भाजपा-कांग्रेस ने जिन 31 विधायकों के टिकट काटे, 27 नए प्रत्याशी चुनाव जीत
बात टिकट कटने वाले विधायकों की करें तो भाजपा व कांग्रेस ने 31 के टिकट काटे। अन्य को मौका दिया गया। इनमें से 27 प्रत्याशी चुनाव जीत गए हैं या खबर लिखे जाने तक लीड बनाए हुए थे। भाजपा ने 26 विधायकों के टिकट काटे थे। इनमें से 2३ और कांग्रेस ने पांच के टिकट काटे थे, जिनमें से चार जीते हैं।भाजपा और कांग्रेस दोनों ने प्रत्याशियों के टिकट बदले। उसका खामियाजा भुगतना पड़ा।
वर्ष 2023 का चुनाव कई मायनों में अहम है। अहम इसलिए क्योंकि उम्मीदवार घोषित होने से लेकर प्रचार और मतणगना और फिर नतीजे आने तक सभी समीकरण उलट-पुलट हो गए। नेताओं के गुणा-भाग फेल हो गए। कई नतीजों ने चौंकाया तो कई सीटों के परिणामों ने प्रत्याशियों, नेताओं और समर्थकों को हताश भी किया। बात टिकट कटने वाले विधायकों की करें तो भाजपा व कांग्रेस ने 31 के टिकट काटे। अन्य को मौका दिया गया। इनमें से 27 प्रत्याशी चुनाव जीत गए हैं या खबर लिखे जाने तक लीड बनाए हुए थे। भाजपा ने 26 विधायकों के टिकट काटे थे। इनमें से 2३ और कांग्रेस ने पांच के टिकट काटे थे, जिनमें से चार जीते हैं।
इस तरह भाजपा को तीन व कांग्रेस को एक सीट का नुकसान हुआ है। काटे गए मौजूदा विधायक की एक सीट पर नुकसान उठाना पड़ा है। इसी तरह 2018 में बसपा ने दो, सपा ने एक व निर्दलियों ने चार सीटें जीती थीं। सीट गंवाई भाजपा ने बसपा से पूर्व में जीती दोनों सीटें छीन लीं। बिजावर से सपा को मुंह की खानी पड़ी। भाजपा ने सपा विधायक राजेश शुक्ला को उम्मीदवार बनाकर चुनाव जीता। बुरहानपुर से पिछला चुनाव निर्दलीय जीतने वाले सुरेंद्र सिंह को सीट गंवानी पड़ी है। वह कांग्रेस टिकट पर चुनाव लड़े थे, जबकि जीत भाजपा की अर्चना चिटनीस को मिली है।
सरकारी योजनाओं से बनता गया जीत का रास्ता
भाजपा की प्रचंड जीत की राह निकालने में शिवराज सरकार की योजनाओं ने असर दिखाया। इसमें लाड़ली योजना के अलावा दूसरी योजनाएं भी रहीं, जिनसे आम आदमी को फायदा हुआ। सीएम सीखो-कमाओ योजना, मेधावी विद्यार्थी, प्रतिभा प्रोत्साहन सहित अन्य योजनाओं के कारण भी प्रचंड जीत का रास्ता निकला। मुफ्त राशन से लेकर ई-स्कूटी, लैपटॉप वितरण, आहार अनुदान योजना, किसान कल्याण योजना, चरण पादुका योजना सहित अन्य गरीब कल्याण की योजनाओं के जरिए मतदाताओं को पक्ष में करने में भाजपा सफल रही। महाकाल लोक का निर्माण सहित अन्य लोक से भारतीय संस्कृति और प्राचीनता को भी नया स्वरूप दिया गया। इससे सनातन के मुद्दे पर वोटबैंक बढ़ा।
बूथ नेटवर्क की मजबूती
भाजपा ने पहली बार इस चुनाव में 64600 बूथों तक मैदानी और डिजिटल नेटवर्क तैयार किया। मोदी ने 25 सितंबर को भोपाल से देशभर के 10 लाख बूथ कार्यकर्ताओं को बूथ मजबूत करने का संदेश दिया था। असर ऐसा रहा कि मप्र सहित छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी भगवा पताका लहरा गई। बूथ नेटवर्क के कारण मप्र भाजपा को दूसरे राज्यों के लिए मॉडल बताया गया। तीन साल पहले ये नेटवर्क इतना नहीं था। इसी नेटवर्क के बूते कांग्रेस के कई दिग्गजों को भाजपा ने मात दी।
आर्थिक प्रबंधन से विकास
शिवराज सरकार में आर्थिक प्रबंधन ने भी विकास की राह खोली, जिससे जीत और मजबूत हुई। 2003 में प्रदेश का बजट 23 हजार करोड़ था जो अब बढ़कर 3.14 लाख करोड़ रुपए हो गया है। तब अधोसंरचना बजट 3878 करोड़, जबकि 2023 में बढ़कर 56256 करोड़ हो गया। 2003 में मप्र की औद्योगिक विकास दर 0.61 प्रतिशत होती थी। 2023 में 24 प्रतिशत हो गई। आर्थिक विकास दर तब 4.43 प्रतिशत थी, जो अब 16.43 प्रतिशत हो गई है। पहले प्रति व्यक्ति आय 11,718 रुपए थी। अब 1.40 लाख रुपए हो गई है।
कांग्रेस ने सात सीटों पर बदले थे प्रत्याशी, एक पर ही मिली जीत
कांग्रेस ने 230 सीटों पर प्रत्याशी घोषित करने के बाद इनमें से 7 पर चेहरे बदल दिए थे। इनमें एक सीट दतिया से राजेंद्र भारती को मिली है। उन्होंने गृहमंत्री नरोत्तम को हराया। बाकी के 6 सीटों पर प्रत्याशी बदलने के बावजूद कांग्रेस हारी है। वहीं भाजपा ने बालाघाट सीट पर प्रत्याशी बदलने का मन बनाया था, जिसे टाल दिया और पूर्व मंत्री गौरीशंकर बिसेन को ही चुनाव लड़ाया था जो कांग्रेस की अनुभा मुंजारे से हार गए।