भारत में रेल हादसों का इतिहास भयंकर है, इसे रोकिए ! यात्री मरने के लिए नहीं है

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– नरेंद्र भारती

आखिर कब तक रेल हादसों में बेमौत मरते लोग यह एक यक्ष प्रश्न बन गया है, भीषण रेल हादसे कब रुकेंगे आंध्रप्रदेश में एक बार फिर लाशों के ढेर लग गए, लाशों को ढांपने के लिए कफन कम पड़ गए। चारों तरफ लाशों का अंबार लग गया है दर्दनाक रेल हादसा आंध्रप्रदेश में घटित हुआ । आंध्रप्रदेश के विजयनगरम जिले में विशाखापतनम प्लासा ट्रेन ने विशाखापत्तनम रायगढ़ ट्रेन क़ो टककर मार दी जिसमें दर्जनों लोगों की दर्दनाक मौत हो और सेकड़ो लोग घायल हो गए।

रेल यात्रा दिन प्रतिदिन असुरक्षित होती जा रही है और यात्री असमय काल के गाल में समाते जा रहे हैंl चार दिन पहले एक ट्रेन के तीन डिब्बे जल जाने से कुछ यात्री झूलस गए थेl गत महीने उड़ीशा के बालासोर में तीन रेलगाड़ियों की भिड़तं से हुए भीषण हादसे में 288 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई थी।हादसे में 747 लोग गंभीर रुप से घायल हो गए थे। दर्दनाक हादसे से हर भारतीय गमगीन है।यह हादसा बहुत ही दर्दनाक था हर तरफ लाशें ही लाशें बिखरी थी लोग बदहवाश होकर अपनों को ढूुढ रहे थे जो चिरनिंद्रा में सो गए थे।देश में रेलगाड़ीयो के भीषण हादसों में प्रतिवर्ष हजारों यात्री बेमौत मारे जा रहे है रेलगाड़ीयो के हादसे थमने का नाम नहीं ले रहे हैं।

अक्तूबर 2018 को अमृतसर में रेल पटरियों पर जमा भीड़ को कुचल डाला था इसमें 59 लोग मारे गए थे।यदि पिछले हादसों से सबक सीखा होता तो ऐसा मौत का मंजर देखने को न मिलता।यह कोई नया हादसा नहीं है पहले भी ऐसे बहुत से हादसे लोगों की जिन्दगियां छिन चुके हैं। पिछले लगभग दस वर्षों में हजारों लोग इन हादसों का दंश झेल चुके हैं कभी आपसी भिडंत के कारण लोगों की जानें जाती है जो कभी आगजनी के कारण यात्री मारे जाते हैं। और कभी पटरियों पर मोैत मंडराती है और कई घरों के चिरागों को असमय बूझा देती है। आंकडो के अनुसार 6 जून 1981 को बिहार में मानसी व सहरसा के पुल के उपर से गुजरतें समय रेलगाडी के बागमती नदी में गिर जाने से 800 यात्री असमय काल का ग्रास बने थे 20 अगस्त 1995 को दिल्ली से कानपुर के लिए चलने वाली पुरुषेतम एक्सप्रैस उतर प्रदेश के फिरोजाबाद में कालिंदी एक्सप्रैस से टकरा गई थी इस हादसे में 360 से अधिक लोग मारे गए थे।

26 नवंबर 1998 को जम्मू तवी सियालदाह एक्सप्रैस गोल्डन टेंपल एक्सप्रैस के साथ हादसे की शिकार हो गई इस हादसे में 280 से अधिक लोग मारे गए थे।22 जून 2001 को केरल में मंगलौर -चेन्नई मेल कड़ाकूली नदी में गिर गई इसमें 40 लोग मारे गये थे 4 जून 2002 को उतर प्रदेश में कासगंज एक्सप्रैस रेलवे क्रासिंग पर एक बस से टकरा गई थी जिसमें 34 लोग मारे गये थे। 10 दिसंबर 2002 को कोलकता से नई दिल्ली आ रही राजधानी एक्सप्रैस बिहार में एक पुल पर पटरी से उतर गइे जिसमें 120 लोग मारे गये थे। वर्ष 2004 में जालंधर में ट्रेनों की भिडत के कारण 34 लोग मारे गयें थे। 9 नवंबर 2004 को पश्चिम बंगाल रेल हादसे में 40 लोग मारे गये 1 दिसंबर 2006 को भागलपुर में ट्रेन के पुल से गुजरते समय पुल का एक हिस्सा गिरने से 35 लोगों की मौत हुइ्र थी। 21 अक्तूबर 2009 को मथुरा में ट्रेन हादसे में 22 लोग मारे गये थे 28 जुलाई 2010 को पश्चिमी बंगाल में रेल पटरियों में तोडफोड के कारण ज्ञानेश्वरी एक्सप्रैस के 13 डिब्बे पटरियों से उतर गये और एक मालगाडी ने टक्कर मार दी इस भीषण हादसे में 148 लोग मारे गये थे।

