दस बुराइयों से मुक्ति पाने का पर्व है दशहरा

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 सुरेन्द्र किशोरी

भारत विशाल देश है। इसकी भौगोलिक संरचना जितनी विशाल है, उतनी ही विशाल इसकी संस्कृति है। यह भारत की सांस्कृतिक विशेषता ही है कि सभी पर्व देश में एक जैसी श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाए जाते हैं, भले ही उनके मनाने की विधि अलग हो।

ऐसा ही पावन पर्व दशहरा है। इसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है। दशहरा को मर्यादा पुरुषोत्तम राम द्वारा अत्याचारी राक्षसी प्रवृत्तियों के प्रतीक रावण के वध का स्मरण कर बुराई पर अच्छाई के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

लोग दैत्याकार पुतले को फूंक कर तमाशे के उल्लास में अपने कर्तव्य पालन को सीमित रखते हैं।

लोग यह भुला देते हैं कि अत्याचार और उत्पीड़न के साथ संघर्ष कभी समाप्त नहीं होता। रावण के दस सिर मात्र उसकी असाधारण बुद्धिमत्ता की याद नहीं दिलाते, वरन उन दस बुराइयों को गिनने के लिए हमें प्रेरित करते हैं, जिन्होंने हमारे जीवन को दूभर बना रखा है।

दशहरा इनसे मुक्ति पाने का बड़ा अवसर है। इसलिए हमें अपने समाज में व्याप्त बुराइयों-विकृतियों को नए सिरे से पहचानने और उनेके उन्मूलन के लिए कमर कसनी होगी। हमारी समझ में महिलाओं के विरुद्ध अपराधों का उन्मूलन सबसे अहम प्राथमिकता है,

क्योंकि पितृसत्तात्मक पुरुष प्रधान समाज में घनघोर लिंगभेदी अन्याय है। इससे महिलाओं की प्रतिभा और ऊर्जा को पंगु बनाने वाली विषमता पैदा होती है।

बिना महिला सबलीकरण के निरक्षरता या बेरोजगारी के उन्मूलन को दूर करने की बात सोची भी नहीं जा सकती। पर्यावरण का संरक्षण हो या स्वच्छता का आग्रह, इन मूल्यों की जड़ें भी इसी कर्तव्य में निहित हैं।

अदालतों में न्याय मिलने में देर किसी अंधेर से कम नहीं है। पुराने समय से कहा जाता है कि कचहरी में घुसने वाले के हाथ चांदी के और पांव फौलाद के होने चाहिए।

यह वह जगह है जहां निचले स्तर पर भ्रष्टाचार का बाजार गरम रहता है। सर्वोच्च न्यायालय अनेक बार इस पर टिप्पणी कर चुका है। यह भी ऐसी ही बुराई है जिसे दूर करने का संकल्प लेना चाहिए।

राजनीति में शुचिता भी बहुत जरूरी है। इसलिए बाहुबल जैसी बुराई से फासला बनाने की जरूरत है। राजनीति को चुनाव तक सीमित नहीं रखना चाहिए। अपने बुनियादी अधिकारों के संबंध में भी जागरूक रहने की जरूरत है।

विजयादशमी का पर्व सिर्फ बाहरी जगत की बुराइयों से लड़ने का नहीं है। अपने भीतर के व्यसन और विकृतियों के उन्मूलन का मौका भी है।

स्वस्थ समाज, सुशिक्षित समाज, जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण, नारी सशक्तीकरण, गरीबी उन्मूलन, जनसंख्या नियोजन सिर्फ सरोकार नहीं, बल्कि व्यापक अर्थों में आज देश की सबसे बड़ी और बुनियादी समस्याएं हैं।

हमें इस पावन अवसर पर इन बुनियादी समस्याओं के निजात के लिए अपने स्तर पर प्रयास करने का संकल्प भी लेना चाहिए।

संकल्प का यह मार्ग ही विजय पथ है। इस पथ पर केवल धर्मपरायण और साहसी ही पांव रखते हैं। भगवान राम ने नौ दिन मां आदिशक्ति की आराधना कर दसवें दिन रावण का वध कर माता सीता को मुक्त कराया था।

आइए हम सब समाज और राक्षस रूपी कुरीतियों को समाप्त कर राष्ट्र को उन्नति के पथ पर ले जाएं।

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