आइए इस विजयादशमी अपने अंदर के रावण को मारें
सर्वप्रथम आप सभी को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ । यह उत्सव धर्म की अधर्म पर विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है । इस पर्व पर प्रभु श्रीराम की विजय का स्मरण करते हुए सम्पूर्ण भारतभूमि जय श्रीराम के घोष से गूंज उठती है । इस पर्व पर अधर्म पर विजय प्रशस्त करने का विचार सम्पूर्ण प्रकृति में प्रभावित होता है जिसे अनुभूत करके मस्तक आत्मविश्वास से स्वतः ही उठ जाता है ।
लेकिन इस कलयुग के दौर में चहुँओर एक ऐसा ऐसा विचार पनप रहा है जो किसी रावण ने कम नहीं है ।यह रावणरुपी विचार जिसके मन में जाता है वह व्यक्ति स्वयं रावण अर्थात श्रीराम के विचार का शत्रु बन जाता है । इस विचार का किसी व्यक्ति से परिचय होते ही वह व्यक्ति राष्ट्र-समाज और धर्म का विरोध करने लग जाता है एवं अपनी बुद्धि पर पड़े काले आवरण के कारण अहंकारी बन जाता है । वह अनैतिकता, असत्य और भौतिकता की एक काल्पनिक काली लंका में रहने लग जाता है । जिसके कारण उसे सभी सत्मार्ग ढोंग, अवैज्ञानिक और आधारहीन लगने लग जाते हैं । वह वैचारिक रावण व्यक्ति के मन से सभी सत्कर्म और स्वधर्म रुपी राम को समाप्त करने के प्रयास करने लग जाता है ।
यह वैचारिक रावण कुछ और नहीं, बल्कि आज वामपंथ और पश्चिमीकरण के नाम के कुख्यात है जो भारत के स्व अर्थात श्रीराम की शिक्षा को समाप्त करना चाहता है । यह ‘मन का रावण’ आज भारत को तोड़ने वाली शक्तियों के छद्म युद्ध अर्थात झूठे विमर्शों से हमारे युवाओं के मन की अयोध्या को ध्वस्त करना चाहता है ।
समरसता, मर्यादा, राष्ट्रप्रेम, एकात्मता, बंधुत्व एवं पुरुषार्थ आदि, श्रीराम की शिक्षा है जिसका हमारे अंतर्मन में बैठा रावण विरोध करता है ; तथा हमारी संस्कृति और परम्पराओं का विरोध, भारतद्रोहियों की सहायता एवं परिवार-समाज तोड़ने के पश्चिमी विमर्शों का अंधा अनुपालन वह रावण हमें भ्रमित कर के करवाता है । इस रावण के वशीकरण से आज हमारे देश का भविष्य कहलाने वाली युवा पीढ़ी चपेट में हैं जिसके कारण भारत राष्ट्र का भविष्य संकट में हैं ।
अतः आज आवश्यकता है कि हम अपने राष्ट्र और धर्म के लिए अपने अवचेतन में बसे राम को जागृत करें एवं इस रावण से वैचारिक द्वन्द करते हुए उस विचारधारा को परस्त करें, भारत के स्व के प्रति आस्था का जनजागरण करें एवं रामराज्य की स्थापना अपने मन से करें । इस विजयादशमी आइए संकल्प लेते हैं कि हम जिस प्रकार मैदान में अट्टहास करते रावण का दहन करते हैं उसी प्रकार भारत के शत्रुओं के द्वारा रचे गए वैचारिक रावण अर्थात अपने मन के रावण का भी दहन करेंगे ।