नेपानगर सीट पर जिसका कब्जा,सरकार उसकी बनती है 12 में से 6 बार बीजेपी, 5 बार कांग्रेस और एक बार जनता पार्टी की जीत

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मतगणना से पहले विधानसभा सीटों को लेकर मिथकों पर भी चर्चा हो रही है। बुरहानपुर जिले की नेपानगर सीट हॉट टॉपिक है। कहा जा रहा है कि यहां जिस पार्टी का विधायक बनता है, सरकार भी उसी की होती है।

आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित इस सीट पर 1990 का अपवाद छोड़ दें तो रिकाॅर्ड भी यही बता रहा है। इसके अलावा और भी मिथकों पर राजनीतिक गलियारों में बातें हो रही हैं।

नेपानगर सीट का इतिहास

1977 में पहली बार विधानसभा चुनाव हुए। 2 बार उपचुनाव सहित कुल 12 चुनाव में से 6 बार बीजेपी, 5 बार कांग्रेस और एक बार जनता पार्टी ने जीत दर्ज की। ये सीट 2008 से आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हो गई। उससे पहले सामान्य थी।

सरकार और सीट का अल्टा-पल्टा

2018 के चुनाव में भाजपा से मंजू राजेंद्र दादू और कांग्रेस की सुमित्रा देवी कास्डेकर के बीच मुकाबला था। कास्डेकर 1264 वोटों से जीतीं और सरकार कांग्रेस की बनी। 2020 में कास्डेकर कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आईं और सरकार भी भाजपा की बन गई। कुछ महीनों बाद उपचुनाव में कास्डेकर ने लंबे अंतर से जीत दर्ज की।

इन्हें मिली जीत

2020 उपचुनाव में भाजपा से सुमित्रा कास्डेकर।
2018 में कांग्रेस की सुमित्रा देवी कास्डेकर।
2016 उपचुनाव में भाजपा की मंजू दादू।
2013 में भाजपा से राजेंद्र दादू।
2008 में भाजपा से राजेंद्र दादू।
2003 में भाजपा से अर्चना चिटनीस।
1998 में कांग्रेस से लिखीराम कावरे।
1993 में कांग्रेस से लिखीराम कावरे।
1990 में कांग्रेस से लिखीराम कावरे।
1985 में कांग्रेस से तनवंतसिंह कीर।
1980 में बीजेपी से भुवनलाल गिरिमाजी।
1977 में जनता पार्टी से बृजमोहन मिश्रा।

विधानसभाओं के मिथक ये भी…

देपालपुर: एक बार भाजपा तो दूसरी बार कांग्रेस की हाेती है जीत।
बदनावर: हर बार जनता अलग-अलग पार्टी को मौका देती है। ये परंपरा उपचुनाव में भी जारी थी।
उज्जैन दक्षिण: उज्जैन दक्षिण में कोई भी नेता तीन बार विधायक नहीं बना। यहां या तो राजनीतिक दल ने एक ही नेता को तीसरी बार टिकट नहीं दिया या फिर जनता ने तीसरा चुनाव हरा दिया।
महिदपुर: भाजपा-कांग्रेस से प्रत्याशियों को मौके मिले, लेकिन कोई भी लगातार तीन बार विधायक नहीं बना।
बड़नगर: ट्रेंड फिक्स नहीं है, लेकिन लगातार दो बार से ज्यादा कोई नहीं जीता।

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