फ़िल्म समीक्षा: दर्शकों को सीट से बांध कर रखने में सफल ‘गिन के दस’
मुंबई। इस सप्ताह रिलीज हुई फ़िल्म ‘गिन के दस’ की खूबी यह है कि युवा लेखक और निर्देशक सरीष सुधाकरन थ्रिल सस्पेंस के माध्यम से दर्शकों को शुरुआत से अंत तक अपनी सीट से बांध कर रखने में सफल रहे हैं। फ़िल्म की कहानी एक बेदर्द और बेरहम हत्यारे की है, जो 24 घंटे में गिन के दस लोगों की हत्या करता है। उसके पीछे उसका क्या मकसद है या उससे कोई और करवा रहा है, अंत में क्या वह मारा जाता है या पकड़ा जाता है, इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी होगी। यह एक महिला के बदले की स्टोरी भी है। फ़िल्म में इतने ट्विस्ट और सस्पेंस हैं कि दर्शक की जिज्ञासा बरकरार रहती है।
थ्रिल, रहस्य और ट्विस्ट से भरपूर फिल्म ‘गिन के दस’ एक अलग किस्म की फिल्म है। फिल्म में अविनाश गुप्ता, तृषाना गोस्वामी, हिमांशु शेखर, संजना देशमुख, अनिका आर्य, जाहिद अहमद खान, अक्षय रवि, अनिकेत जाधव, कैलाश पाल और मुस्कान खुराना जैसे कलाकारों ने अपने किरदारों को बखूबी निभाया है। निर्माता निर्देशक सरीष सुधाकरन इस फिल्म के राइटर, छायाकार और संगीतकार भी हैं। फ़िल्म 80 और 90 के दशक की याद दिलाती है। फ़िल्म का प्रेजेंटेशन बहुत यूनिक और अलग है।
इस अनोखे टाइप की फ़िल्म बनाने के लिए निर्माता निर्देशक बधाई के हकदार हैं। फिल्म की कहानी 1991 में हुई एक फार्म हाउस में दर्दनाक घटना पर बेस्ड है। उस जमाने में जब मोबाइल और इंटरनेट की सहूलत नहीं थी। बिजली की भी दिक्कत थी। द इंडी फ़ार्म/वुल्फक्रो के बैनर तले निर्मित फ़िल्म ‘गिन के दस’ का वितरण जय विरात्रा एंटरटेनमेंट लिमिटेड ने किया है। फ़िल्म का बैकग्राउंड स्कोर इसके कथानक के अनुसार बेहतर ढंग से तैयार किया गया है। कैमरा वर्क अपीलिंग है। हालांकि, कुछ दृश्य विचलित करते हैं मगर एक्सपेरिमेंटल सिनेमा और थ्रिलर सब्जेक्ट पसन्द करने वालों को यह फ़िल्म अच्छी लगेगी।