पेरेंटिंग मौजूदा समय में सबसे अहम और चुनौतीपूर्ण : हरिवंश
बच्चों की परवरिश पर वीना श्रीवास्तव की दो पुस्तकों का लोकार्पण
RANCHI: आज के समय में बच्चों की परवरिश सबसे महत्वपूर्ण एवं चुनौतीपूर्ण काम है. माता-पिता बच्चों के जीवन को एक दिशा देते हैंतथा रिश्तों, दृष्टिकोण एवं व्यवहार के पैटर्न की नींव रखते हैं।
यही नहीं इसी से भविष्य के समाज की दिशा-दशा भी तय होती है. यहबातें प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रेस क्लब में आयोजित लेखिका वीना श्रीवास्तव की पेरेंटिंग पर दो पुस्तकों – परवरिश करें तो ऐसे करें व खिलखिलाता बचपन : आदतें और संस्कार, के लोकार्पण समारोह में वक्ताओं ने कहीं।
लोकार्पण राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने किया। कार्यक्रम में राज्यसभा सांसद महुआ माजी मुख्य अतिथि थीं। कार्यक्रम की अध्यक्षता पद्मश्री अशोक भगत ने की।
मुख्य वक्ता वरिष्ठ पत्रकार अनुज सिन्हा थे।
प्रभात प्रकाशन के निदेशक पीयूष कुमार भी इस मौके पर मंच पर उपस्थित थे।
कार्यक्रम का संचालन साहित्यकार मुक्ति शाहदेव ने और धन्यवाद ज्ञापन ‘शब्दकार’ साहित्यिक संगठन की संगीता कुजार टाक ने किया।
कार्यक्रम में डा. वरिष्ठ साहित्यकार अशोक प्रियदर्शी, प्रमोद झा, प्रकाश दुवकुलिश, आशा सिंह, डा. सुशील अंकन, डा. कमल बोस, कुमार संजय, डा. अभिषेक, सारिकाभूषण, एम जेड खान, नसीर अफ़सर, रेहाना, राजीव थेपड़ा, दिनेश सिंह, सुनील बादल, ऋषि, सत्या शर्मा, संगीता कुजारा टाक, सुरिंदर कौर नीलम, प्रियंका कुमारी,
वंदना सिंहा, अंशुमिता, डा. राजश्री जयंती, नरेंद्र झा, नीरज नीर, आलोका, अनिता रश्मि, अपराजिता, रेखा जैन, कविता रानी, प्रिया सिंह, डा. मीरा, गिरिजा शंकर, सदानंद यादव, मृदुला, पीयूष बँका, अमरेन्द्र, आलोक सिंह,
सियाराम सरस, नेपाल सरैयावी, राकेश रमण, सुनीता अग्रवाल, संतोष मृदुला, इमरान, नंदनी, आदि अनेक साहित्यप्रेमी उपस्थित थे।
राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने कहा कि इस समय हमारे समाज का सबसे मुद्दा हमारे बच्चों की परवरिश का ही है. यह बात हर व्यक्ति को समझनी होगी।
मोबाइल और सोशल मीडिया के इस दौर में कहीं हम अपनी आने वाली पीढ़ी को कमतरी के अहसास और अवसाद से तो नहीं भरते जा रहे।
उन्होंने देश-विदेश के कई विद्वानों द्वारा इस संदर्भ में लिखी-कही गई बातों को उद्धृत किया।
लेखिका वीना श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तकों के संदर्भ में अपनी बात साझा करते हुए विषय वस्तु की जानकारी दी।
और बताया कि मौजूदा दौर मेंअपने बच्चों से संवाद चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इस चुनौती को स्वीकार ही करना पड़ेगा।
उन्होंने लेखन के दौरान माता-पिताओं और बच्चोंके साथ हुए अपने संवादों का जिक्र किया।
सांसद महुआ माजी ने कहा कि वीना श्रीवास्तव की ये पुस्तकें सभी माता-पिताओं को पढ़नी चाहिए।
संवाद शैली में लिखी इन पुस्तकों से शिशु से लेकर किशोरमन के मनोविज्ञान को समझने में मदद मिलेगी।
उन्होंने कहा कि साहित्यकारों को बच्चों के लिए भी लिखना चाहिए।
वे ऐसा करेंगे तो अपनी भाषा में पढ़ने की रुचि बच्चों में जगेगी और इसका असर पूरे समाज पर पड़ेगा।
पद्मश्री अशोक भगत ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि बच्चों को लेकर चिंताएं वाजिब हैं और इन पुस्तकों से युवा माता-पिताओं को बहुत मदद मिलेगी।
उन्होंने आदिवासी बच्चों को लेकर अपने अनुभव भी साझा किए. वरिष्ठ पत्रकार अनुज सिन्हा ने कहा कि बच्चों की परवरिश पर ये महत्वपूर्ण पुस्तकें हैं।
सभी वक्ताओं ने उम्मीद जाहिर की कि कार्यक्रम में बड़ी संख्या मौजूदरांची का प्रबुद्ध समाज इस कार्यक्रम में व्यक्त की गईं चिंताओं को लेकर सकारात्मक भूमिका अदा करेगा।
कार्यक्रम में बड़ी संख्या में शहर के लब्ध प्रतिष्ठ साहित्यकार, शिक्षक, पत्रकार, संस्कृतिकर्मी व प्रबुद्धजन उपस्थित थे।