अखिलेश यादव जनाधार तलाशती सपा को लगा झटका

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भोपाल अखिलेश यादव और उनकी पार्टी अपना जनाधार खोज रही है, इंडिया गठबंधन के सहारे उम्मीद थी कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस उसे हिस्सेदारी देगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस ने अखिलेश के साथ मोहब्बत नहीं दिखाई और समझौते में तीन सीटें भी देने से इनकार कर दिया। हालांकि अंदरखाने इतना जरूर किया कि कुछ जगहों पर उम्मीदवार जरूर सपा के हिसाब से उतार दिए।

समाजवादी पार्टी इंडिया गठबंधन का एक मजबूत हिस्सेदार है, लेकिन वह मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को पानी पी—पी कर कोस रही है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव लगातार कांग्रेस पर हमलावर हो रहे हैं और कह रहे हैं कि कांग्रेस को वोट न दें। इतना ही नहीं, उन्होंने अपनी खीज निकालते हुए यह भी कह दिया कि जब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस गठबंधन के लिए आएगी, तब वह इसका बदला लेंगे।

आखिर अखिलेश यादव इतने गुस्से में क्यों हैं? क्या वाकई में कांग्रेस ने उन्हें धोखा दिया है या फिर वह कांग्रेस के सहारे मध्यप्रदेश में खुद को मजबूत करने का सपना देख रहे थे? वैसे अब अंदर की कहानी यह भी है कि अखिलेश यादव के बयानों से कांग्रेस भी नाराज है, लेकिन वह चुप है… जवाब आने वाले समय में कांग्रेस देगी।

दरअसल, अखिलेश यादव के गुस्से को समझने से पहले जरा पिछले तीन विधानसभा चुनावों पर नजर डाल लेते हैं। 2008 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने 187 उम्मीदवार मध्यप्रदेश में उतारे थे, जिसमें से एक सीट पर जीत मिली और 183 पर पार्टी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई। समाजवादी पार्टी को 2.46 फीसदी वोट मिले। उसके बाद 2013 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर ताकत लगाई और 164 उम्मीदवार उतारे, जिसमें से 161 की जमानत जब्त हो गई, एक भी उम्मीदवार जीतने में कामयाब नहीं रहा। 1.70 फीसदी ही वोट मिले, जो पिछली बार से कम हो गए। इसके बाद 2018 के चुनावों में समाजवादी पार्टी की हिम्मत जवाब दे गई और सिर्फ 52 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, जिसमें से एक सीट जीतने में कामयाब रहे और 45 पर जमानत जब्त हो गई और कुल 6.26 फीसदी वोट मिले, जो अब तक के सबसे ज्यादा थे

सपा के बढ़ते वोट से कांग्रेस मुनाफे मे

इन तीन चुनावों में अचानक से समाजवादी पार्टी का वोट बढ़ा तो दूसरी ओर बहुजन समाज पार्टी का वोट तेजी से नीचे की ओर गिर गया। 2008 में बसपा को 9.08 फीसदी वोट मिला और उनके सात विधायक सदन में पहुंचे। जबकि 2013 में 6.42 फीसदी वोट मिले और चार विधायक सदन के भीतर पहुंचे। 2018 में वोट फीसदी गिरकर 5.11 फीसदी पर आ गया, बावजूद इसके दो विधायक विधानसभा के भीतर पहुंचने में कामयाब रहे।

समाजवादी पार्टी की नजर इसी वोट पर है जो बसपा से छिटक रहा है और इस वोट पर समाजवादी पार्टी अपना हिस्सा जमाना चाहती है। हालांकि बसपा का वोट अगर कम हुआ तो कांग्रेस का वोट फीसदी बढ़ा है। यानि बसपा का वोट सपा को जाने के बजाय कांग्रेस के खाते में आ रहा है। जबकि समाजवादी पार्टी के वोट फीसदी बढ़ने से उसे कोई नुकसान नजर नहीं आ रहा है।

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