20 सितंबर 2011 को मध्यप्रदेश में स्टेशन पर खडी इंदौर ग्वालियर एक्सप्रैस एक मालगाडी से टकरा जाने से 33 यात्री मारे गये थे।22 मई 2012 को बैंगलौर जा रही हम्पी एक्सप्रैस व मालगाडी टकराने से 25 लोग मारे गये थे 31 मई 2012को जौनपुर में दून एक्सप्रैस हादसे में सात लोग मारे गये थे। कामायनी एक्सप्रैस और मुम्बई से जबलपुर जा रही जनता एक्सप्रैस दोनो ट्रेनो के 10 डिब्बे पटरी से उतर गए और उफनती माचक नदी में गिर जाने से 11 महिलाओं और पांच बच्चों समेत कम से कम 29 यात्रीयो की मौत हो गई थी। ऐसा ही एक दर्दनाक हादसा रायबरेली के पास हुआ था जब ट्रेन पटरी से उतर गई थी और जिसमें 40 बेकसूर यात्री बेमौत मारे गए थे और 150 के लगभग घायल हो गए थे यह हादसा इतना भीषण था कि गैस कटर से डिब्बों को काटकर घायलों व मृतकों की लाशों को बाहर निकाला गया था।

इतने भयावह हादसों के बाद भी रेल प्रशासन की निंद्रा क्यों नहीं टूट रही है यह एक यक्ष प्रशन बनता जा रहा है यदि उचित उचाय किए गए होते तो यह हादसे रुक सकते थे लेकिन जब बड़ा हादसा हो जाता है तभी प्रशासन की तन्द्रा टूटती है। यह हादसे नहीं है सरासर हत्याएं है। ऐसी घोर लापरवाही करने वालों को कड़ी सजा देनी चाहिए जिनके कारण कई घरों में मातम छा गया और बच्चे अनाथ हो गये तथा कई माताओं व बहनों के सुहाग उजड गयें। मुआवजा इसका हल नहीं है। मुआवजे से मानव जीवन वापस नहीं लौट सकता। नेताओं को अपने मगरमच्छी आंसू बहाने के व्यवस्था में सुधार करना चाहिए ताकि देश के नागरिकों को सुविधा मिल सके और ऐसे हादसे रुक सके।

केन्द्र सरकार व रेलवे मंत्रालय को कारगर कदम उठाने होगें ताकि भविष्य में अनहोनी को टाला जा सके।यह जनहित में बेहद जरुरी चंद मिनटों में लोग लाशों में तब्दील हो गए घटनास्थल पर किसी का हाथ किसी का पैर और किसी का सिर का सिर गिरा था। शव क्षत-विक्ष हो चुके थे।लापवाही बरतने वालों को सजा दी जाए। लोगों ने कभी सपने मे भी नहीं सोचा होगा कि लोगों को मौत नसीब होगी। इसे प्रशासन की लापरवाही की संज्ञा दी जाए तो कोई आतिश्योक्ति नहीं होगी। हादसे में किसी ने अपना बच्चा खो दिया तो किसी के सिर से बाप का साया उठ गया।मुआबजा का मरहम उनके परिजनों के जख्म नहीं भर सकता। मुआवजा इसका समाधान नहीं है।सरकारें जितना पैसा मुआवजे के रुप में देती है अगर इससे व्यवस्था को सुधारा जाए तो अनमोल जिन्दगियां बच सकती हैं।हर हादसे के बाद जांच करवाई जाती है जो कुछ समय बाद ठंडे बस्तें में चली जाती है तब तक और हादसा हो जाता है।रेल हादसों का यह सिलसिला निरंतर बढता ही जा रहा है। पटरियों पर मौत रेंग रही है और सरकारें बहरी बनी हुई हैं।

बढ़ते रेल हादसों पर रेल मत्रालय को मंथन करना चाहिए ताकि याात्री की जान जोखिम में पडे।लापरवही बरतने वाले चालकों के उपर कानूनी कारवाई करनी चाहिए।रेलवे को इस घटना से सबक सिखना चाहिए।अगर अब भी लापरवाही बरती तो आने वाले दिनों में इन घटनाओं में इजाफा हो सकता है और यात्री असमय काल के गाल में समाते रहेंगे वक्त अभी संभलने का है। देश भर में ऐसे हादसे होते रहते है मगर रेलवे प्रशासन कोई सबक नहीं सीखता रेल पटरियों पर होने वाली मौतो से देश का कोई राज्य अछूता नहीं रहा है पटरियों पर मौत के आकडें घटने के बजाए बढ रहे हैं। इतने भयावह हादसों के बाद भी रेल प्रशासन की निंद्रा क्यों नहीं टूट रही है यह एक यक्ष प्रशन बनता जा रहा है यदि उचित उपाय किए गए होते तो यह हादसे रुक सकते थे लेकिन जब बड़ा हादसा हो जाता है तभी प्रशासन की तन्द्रा टूटती है।

यह हादसे नहीं है सरासर हत्याएं है। ऐसी घोर लापरवाही करने वालों को कड़ी सजा देनी चाहिए जिनके कारण कई घरों में मातम छा गया और बच्चे अनाथ हो गये तथा कई माताओं व बहनों के सुहाग उजड गयें। अब भले ही प्रशासन मुआवजा दे रहा हो मुआवजे से मानव जीवन वापस नहीं लौट सकता। नेताओं को अपने मगरमच्छी आंसू बहाने के बजाए व्यवस्था में सुधार करना चाहिए ताकि देश के नागरिकों को सुविधा मिल सके और ऐसे हादसे रुक सके।प्रशासन का इस दर्दनाक हादसे से सबक सिखना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे हादसों की पुनरावृति न हो सके। केन्द्र सरकार व रेलवे मंत्रालय को कारगर कदम उठाने होगें ताकि भविष्य में अनहोनी को टाला जा सके।यह जनहित में बेहद जरुरी है।

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