बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर आंदोलन जारी, अब तक 151 लोगों की मौत, इंटरनेट व मोबाइल सेवाएं ठप्प

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ढाका । बांग्लादेश में आरक्षण को लेकर जारी हिंसक आंदोलन के चलते देश सुलग रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आरक्षण फैसले के बाद भी छात्र जिद पर अड़े हुए हैं। इस आंदोलन में अब तक 151 लोगों की मौत हो चुकी है। रविवार को 2 घंटे राहत के बाद फिर अनिश्चितकाल के लिए कर्फ्यू लगा दिया गया है।

कई हफ्तों से जारी विरोध प्रदर्शनों के हिंसक रूप लेने के बाद सरकारी नौकरियों से जुड़ी विवादास्पद कोटा प्रणाली को वापस लेने के फैसले से हालात शांत होने के बावजूद इंटरनेट और मोबाइल डेटा सेवाएं अब भी ठप्प हैं। ढाका में सड़कों पर सैन्य वाहन तैनात हैं फिर भी प्रदर्शनकारियों का उपद्रव जारी है। कोर्ट ने आरक्षण 54% से 7% किया, पर मूल मांग नहीं मानी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद नौकरियों में आरक्षण 56% से घटाकर 7% हो गया है, लेकिन प्रदर्शनकारियों की दोनों मूल मांगें अधूरी ही है।

उनकी पहली मांग थी कि मुक्तिजोधा के परिजनों को मिलने वाली आरक्षण पूरी तरह खत्म हो। कोर्ट के आदेश के बाद भी सबसे ज्यादा आरक्षण (6%) उनको ही मिलेगा। प्रदर्शनकारियों की मांग थी कि 94% नौकरियां मेरिट से मिले। शेष 6% रिजर्व रहें। इनमें से 5% महिलाओं और 1% दिव्यांगों को मिले। कोर्ट आदेश के बाद 93% नौकरियां मेरिट से होगी। छात्रों की दूसरी मांग भी अधूरी रही।

छात्रों का आरोप है कि सरकार ने दबाव बनाकर सुप्रीम कोर्ट से फैसला दिलाया है। सरकार ने सोमवार को सार्वजनिक अवकाश भी घोषित किया है और केवल आवश्यक सेवाएं चालू रहेंगी। देश में कुछ दिन पहले ही देखते ही गोली मारने के आदेश के साथ कर्फ्यू लगा दिया गया था और सैन्यकर्मी राजधानी और अन्य क्षेत्रों में गश्त कर रहे थे।

भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन के समन्वयक हसनत अब्दुल्ला ने बताया कि जिस पूर्ण बंद के आह्वान को उन्होंने पिछले सप्ताह लागू करने का प्रयास किया था उसे अब वापस ले रहे हैं। उन्होंने कहा, “लेकिन हम ‘डिजिटल कार्रवाई’ को रोकने और इंटरनेट सेवाएं बहाल करने के लिए 48 घंटे की चेतावनी जारी कर रहे हैं।”

अब्दुल्ला ने यह भी कहा कि वे चाहते हैं कि सरकार कर्फ्यू समाप्त करे और यह सुनिश्चित करे कि देश दो दिनों के भीतर सामान्य स्थिति में वापस आ जाए। जनवरी में हुए आम चुनाव में प्रधानमंत्री शेख हसीना की लगातार चौथी बार जीत के बाद हो रहे इन विरोध प्रदर्शनों ने बांग्लादेश की सरकार के लिए सबसे गंभीर चुनौती पेश की। इस दौरान विश्वविद्यालयों को बंद करने के साथ इंटरनेट सेवा ठप कर दी गई और सरकार ने लोगों को घर पर रहने का आदेश जारी किया। प्रदर्शनकारियों ने तर्क दिया था कि आरक्षण प्रणाली भेदभावपूर्ण थी और इससे शेख हसीना के समर्थकों को फायदा हुआ।

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