MP में बाघों की मौत पर कंट्रोल, महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा बाघ मरे ,शिकारियों में बढ़ा खौफ
ट्रैप कैमरों से निगरानी, हाथियों से बढ़ाई गश्त तो शिकारियों में बढ़ा खौफ, इसलिए सुधरे हालात
भोपाल। टाइगर स्टेट मप्र बाघों की मौत में हमेशा आगे रहा है लेकिन बीते 10 वर्ष में पहली बार ऐसा हुआ है, जब महाराष्ट्र में बाघों की मौत ज्यादा हुई। प्रदेश में 785 बाघों में 37 यानी 4.71 फीसदी बाघों ने दम तोड़ा है। जबकि महाराष्ट्र में कुल बाघों की संख्या 444 में 37 यानी 8.33 बाघों की मौत हुई है।
जो 2022 में हुई कुल 23 मौतों से 14 अधिक है। मौतों का मुख्य कारण अंतरराज्यीय गिरोह है, जो महाराष्ट्र में आधा दर्जन से अधिक बाघों का शिकार कर चुका है। कुछ दिनों पहले ही इस गैंग का मास्टर माइंड कल्ला बावरिया सागर के पास से पकड़ाया है।
हालांकि मप्र में भी अब तक 37 बाघों की मौत हो चुकी है जो कि बीते वर्ष 2022 में हुई कुल मौत 34 से तीन अधिक है, लेकिन बीते कुछ वर्षों की तुलना में यह आंकड़ा कम है। दोनों राज्यों में इन मौतों की मुख्य वजह बाघों के बीच आपसी संघर्ष और शिकार समेत अन्य कारण हैं। महाराष्ट्र में अधिक मौतों की वजह बावरिया गैंग का सक्रिय होना है तो मप्र में बाघों की मौत में बीते वर्षों की तुलना में कमी की वजह विभाग द्वारा निगरानी बढ़ाना है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की रिपोर्ट के अनुसार मौत के ये आंकड़े 20 नवंबर 2023 तक के हैं।
महाराष्ट्र का ट्रेंड बता रहा है कि वहां शिकार की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं। शिकारियों के असर से मप्र भी अछूता नहीं रह सकता। उल्लेखनीय है कि बाघ आंकलन रिपोर्ट 2022 के अनुसार मप्र के पास 785 है, जो किसी भी प्रदेश की तुलना में सर्वाधिक है। यही स्थिति बाघ आकलन रिपोर्ट 2018 में भी थी, तब 526 बाघ थे। मप्र के पास टाइगर स्टेट का दर्जा बरकरार है लेकिन इन रिकार्डों के अलावा बाघों की मौत के मामले में भी मप्र आगे है। 2022 में 35 व वर्ष 2021 में 41 मौतें हुई थी।
मौतों की मुख्य वजह बाघों के बीच आपसी संघर्ष और शिकार
वन्यप्राणी विशेषज्ञ आरके दीक्षित का कहना है कि एक बाघ को स्वतंत्र रूप से विचरण करने के लिए कम से कम १०० वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल चाहिए, जो कि दोनों ही राज्यों में नहीं मिल रहा है। जिसकी वजह से ये भोजन के लिए कोर एरिया से आबादी तक पहुंच रहे हैं, जहां शिकारियों की नजर पड़ जाती है। ये अपने भ्रमण क्षेत्र से आबादी तक पहुंचने के लिए एक-दूसरे के भ्रमण क्षेत्रों में प्रवेश कर रहे हैं, जहां इनके बीच आपसी संघर्ष की स्थिति पैदा हो रही है।
मप्र में जिस हिसाब से बाघों की आबादी है, उस अनुरूप आपसी संघर्ष को रोका नहीं जा सकता। फिर भी प्रयास कर रहे हैं, जिसका नतीजा यह है कि पिछले वर्षों की तुलना में कम मौतें हो रही हैं। कुछ मौतें करंट लगने और दुर्घटनाओं के कारण हुई है। मप्र का यह आंकड़ा इसलिए भी अधिक लगता है, क्योंकि हम प्रत्येक मौतों को रिकार्ड में ले रहे हैं। – शुभरंजन सेन, एपीसीसीएफ, वाइल्ड लाइफ, मप्र