विरोध के दावों को भी खारिज कर दिया है। खास बात है कि दो शंकराचार्यों को अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती और निश्चलानंद सरस्वती ने समारोह पर सवाल उठाए थे।

कांची कामकोटि मठ के विजयेंद्र सरस्वती स्वामीगल ने समारोह के खिलाफ होने के दावों से इनकार किया है। टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, उन्होंने कहा, ‘भगवान राम के आशीर्वाद से राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा अयोध्या में 22 जनवरी को होगी। समारोह के दौरान यज्ञशाला की भी पूजा की जाएगी। 100 से ज्यादा विद्वान यज्ञशाला की पूजा और हवन शुरू करेंगे। भारत में तीर्थस्थलों के विकास में प्रधानमंत्री नरेंद्र का खास विश्वास है। उन्होंने केदारनाथ और काशी विश्वनाथ मंदिरों के परिसरों में भी विस्तार किया है।’

श्रृंगेरी के शंकराचार्य स्वामी भारती तीर्थ महाराज भी समारोह के समर्थन में हैं। उन्होंने कहा कि समारोह पूरे हिंदू रीति-रिवाजों के साथ है और देश की जनता का प्रतिनिधि होने के नाते मोदी को पुजारियों की तरफ से बताए गए अनुष्ठान करने का अधिकार है। अखबार से बातचीत में श्रीश्रृंगेरी शारदा पीठम के धर्माधिकारी देवजन के एन सोमयाजी ने कहा कि एक बार गर्भगृह पूरा हो जाए, तो समारोह को लेकर कोई विवाद नहीं होना चाहिए।

उन्होंने कहा, ‘निर्माण एक लंबी प्रक्रिया है। कई बार यह दो से तीन पीढ़ियों तक भी चलती है। हालांकि, एक बार गर्भगृह पूरा हो जाए तो इसपर कोई विवाद नहीं होना चाहिए। यह अयोध्या में पूरा हो चुका है।’ उन्होंने कहा कि मोदी हिंदू परंपराओं के अनुसार शुद्धिकरण की लंबी प्रक्रिया के बाद नंगे पैर भगवान राम की मूर्ति को गर्भगृह तक लेकर जाएंगे। उन्होंने यह भी कहा, ‘हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वह वहां पूरे देश के प्रतिनिधि के तौर पर होंगे।’

क्या था विवाद

हाल ही में शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने एक वीडियो मैसेज के जरिए कह दिया था कि चारों में से कोई शंकराचार्य अयोध्या नहीं जाएगा, क्योंकि मंदिर के निर्माण के पहले अभिषेक हो रहा है। उन्होंने कहा था, ‘शंकराचार्यों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि धार्मिक ग्रंथों का पूरी तरह से पालन हो।’ इससे पहले निश्चलानंद सरस्वती ने भी समारोह से दूर रहने की बात कही थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed