मेदांता, रांची में पहली बार एंडोस्कोपी प्रक्रिया से पैंक्रियायटिस का सफल इलाज
RANCHI : मेदांता अब्दुर रज्जाक अंसारी मेमोरियल वीवर्स हॉस्पिटल, रांची में एक्यूट पैंक्रियायटिस का इलाज एंडोस्कोपी आल्ट्रासाउंड (ई.यू.एस) प्रक्रिया के जरिये किया गया।
पेट में असहनीय दर्द, बार-बार बुखार आने तथा उल्टियां होने से परेशान राज्य के रामगढ़ के 35 वर्षीय युवक को ई.यू.एस. प्रक्रिया के जरिये राहत दिलाई गई।
इस प्रक्रिया को सिस्टोगैस्ट्रोस्टमी कहा जाता है।
एक्यूट पैंक्रियायटिस के बाद मरीजों में गंदे संक्रमित तरल पदार्थ और मलबे का संग्रह विकसित होता है।
जिसे स्यूडोसिस्ट या डब्लूओएन कहा जाता है। इस प्रक्रिया में पेट के अंदर से संग्रह में एंडोस्कोपी (कोई सर्जरी नहीं) के माध्यम से पानी की निकासी के लिए एक छेद बनाया जाता है और एक धातु का स्टेंट लगाया जाता है।
जिसके माध्यम से मरीज को तत्काल राहत के साथ हानिकारक सिस्ट को आंतरिक रूप से सूखा दिया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद अब मरीज पूरी तरह स्वस्थ है और उसे कोई तकलीफ नहीं है।
गुरूवार को प्रेस क्लब, रांची मे आयोजित प्रेस वार्ता मे ई.यू.एस. प्रक्रिया करने वाले मेदांता हाॅस्पिटल के डाॅ. संगीत सौरभ ने बताया कि गत मार्च महीने में पेट में दर्द, बुखार और उल्टियां होने के बाद मरीज को एक अन्य हाॅस्पिटल में दिखाया गया।
वहां सुधार न होने के बाद मरीज को मेदांता हाॅस्पिटल लाया गया। शुरूआती दौर में उसे एंटीबायोटिक्स पर रखा गया।
लेकिन दस दिनों के बाद फिर उसे तकलीफें शुरू हो गयीं। तब सिटी स्कैन कराया गया तो पता चला कि मरीज को एक्यूट पैंक्रियायटिस हो गया है।
उन्होंने बताया कि पैंक्रियायटिस होने के कारण जो पैंक्रियाज के चारों तरफ मवाद जमा होता है, वह संगठित होकर गोला का रूप ले लेता है।
इसे स्यूडोसिस्ट या डब्लूओएफ कहते हैं। ऐसे 70 प्रतिशत मरीज इलाज से ठीक हो जाता है।
लेकिन 20 से 30 प्रतिशत मरीज में दर्द, बुखार और उल्टियों की शिकायत आती है।
पहले इस स्थिति में मरीज की सर्जरी की जाती थी, लेकिन अब ई.यू.एस. से प्रक्रिया पूरी कर इसे ठीक किया जाता है।
यह सुविधा झारखंड में सिर्फ मेदांता हाॅस्पिटल में उपलब्ध है।
डाॅ. सौरभ ने बताया कि अब पैंक्रियायटिस की बीमारी काफी बढ़ रही है।
यह अत्याधिक गंभीर बीमारी है जो सर्वोत्तम इलाज के बावजूद 10 प्रतिशत मामले में जानलेवा हो सकती है।
गाॅलस्टोन और शराब पीना इसके दो प्रमुख कारण हैं।
इस बीमारी में पैंक्रियाज और आसपास की टिश्यू में सूजन हो जाता है जिसकी वजह से 20 से 30 प्रतिशत मरीजों में आर्गन फेलियर हो सकता है।
इस बीमारी में पैंक्रियाज में सूजन हो जाता है जिसका प्रभाव अन्य अंगों पर भी पड़ सकता है।