पूर्वजों की आत्मा की मुक्ति और शांति के लिए शुरू हुए पितृपक्ष, ये है इससे जुड़ी परम्‍परागत मान्यता

0

प्रयागराज । पितरों की आत्मा की मुक्ति और शांति के लिए शुक्रवार से एक पखवाड़े तक चलने वाले पितृपक्ष में क्षौर कर्म से श्राद्ध करने वाले यजमानों से संगम तट गुलजार हो गया है । भाद्र पक्ष की पूर्णिमा से आरम्भ होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलने वाले एक पखवाड़े का पितृपक्ष पर मोक्षदायिनी गंगा, श्यामल यमुना और अंत: सलिला स्वरूप में प्रवाहित सरस्वती के संगम तट पिंडदान और तर्पण कर्म सम्‍पन्‍न किए जा रहे हैं । पितृपक्ष में श्राद्ध और पिंडदान से पूर्वजों को मोक्ष मिलने की पौराणिक अवधारणा रही है। मान्यता है कि संगम तट पर पिंडदान करने से पितरों को शांति मिल जाती है।

संगमनगरी में पिंडदान और श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है
पिंडदान की परंपरा केवल प्रयाग, काशी और गया में है, लेकिन पितरों के पिंडदान और श्राद्ध कर्म की शुरुआत प्रयाग में क्षौर कर्म से होती है। पितृपक्ष में हर साल बड़ी संख्या में लोग पिंडदान के लिए संगम आते हैं। पितृ मुक्ति का प्रथम एवं मुख्य द्वार कहे जाने के कारण संगमनगरी में पिंडदान और श्राद्ध कर्म का विशेष महत्व है।

धर्म शास्त्रों में भगवान विष्णु को मोक्ष का देवता माना जाता है। प्रयाग में भगवान विष्णु बारह भिन्न रूपों में विराजमान हैं। मान्यता है कि त्रिवेणी में भगवान विष्णु बाल मुकुंद स्वरूप में वास करते हैं। प्रयाग को पितृ मुक्ति का पहला और मुख्य द्वार माना जाता है। काशी को मध्य और गया को अंतिम द्वार कहा जाता है। प्रयाग में श्राद्ध कर्म का आरंभ मुंडन संस्कार से होता है।

पितृ ऋण से मुक्ति के लिए बेटी भी कर सकती है पिंडदान
प्रयाग धर्मसंघ के अध्यक्ष पालीवाल के अनुसार, पितृ पक्ष में पितरों का पिंडदान करना सुख एवं समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि तर्पण करने से उन्हें मुक्ति मिलती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार साधु-संत एवं बच्चों का पिंडदान नहीं किया जाता। पितर के निमित्त अर्पित किए जाने वाले पके चावल, दूध, काला तिल मिश्रित पिंड बनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार मृत्यु के बाद प्रेत योनि से बचने के लिए पितृ पक्ष में तर्पण किया जाता है।

धार्मिक मान्यता है कि जिस व्यक्ति को पुत्र नहीं है, पितृ ऋण से मुक्ति के लिए बेटी भी पिंडदान और तर्पण कर सकती है। श्राद्ध की महत्ता ब्रह्म पुराण, गरूड़ पुराण, विष्णु पुराण, वराह पुराण, वायु पुराण, मत्स्य पुराण, माकर्ण्डेय पुराण, कर्म पुराण एवं महाभारत, मनुस्मृति और धर्म शास्त्रों में विस्तृत रूप से बताया गया है। देव, ऋषि और पितृ ऋण निवारण के लिए श्राद्ध कर्म सबसे सरल उपाय है।

श्राद्ध कर्म श्वेत वस्त्र पहनकर ही करना चाहिए
पितृ पक्ष में पिंडदान करने से पूर्वज प्रसन्न होकर वंशजों को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं। पिंडदान नहीं करने से वंशजों को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक कष्टों का सामना करना पड़ता है। यजमान को तर्पण की सामग्री लेकर दक्षिण की तरफ मुंह करके बैठना चाहिए। इसके बाद हाथों में जल, कुशा, अक्षत, पुष्प और काले तिल लेकर दोनों हाथ जोड़कर पितरों का ध्यान करके उन्हें आमंत्रित कर जल ग्रहण करने की प्रार्थना किया जाता है। इसके बाद जल को जमीन पर 11 बार अंजलि से गिराते हैं।

प्रयाग धर्मसंघ के अध्यक्ष ने बताया कि श्राद्ध कर्म श्वेत वस्त्र पहनकर ही करना चाहिए। जौ के आटे या खोये से पिंड बनाकर चावल, कच्चा सूत, फूल, चंदन, मिठाई, फल, अगरबत्ती, तिल, कुशा, जौ और दही से पिंड का पूजन किया जाता है। पिंडदान करने के बाद पितरों की आराधना करने के बाद पिंड को उठाकर पवित्र जल में प्रवाहित कर दिया जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *