हूल विद्रोह इतिहास की सबसे बड़ी क्रांति है, भुलाया नहीं जा सकता: सुदेश महतो
आजसू पार्टी ने राज्यभर में मनाया हूल दिवस, वीर शहीदों को किया गया नमन
RANCHI : अंग्रेजी सरकार की गलत नीतियों और महाजनी प्रथा के विरोध में हुए हूल विद्रोह ने देश में आजादी की लड़ाई का शंखनाद किया था।
हूल विद्रोह इतिहास की सबसे बड़ी क्रांति है, भुलाया नहीं जा सकता।
संताल हूल के दौरान वीर शहीद सिदो-कान्हू के नेतृत्व में हजारों क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत दी।
इतिहास के पन्नों में उन सभी वीर शहीदों को उचित स्थान दिलाने के लिए हम सभी को आगे आने होगा।
हमारा उद्देश्य इन वीरों की गाथा को राज्य ही नहीं देश के हर एक व्यक्ति तक पहुँचाना है।
उक्त बातें पार्टी अध्यक्ष सुदेश कुमार महतो ने जोन्हा में हूल दिवस के अवसर पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में संताल हूल के महानायक सिदो कान्हू को श्रद्धांजलि अर्पित करने के दौरान कही।
उन्होंने कहा कि यह वक्त सभी झारखंडियों को एकजुट कर एक नई सामाजिक एवं राजनीतिक चेतना जागृत करने की है।
वीर शहीदों के स्वशासन के सपनों को साकार कर समृद्ध और खुशहाल झारखंड की परिकल्पना को पूरा करने के लिए हमें मिलकर एक नई हूल क्रांति की नींव रखनी होगी।
अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह के प्रतीक हूल दिवस पर सभी जिला एवं प्रखंड में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया।
इस दौरान पार्टी पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं द्वारा अमर शहीद सिदो-कान्हू, चांद-भैरव,
फूलो-झानो व अन्य क्रांतिकारी सपूतों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
मौके पर संताल विद्रोह के महानायकों की संघर्ष गाथा को याद कर उनके बलिदानों को जन जन तक पहुँचाने का संकल्प लिया गया।
पार्टी पदाधिकारियों ने सिदो-कान्हू को किया नमन
रांची स्थित सिदो-कान्हू पार्क में हूल दिवस के मौके पर पार्टी पदाधिकारियों द्वारा अमर वीर शहीद सिदो कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई।
इस दौरान पार्टी के केंद्रीय मुख्य प्रवक्ता डॉ. देवशरण भगत ने कहा कि झारखंड के वीरों ने कभी भी बाहरी दखल,
जुल्म और अत्याचार को बर्दाश्त नहीं किया। अपने हक और अधिकारों के लिए संघर्ष करना हर झारखंडी की पहचान है।
सिदो कान्हू, चांद भैरव, फूलो झानो समेत झारखंड के वीर बलिदानियों की संघर्ष गाथा हम सभी के लिए प्रेरणास्त्रोत है।
युवाओं को इस संघर्ष गाथा को आत्मसात करने की आवश्यकता है। इस मौके पर केंद्रीय मुख्य प्रवक्ता डॉ देवशरण भगत, महासचिव सुधीर यादव, भरत काशी,
पारसनाथ उरांव, जलनाथ चौधरी, सतेंद्र सिंह, बनमाली मंडल, रमेश गुप्ता, विरेंद्र प्रसाद, टी के मुखर्जी,
दयाशंकर झा, डॉ पार्थ पारितोश, हरिश कुमार, ओम वर्मा, चेतन, राहुल तिवारी, अजीत सिंह, इत्यादि मुख्य रूप से उपस्थित थे।