जलवायु परिवर्तन के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा उन मर्दों का इगो है, जो बदलना नहीं चाहते-दीया मिर्ज़ा
जब आप मशहूर बॉलीवुड एक्स्ट्रेस हों तो जहाँ भी जाते हैं, आप लोगों के आकर्षण के केंद्र में होते हैं दीया मिर्ज़ा कभी-कभी इस आकर्षण का इस्तेमाल करती हैं। जैसे कि जलवायु परिवर्तन के बारे में अभियान को लेकर, जो कि उनके दिल के क़रीब है।लेकिन कभी-कभी यह बहुत जटिल हो सकता है। बीबीसी 100 वीमेन के लिए हमारा उनके साथ इंटरव्यू हो रहा था और वो जलवायु परिवर्तन के असर के बारे में बात कर रही थीं, इसी बीच उनके होटल रूम की डोर बेल बजी।
स्टाफ, जिन्हें ये पता था कि इंटरव्यू के लिए ये कमरा किसके लिए लिया गया था, दीया मिर्ज़ा की तस्वीरों का कोलाज लेकर पहुँच गया। वे उन्हें यह गिफ़्ट देने आए थे। उन्होंने बड़ी विनम्रता ले उनका दिया उपहार स्वीकार किया और जैसे ही वो गए, उन्होंने जलवायु परिवर्तन के बारे में बातें जारी कीं।मिर्ज़ा ने बताया कि उनके हिसाब से पर्यावरण के लिए सबसे बड़ा ख़तरा कौन है।
वो कहती हैं, “जलवायु परिवर्तन के रास्ते में सबसे बड़ा रोड़ा उन मर्दों का इगो है, जो बदलना नहीं चाहते। दरअसल, ज़्यादातर बड़ी कंपनियों को चलाने वाले आज भी मर्द ही हैं। इन प्रदूषण फैलाने वालों को पता है कि उनके फ़ैसलों की वजह से धरती पर लोग मर रहे हैं। इसलिए अपने फ़ैसले न बदलने की उनके पास कोई वजह नहीं है।”
बीबीसी 100 वीमेन में दीया मिर्ज़ा
मिर्ज़ा इस साल की बीबीसी 100 वीमेन सूची में शुमार हैं, जिसमें हर साल दुनिया भर की 100 प्रेरणास्पद और प्रभावी महिलाओं का नाम शामिल किया जाता है। 2023 में इस सूची में इस बात पर केंद्रित है कि महिलाएं कैसे जलवायु परिवर्तन से निपट रही हैं। हम लोगों की बातचीत का अधिकांश हिस्सा जलवायु परिवर्तन और फ़िल्म स्टार होने के अनुभव के संदर्भ में लैंगिक समानता पर केंद्रित था। मिर्ज़ा जब 19 साल की थीं, उन्होंने 2000 में मिस एशिया पैसिफ़िक सौंदर्य प्रतियोगिता जीती थी।
इसके तुरंत बाद उन्होंने मॉडलिंग में करियर आज़माना शुरू कर दिया लेकिन उन्हें बताया गया कि वो संभवतः बहुत सुंदर और बहुत गोरी थीं और मॉडल होने के लिए निश्चित तौर पर अपर्याप्त है। मिर्ज़ा कहती हैं, “मुझे नहीं लगता कि जो कुछ भी उन्होंने कहा उससे मैं उतना प्रभावित हुई जितना इस बात से कि कोई व्यक्ति जो मेरे बारे में कुछ नहीं जानता, वह मुझे एक खांचे में डाल रहा था और मेरे लिए फ़ैसले ले रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं। वो कहती हैं कि उन्हें अपने पूरे करियर में सेक्सिज़्म का सामना करना पड़ा।
वो कहती हैं, “जब मैंने काम करना शुरू किया उस वक़्त फ़िल्म सेट पर पदानुक्रम पूरी तरह पितृसत्तात्मक था और वहाँ सेट पर बहुत कम महिलाएं होती थीं। लेट होने और ग़ैर पेशेवर होने पर भी मेरे पुरुष सहकर्मियों को भत्ते दिए जाते थे।”अगर एक अभिनेत्री लेट हो जाती थी तो उस पर तुरंत ग़ैर पेशेवर होने का तोहमत जड़ दिया जाता था। वैनिटी वैन छोटी हुआ करती थी। पहले तो लोकेशन के बाहर अभिनेत्रियों के लिए टॉयलेट तक नहीं होते थे। निजता का अधिकार तो ग़ायब था।”
लैंकिग भेदभाव
मैंने उनसे पूछा कि ऐसा क्यों है कि भारतीय सिनेमा के 100 सालों के इतिहास में, वहीदा रहमान जैसी चंद महिलाओं को ही दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड मिला? दीया मिर्ज़ा कहती हैं, “वहीदा जी एक आइकन हैं और उन्हें यह बहुत देर से मिला। हमें इस सच्चाई को समझना चाहिए कि आज भी फ़िल्मों में महिलाओँ का प्रतिनिधित्व बहुत कम है, चाहे वो निर्देशन हो, प्रोडक्शन हो या लेखन हो। जब तक महिलाओं की संख्या और प्रतिनिधित्व नहीं बदलता, चीज़ें नहीं बदलेंगी।”
अपने शुरुआती अनुभवों के बावजूद मिर्ज़ा भविष्य के बारे में सकारात्मक हैं और कहती हैं कि इस बात के संकेत हैं कि चीज़ें बदल रही हैं।वो कहती हैं, “भारतीय सिनेमा में ऐसा भी समय था, जब महिलाओं को एक निश्चित उम्र के बाद लीड रोल नहीं दिया जाता जबकि पुरुषों को दिया जाता था।”हमने अभी फ़िल्म धक-धक रिलीज़ किया है। यह चार महिलाओं की कहानी है जो चार अलग-अलग उम्र की हैं और जो मोटरसाइकिल यात्रा करती हैं।”
