चुनाव आयोग के गाइडलाइन ने बढ़ाई प्रत्याशीयों की धड़कन
नई दिल्ली (New Dehli) ।चुनाव आयोग ने व्यय के लिए सामग्रीवार जो दर तय की है, उसका लेखा-जोखा रखना किसी चुनौती से कम नहीं है। लेखा-जोखा रिटर्निंग आफिसर से सत्यापित कराना पड़ता है। व्यय पर्यवेक्षक इसकी जांच भी कर सकते हैं।
एक प्रत्याशी 40 लाख रुपये तक व्यय कर सकता है। यह सीमा पिछले चुनाव में 28 लाख रुपये थी। निर्वाचन व्यय की राशि तो बढ़ गई, पर इसका लेखा-जोखा रखना प्रत्याशियों के लिए सिरदर्द बन गया है।
लेखा-जोखा रखना किसी चुनौती से कम नहीं
दरअसल, आयोग ने व्यय के लिए सामग्रीवार जो दर तय की है, उसका लेखा-जोखा रखना किसी चुनौती से कम नहीं है। रैली, रोड शो, सम्मेलन आदि में यदि कार्यकर्ता प्रत्याशी के नाम की टोपी पहनते हैं तो डेढ़ रुपये, कट चाय पिलाते हैं तो पांच रुपये, समोसा-कचौड़ी खिलाते हैं तो 10 रुपये के हिसाब से व्यय जुड़ेगा। इसका लेखा-जोखा रिटर्निंग आफिसर से सत्यापित कराना पड़ता है। व्यय पर्यवेक्षक इसकी जांच भी कर सकते हैं। इसमें किसी प्रकार की गड़बड़ी पाए जाने पर चुनाव के बाद समस्या भी आ सकती है। जटिल काम होने और चुनाव आयोग के डंडे का भय होने के कारण प्रत्याशी चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) की मदद ले रहे हैं।
सबसे कठिन काम प्रतिदिन के व्यय का लेखा-जोखा
चुनाव में प्रत्याशी के लिए सबसे कठिन काम प्रतिदिन के व्यय का लेखा-जोखा रखना है। इसके लिए प्रत्येक प्रत्याशी को एक रजिस्टर दिया जाता है। इसमें जिस मद में प्रत्याशी राशि व्यय कर रहे हैं, उसका पूरा लेखा-जोखा रखना होता है। बिल आदि की प्रतियां भी सुरक्षित रखनी होती हैं। प्रत्याशी के पास इतना समय नहीं होता है कि वे स्वयं इसे संधारित कर सकें। इसके लिए विश्वासपात्र व्यक्ति ऐसे व्यक्ति को जिम्मेदारी दी जाती है जो इसका अभ्यस्त हो। कुछ प्रत्याशी इसके लिए सीए की सेवाएं लेते हैं तो कुछ मार्गदर्शन।
सीए राजेश जैन का कहना है कि अपना लेखा-जोखा सही रखने और व्यय के प्रबंधन के लिए प्रत्याशी या उनके अधिकृत व्यक्ति संपर्क करते हैं। हमें उन्हें मार्गदर्शन दे देते हैं और जो सीए की सेवाएं लेना चाहते हैं, उन्हें वह भी उपलब्ध कराई जाती है। दरअसल, लेखा-जोखा रखने के लिए जो प्रारूप निर्धारित है, वह काफी जटिल है।
प्रदेश कांग्रेस ने तो बाकायदा दिशा-निर्देश भी जारी किए
लेखा-जोखा रखने में कोई चूक न हो, इसके लिए प्रदेश कांग्रेस ने तो बाकायदा दिशा-निर्देश भी जारी कर दिए हैं। चुनाव आयोग से संबंधित कार्यों के प्रभारी जेपी धनोपिया ने बताया कि निर्वाचन व्यय के संधारण में काफी सावधानी रखनी होती है। प्रत्याशी नामांकन भरने से लेकर मतगणना होने की अवधि तक जो व्यय करता है, उसका हिसाब आयोग को देना होता है। प्रतिदिन रजिस्टर में व्यय उल्लेखित करना अनिवार्य है और हर तीन दिन में आयोग द्वारा नियुक्त व्यय पर्यवेक्षक से हस्ताक्षरित एवं सत्यापित होना चाहिए। प्रत्येक व्यय आयोग द्वारा निर्धारित मापदंड के अनुरूप हो, यह सुनिश्चित करें और यह भी ध्यान रखें कि प्रत्याशी स्वयं या उसका चुनाव संचालक स्टार प्रचारक के साथ हवाई जहाज, हेलीकाप्टर, रेल या वाहन में यात्रा न करें क्योंकि ऐसा होने पर स्टार प्रचारक के कुल व्यय का 50 प्रतिशत खर्च प्रत्याशी के व्यय में जुड़ जाएगा।
सोने से पहले जुटाते हैं जानकारी
ग्वालियर में भाजपा के उम्मीदवारों का ब्योरा देने वाले चंद्रप्रकाश गुप्ता बताते हैं कि रात को सोने से पहले दिन भर के खर्च की जानकारी जुटाते हैं, उन्हें प्रपत्र में भरते हैं ताकि पेंडेंसी न रहे और हिसाब-किताब सही बना रहे। पिछले कई चुनावों में प्रत्याशियों को वित्तीय सलाह और खर्च का ब्योरा सही देने वाले चार्टर्ड अकाउंटेंट आशीष पारख बताते हैं कि खर्च का ब्योरा देने की चिंता चुनाव जीतने वाले उम्मीदवारों को ज्यादा होती है। वे निर्वाचन पत्र दाखिल करने के पहले और खर्च का फाइनल ब्योरा देने के पहले संपर्क करते हैं। अभी यह संपर्क शुरू हो चुका है।
विश्वसनीय की तलाश
इंदौर जिले की सभी नौ विधानसभा सीटों पर भाजपा-कांग्रेस के प्रत्याशी घोषित हो चुके हैं। दोनों ही पार्टियों के प्रत्याशियों ने सीए से संपर्क शुरू कर दिया है। सीए अभय शर्मा के अनुसार चुनाव आयोग के प्रारूप में दिए गए कालमों में प्रत्याशियों के खर्च का ब्योरा जुटाना पारंपरिक मुंशी की समझ से परे होता है। प्रत्याशी विशेष ध्यान रख रहे हैं कि जिसे भी वे अपने चुनावी खर्च का ब्योरा रखने की जिम्मेदारी सौंपें, वह विश्वसनीय हो। प्रतिदिन शाम के समय प्रत्याशी सीए के साथ बैठक भी कर रहे हैं। सीए कीर्ति जोशी के अनुसार प्रत्याशियों ने संपर्क करना शुरू कर दिया है। उनके नामांकन फार्म जमा करते ही सीए की जिम्मेदारी शुरू हो जाएगी।
सही जानकारी देने पर है जोर
नामांकन फार्म वितरण के पहले दिन महाकोशल-विंध्य के प्रमुख शहर जबलपुर में 37 उम्मीदवारों ने फार्म लिए। जबलपुर के चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) अनुराग रावत बताते हैं कि इस बार उम्मीदवार संपत्ति की सही जानकारी देने पर ज्यादा जोर लगा रहे हैं। उनकी ओर से राय-मशविरा का दौर शुरू है। उम्मीदवारी की दौड़ में शामिल कई नेताओं ने अपनी संपत्ति रिश्तेदारों के नाम भी कर दी है।