फिल्म समीक्षा: छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद का सच दिखाती है ‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’
मुंबई। फिल्म ‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ युवा आईपीएस अधिकारी नीरजा माधवन की कहानी है। 2000 में मध्य प्रदेश से अलग होकर एक नया राज्य बना नाम छत्तीसगढ़। छत्तीसगढ़ में नक्सलियों की वास्तविक जीवन की घटनाओं पर आधारित यह फिल्म बस्तर जिले में माओवादी विद्रोह को दर्शाती है। आईपीएस अधिकारी नीरजा माधवन (अदा शर्मा) अपने पति को खो देने वाली रत्ना (इंदिरा तिवारी) नाम की आदिवासी महिला के साथ जनजातियों में रहने वाले सभी असहाय लोगों को न्याय दिलाने के लिए नक्सल और व्यवस्था के खिलाफ लड़ती है।
छत्तीसगढ़ में जगह-जगह माओवादियों के कैंप बने हुए हैं, जहां गांव से लाए गए छोटे बच्चों को नक्सली बनने की ट्रेनिंग दी जाती है। ऐसा नहीं है कि माओवादी ये सिर्फ अकेले अपने दम पर कर रहे हैं, बल्कि उनका साथ देश के बड़े लोग देते हैं। जैसे विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और राजनीतिक नेता इस पूरी हकीकत से वाकिफ हैं, लेकिन फिर भी वो माओवादियों को शरण दिए हुए हैं। यह दीमक बनकर सिस्टम को दिन रात खोखला कर रहे हैं।
आईपीएस नीरजा माधवन भी नक्सलवादियों के टारगेट पर लगातार बनीं हुई हैं। फिल्म में कई परेशान करने वाले दृश्य हैं, जिन्हें दर्शकों के लिए देखना मुश्किल होगा। जैसे जलाने के दृश्य और खून-खराबा काफी ज्यादा है। क्या नीरजा बस्तर के हालातों को बदल पाएंगी? या फिर बस्तर में इसी तरह नक्सलवादियों का मौत का खेल चलता रहेगा? ऐसे तमाम सवालों के जवाब जानने के लिए आपको यह फिल्म देखनी होगी।
अदा शर्मा ने आईपीएस अधिकारी नीरजा माधवन की भूमिका में दमदार अभिनय किया है। उन्होंने एक मजबूत और स्वतंत्र महिला की भूमिका को बखूबी निभाया है। इंदिरा तिवारी, शिल्पा शुक्ला, राइमा सेन और यशपाल शर्मा ने भी सहायक भूमिकाओं में अच्छा काम किया है। इंदिरा तिवारी अपने किरदार के लिए बिल्कुल फिट हैं। कहानी ज्यादातर उन्हीं के इर्द-गिर्द घूमती है और उन्होंने बेहतरीन परफॉर्मेंस दी है। राइमा सेन को परफेक्ट भूमिका मिली है, जो कुछ-कुछ वैसा ही है जैसा हमने द वैक्सीन वॉर में देखा था। शिल्पा शुक्ला और यशपाल शर्मा जैसे कलाकारों को दोबारा स्क्रीन पर देखना अच्छा था लेकिन उन्हें कोई दमदार किरदार नहीं मिलते। बाकी कास्ट अच्छी है।
सुदिप्तो सेन ने फिल्म का निर्देशन किया है। सुदीप्तो सेन का निर्देशन साधारण है। वह कुछ भी अलग लाने की कोशिश नहीं करते। हालांकि, विषय कालातीत है लेकिन फिल्म निर्माण थोड़ा पुराना लगता है। अगर ये फिल्म 10 से 15 साल पहले इसी नजरिए से बनाई गई होती तो शायद चल जाती। ‘द केरला स्टोरी’ के लिए सुदीप्तो सेन भाग्यशाली थे लेकिन इस बार किस्मत ने उनका साथ नहीं दिया।
फिल्म का संगीत मोनोज झा ने दिया है। गाने फिल्म की कहानी के साथ तालमेल बिठाते हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्म के माहौल को बनाए रखने में मदद करता है। कुल मिलाकर ‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ एक अच्छी तरह से बनाई गई फिल्म है, जो नक्सलवाद के जटिल मुद्दे को उठाती है। यह फिल्म उन लोगों के लिए है, जो नक्सलवाद और आदिवासियों के जीवन के बारे में जानना चाहते हैं।