“भारतीय फ़िल्म उद्योग में 110 साल लगे इस तरह की कहानी को दिखाने में। मैंने इसी तरह के किसी किरदार को निभाने के लिए 23 साल तक इंतज़ार किया। “एक पूर्व सौंदर्य प्रतियोगिता विजेता होने के नाते भी, दीया मिर्ज़ा का युवा लड़कियों से कहना है, “किसी को हावी मत होने देना। मिस एशिया पैसिफ़िक प्रतियोगिता में टू पीस स्विम सूट पहनने से इनकार कर दिया था क्योंकि मैं सहज नहीं थी।”
मुखर आवाज़
फ़िल्म उद्योग से बाहर मिर्ज़ा अन्य क्षेत्रों में भी लैंगिक समानता की मुखर आवाज़ बनना चाहती हैं। साल 2021 में उन्होंने परंपरागत भारतीय शैली में लेकिन थोड़ा अलग तरीक़े से शादी की। अधिकांश विवाहों से अलग, उनकी शादी महिला पुजारी ने कराई।मिर्ज़ा कहती हैं, “मेरे दोस्त की शादी में जिस तरह महिला पुजारी ने रीति रिवाज़ निभाए उससे मैं बहुत प्रभावित थी। मैं भी ऐसा ही चाहती थी। महिला पुजारी के फ़ैसले ने भारत में ऑनलाइन बहस छेड़ दी कि पुजारी समेत कुछ विशेष कामों को करने की महिलाओं को आज भी अनुमति क्यों नहीं दी जाती?”
ये केवल यही एक परंपरा नहीं थी जिसे उन्होंने तोड़ी। उन्होंने अपनी शादी में कन्यादान की रिवाज को भी मानने से इनकार कर दिया। यह ऐसा रिवाज है, जब पिता दुल्हन को दान करता है। दीया मिर्ज़ा कहती हैं, “मेरे नाना कहा करते थे कि मेरी बेटियां कोई सामान नहीं है कि शादी में उन्हें दान किया जाए। ये बहुत सशक्त विचार है। इसलिए मेरी माँ ने भी कहा कि मेरी शादी में कन्यादान का रिवाज नहीं किया जाएगा।”एक बॉलीवुड रिपोर्टर के तौर पर मैंने मिर्ज़ा के करियर पर क़रीबी से नज़र रखी है। लोग ग्लैमर और चकाचौंध पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं और पर्यावरण के लिए अभियान चलाने वाले के तौर पर उनकी प्रतिबद्धता पर हमेशा ध्यान नहीं रखते।
रूढ़ियाँ तोड़ने वालीं दीया
प्रकृति से घिरे दक्षिण भारत में जन्मे और पले बढ़े होने के नाते यह आश्चर्यजनक नहीं था कि मिर्ज़ा ने पर्यावरण कार्यकर्ता होने को अपनाया, जबकि उन्होंने मॉडलिंग और फ़िल्मों में 20 साल पहले अपना करियर शुरू किया।
वो 2017 में संयुक्त राष्ट्र की गुडविल एम्बैस्डर बनीं।
इंटरव्यू के दौरान वो लगातार अपने बचपन के दिनों को याद करती हैं, जब कपड़ों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंपे जाते थे और सालों साल चीज़ों को इस्तेमाल करने में कोई शर्म नहीं होती थी।
वो कहती हैं कि अपने घर में इस परंपरा को फिर से ज़िंदा किया है। उदाहरण के लिए अपने बेटे के दूसरे बर्थडे पार्टी को उन्होंने ज़ीरो प्लास्टिक, ज़ीरो वेस्ट पार्टी के रूप में मनाया। यहां सभी सजावट की चीज़ों को भविष्य के आयोजनों में फिर से इस्तेमाल के लिए रख लिया गया।
उन्होंने कई बार कहा, “ज़रूरी है कि काम करके उदाहरण बनाए जाएं।”मिर्ज़ा ने होटल की ओर से प्लास्टिक बोतल में दिए गए पानी को लेने से इनकार कर दिया, इसकी जगह उन्होंने अपनी मेटल की बोतल का इस्तेमाल किया।वो पूछती हैं, “अगर मैं ख़ुद नहीं ऐसा करूंगी तो टिकाऊ जीवन के बारे में कैसे बात कर सकती हूं?”मेरे पास युवा लोगों को ये बताने का क्या अधिकार होगा कि आदतें बदलने की ज़रूरत है?”
“जब भी मैं पर्यावरण को होने वाले नुक़सान को लेकर बात करती हूं तो एक किस्म की हताशा का भाव दिखता है।”वो कहती हैं, “अभी दुनिया में हर जगह जो कुछ हो रहा है, उससे मैं थोड़ी निराश महसूस करती हूँ।”लेकिन युवा लोगों, उनके नवाचारों, समाधानों, उनके समर्थन, लेकिन सबसे बढ़कर उनकी सहानुभूति और उनके प्यार से मैं उम्मीद और प्रेरणा ग्रहण करती हूँ।”जब दीया मिर्ज़ा इंटरव्यू समाप्त होने का इंतज़ार कर रही थीं, ताकि नीचे इंतज़ार कर रहे अपने बेटे से मिल सकें, मैंने उनसे एक आख़िरी सवाल किया।एक अभिनेत्री, पर्यावरण एक्टिविस्ट और संयुक्त राष्ट्र एम्बै%