महिलाओं के सशक्तीकरण से ही लगेगी बाल विवाह पर रोक: राजीव अरुण एक्का
बाल विवाह रोकने के लिए बचपन बचाओ आंदोलन व झारखंड सरकार ने स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ किया परामर्श सम्मेलन
RANCHI: नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित संगठन बचपन बचाओ आंदोलन (बीबीए) ने ‘बाल विवाह मुक्त भारत अभियान’ के तहत स्वयंसेवी संस्थाओं को लामबंद कर इस मुहिम से जोड़ने के लिए झारखंड पंचायती राज विभाग के साथ मिल कर रांची में एक सम्मेलन का आयोजन किया।
इस सम्मेलन में झारखंड सरकार के विभिन्न महकमों और स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ 2030 तक देश से बाल विवाह के पूरी तरह खात्मे के लक्ष्य को हासिल करने के लिए गहन विचार विमर्श किया गया।
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा पिछले साल ‘बाल विवाह मुक्त भारत अभियान’ के एलान के बाद बीबीए देश के सभी राज्यों में इस तरह के सम्मेलनों का आयोजन कर रहा है जिसके तहत झारखंड में भी यह आयोजन हुआ।
इस अवसर पर पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव राजीव एक्का, महिला एवं बाल कल्याण विकास विभाग तथा सामाजिक सुरक्षा विभाग के सचिव कृपानंद झा और ग्रामीण विकास विभाग के प्रभारी सचिव चंद्र शेखर भी मौजूद थे।
‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के कार्यकारी निदेशक धनंजय टिंगल ने सम्मेलन के उद्देश्य को स्पष्ट करते हुए कहा, “पिछले साल नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी द्वारा किए गए आह्वान के बाद पूरे देश में इसकी अप्रत्याशित और आश्चर्यचकित कर देने वाली प्रतिक्रिया देखने को मिली है।
देश भर के 7028 गांवों से 76,000 महिलाएं और बच्चे मशाल लेकर एक साथ सड़कों पर उतरे और बाल विवाह के खिलाफ आवाज उठाई। देश के 20 राज्यों में आयोजित होने वाले ये सम्मेलन 2030 तक बाल विवाह मुक्त भारत के सपने को पूरा करने की दिशा में एक और कदम हैं।
बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई और इसके पूरी तरह से खात्मे के लिए हमें एक बहुस्तरीय और बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता है।
इन परामर्श सम्मेलनों के जरिए हम सभी हितधारकों को साथ लाना चाहते हैं कि ताकि इस अपराध के खिलाफ हम सभी साझा लड़ाई लड़ सकें।
इस सामाजिक बुराई के खिलाफ लड़ाई में हम कोई कसर बाकी नहीं रखेंगे और इसमें शामिल लोगों ने जिस तरह की प्रतिबद्धता दिखाई है, उससे हमारे संकल्प और हौसले को और बल मिला है।”
सम्मेलन में कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेंस फाउंडेशन (केएससीएफ) की भी भागीदारी रही। बाल विवाह के बच्चों पर होने वाले दुष्परिणामों के मद्देनजर इस सामाजिक बुराई को रोकने की जरूरत को रेखांकित करते हुए केएससीएफ के पार्टनरशिप एवं कैंपेन प्रमुख बिधान चंद्र ने कहा, “बाल विवाह को बच्चों के प्रति अपराध के तौर पर देखने की जरूरत है और इसीलिए इसे रोकना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
सरकारी एजेंसियों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों जैसे सभी हितधारकों को राज्य से इस बुराई को उखाड़ फेंकने के लिए साझा प्रयास करने चाहिए।”
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और पंचायती राज विभाग के प्रधान सचिव राजीव एक्का ने बाल विवाह के खिलाफ लड़ाई में बचपन बचाओ आंदोलन के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा, “ बाल विवाह मूल रूप से महिला सशक्तीकरण से जुड़ा मुद्दा है।
तमाम सर्वेक्षणों में हम देखते हैं कि बाल विवाह के सबसे ज्यादा दुष्परिणाम महिलाओं को भोगने पड़ते हैं। इसलिए हमें खास तौर से महिलाओं को जागरूक और सशक्त बनाने की जरूरत है।
महिलाओं के सशक्तीकरण से बाल विवाह जैसी समस्याएं अपने आप दूर हो जाएंगी। बाल विवाह के खिलाफ राज्य की कार्ययोजना में इसको ध्यान में रखना होगा।
सिर्फ किसी संस्था के प्रयासों या फिर कानून से बाल विवाह की बुराई पर रोक नहीं लग सकती। इससे आजादी के लिए सरकार और समाज सभी को पहल करनी होगी।
खास तौर से पंचायत स्तर पर चुने हुए प्रतिनिधियों को इसमें अहम भूमिका निभानी होगी तभी बाल विवाह मुक्त भारत का सपना साकार हो सकेगा।”
बताते चलें कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-5 (2019-2021) के अनुसार देश में 20 से 24 साल की 23.3 प्रतिशत लड़कियों का विवाह उनके 18 वर्ष का होने से पूर्व ही हो गया था जबकि झारखंड में यह औसत 32.2 प्रतिशत है।
2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में हर साल 3.59 लाख बच्चों का विवाह 18 वर्ष की उम्र पूरी करने से पहले ही हो जाता है।
इसके बावजूद 2019-21 के दौरान राज्य में बाल विवाह के महज 10 मामले दर्ज हुए। सम्मेलन में इस बात पर चिंता जाहिर की गई और जनता, सरकार और सुरक्षा एजेंसियों से बाल विवाहों के खिलाफ ठोस व गंभीर कदम उठाते हुए साझा प्रयासों की अपील की गई।