भारत समेत इन देशों में लोगों का इस्लाम से हुआ मोह भंग, एक्स मुस्लिम मूवमेंट आंदोलन तेज

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नई दिल्ली। धर्म या मजहब हम खुद नहीं चुनते बल्कि जन्मजात मिलता है। ऐसे में यदि कोई उस धार्मिक पहचान से खुद को अलग करता है तो यह आसान नहीं होता। लेकिन दुनिया भर में इस्लाम को मानने वाले कुछ लोग ऐसे हैं, जो इस मजहब से मुंह मोड़ रहे हैं। यही नहीं इसे एक आंदोलन का नाम दे दिया गया है और वे इसे एक्स-मुस्लिम मूवमेंट कहते हैं। भारत, अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देशों के अलावा कई मुस्लिम बहुल देशों में भी इस तरह का आंदोलन जोर पकड़ रहा है। इन लोगों का कहना है कि हम मानते हैं कि इस्लाम की कुछ चीजें ठीक नहीं हैं और ऐसे में हम उस मजहब का पालन नहीं कर सकते।

मजहब के नाम पर कट्टरता से इस्लाम ने मोहभंग कर दिया।

इस्लाम को छोड़ने वालीं केरल की 48 साल की नूरजहां ने भी ऐसे ही कारण बताए हैं। उन्होंने बातचीत में बताया था कि हिजाब पहनने की मजबूरी, महिलाओं से भेदभाव और मजहब के नाम पर कट्टरता जैसी चीजों ने उनका इस्लाम से मोहभंग कर दिया। फिर वह नास्तिकता की ओर बढ़ीं क्योंकि यह चीज उन्हें ज्यादा तार्किक लगती है। नूरजहां ने कहा था, ‘बीते कुछ सालों में मैंने इस्लाम से नाता तोड़ लिया है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसकी कुछ बातें मुझे अतार्किक लगती हैं। इसमें महिलाओं से भेदभाव होता है और उन्हें दोयम दर्जे का माना जाता है।’ वह कहती हैं कि मेरी बेटियां हैं और मैं उन्हें किसी भी धर्म की शिक्षा नहीं दे रही हूं।

बता दें कि यह एक्स-मुस्लिम मूवमेंट ऐसे समय में जोर पकड़ रहा है, जब कहा जा रहा है कि अगले 10 सालों में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा संख्या इस्लाम को मानने वालों की होगी। प्यू रिसर्च सेंटर की ही एक रिपोर्ट में 2035 तक दुनिया में सबसे ज्यादा मुसलमान होने की बात कही गई है। 2017 की प्यू रिसर्च सेंटर की रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका में 35 लाख मुसलमान हैं, लेकिन इनमें से 1 लाख हर साल इस्लाम छोड़ रहे हैं। हालांकि इतने ही लोग ऐसे भी हैं, जो हर साल इस्लाम को अपना रहे हैं। ऐसी ही स्थिति पश्चिमी यूरोप के देशों में भी देखी जा रही है।

इस्लाम से दूरी बनाने वाले लोगों में एक वर्ग उनका भी है, जो किसी और धर्म से इसमें आए थे। हालांकि यह दिलचस्प है कि जैसे हिंदू, ईसाई और अन्य धर्मों को छोड़ने वाले लोग खुद को नास्तिक कहते हैं, वैसा इस्लाम को छोड़ने वाले नहीं कहते। ये लोग अपनी अलग ही पहचान बना रहे हैं और खुद को एक्स-मुस्लिम यानी पूर्व मुसलमान कह रहे हैं। ईरानी मूल के लेखक और राइट्स ऐक्टिविस्ट मरियम नमाजी कहते हैं कि इसकी वजह इंटरनेट के जरिए तेजी से सूचनाओं का पहुंचना भी है। वह तो कहते हैं कि जैसे प्रिंटिंग प्रेस आने से ईसाईयत पर असर पड़ा था। उसी तरह इंटरनेट का असर इस्लाम पर होगा।

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