डॉ. कलाम के विचार, प्रभावित करते हैं बारंबार

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– योगेश कुमार गोयल

तमिलनाडु के एक छोटे से गांव में एक मध्यमवर्गीय परिवार में 15 अक्टूबर 1931 को जन्मे भारत के पूर्व राष्ट्रपति, प्रख्यात शिक्षाविद् और देश के महान वैज्ञानिक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ऐसे महानायक हैं, जिन्होंने अपना बचपन अभावों में बीतने के बाद भी अपना पूरा जीवन देश और मानवता की सेवा में व्यतीत कर दिया। न केवल भारत के लोग बल्कि पूरी दुनिया मिसाइल मैन डॉ. कलाम की सादगी, धर्मनिरपेक्षता, आदर्शों, शांत व्यक्तित्व और छात्रों व युवाओं के प्रति उनके लगाव की कायल रही है। वह देश को वर्ष 2020 तक आर्थिक शक्ति बनते देखना चाहते थे। युवा पीढ़ी को दिए गए उनके प्रेरक संदेश तथा उनके स्वयं के जीवन की कहानी तो देश की आने वाले कई पीढ़ियों को भी सदैव प्रेरित करने का कार्य करती रहेगी। छात्रों का मार्गदर्शन करते हुए वह अकसर कहा करते थे कि छात्रों के जीवन का एक तय उद्देश्य होना चाहिए और इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए जरूरी है कि वे हरसंभव स्रोतों से ज्ञान प्राप्त करें।

छात्रों की तरक्की के लिए उनके द्वारा जीवन पर्यन्त किए गए महान कार्यों को देखते हुए ही सन 2010 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा उनका 79वां जन्म दिवस ‘विश्व विद्यार्थी दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया और तभी से डॉ. कलाम की जयंती पर 15 अक्टूबर को प्रतिवर्ष ‘विश्व विद्यार्थी दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है। पढ़ाई-लिखाई को तरक्की का साधन बताने वाले डॉ. कलाम का मानना था कि केवल शिक्षा के द्वारा ही हम अपने जीवन से निर्धनता, निरक्षरता और कुपोषण जैसी समस्याओं को दूर कर सकते हैं। वे कहते थे कि अगर आप फेल होते हैं तो निराश मत हों क्योंकि फेल होने का अर्थ है ‘फर्स्ट अटैंप्ट इन लर्निंग’ और अगर आपमें सफल होने का मजबूत संकलप है तो असफलता आप पर हावी नहीं हो सकती। इसलिए सफलता और परिश्रम का मार्ग अपनाओ, जो सफलता का एकमात्र रास्ता है। उनके ऐसे ही महान विचारों ने देश-विदेश के करोड़ों लोगों को प्रेरित करने और देश के लोकतंत्र को मजबूती प्रदान करने का कार्य किया। उनका ज्ञान और व्यक्तित्व इतना विराट था कि उन्हें दुनियाभर के 40 विश्वविद्यालयों ने डॉक्ट्रेट की मानद उपाधि प्रदान की। सादगी की प्रतिमूर्ति डॉ. कलाम का व्यक्तित्व कितना विराट था, इसे परिभाषित करते कई किस्से भी सुनने को मिलते हैं।

राष्ट्रपति जैसे देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर आसीन रहते हुए भी डॉ. कलाम आम लोगों से मिलते रहे। राष्ट्रपति जैसे बड़े पद पर पहुंचने के बाद भी डॉ. कलाम अपने बचपन के दोस्तों को भी नहीं भूले। एक बार कुछ युवाओं ने उनसे मिलने की इच्छा जाहिर की और इसके लिए उन्होंने उनके कार्यालय को चिट्ठी लिखी। चिट्ठी मिलने के बाद डॉ. कलाम ने उन युवाओं को अपने पर्सनल चैंबर में आमंत्रित किया और वहां न केवल उनसे मुलाकात ही की बल्कि उनके विचार, उनके आइडिया सुनते हुए काफी समय उनके साथ गुजारा। जिस समय डॉ. कलाम भारत के राष्ट्रपति थे, तब वे एक बार आईआईटी के एक कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए पहुंचे। उनके पद की गरिमा का सम्मान करते हुए आयोजकों द्वारा उनके लिए मंच के बीच में बड़ी कुर्सी लगवाई गई। डॉ. कलाम जब वहां पहुंचे और उन्होंने केवल अपने लिए ही इस प्रकार की विशेष कुर्सी की व्यवस्था देखी तो उन्होंने उस कुर्सी पर बैठने से इनकार कर दिया, जिसके बाद आयोजकों ने उनके लिए मंच पर लगी दूसरी कुर्सियों जैसी ही कुर्सी की व्यवस्था कराई। उनके मन में दूसरे जीवों के प्रति भी करुणा और दयाभाव विद्यमान था।

डॉ. कलाम के जीवन के अंतिम पलों के बारे में उनके विशेष कार्याधिकारी रहे सृजन पाल सिंह ने लिखा है कि शिलांग में जब वह डॉ. कलाम के सूट में माइक लगा रहे थे तो उन्होंने पूछा था, ‘फनी गाइज हाउ आर यू’, जिस पर सृजन पाल ने जवाब दिया ‘सर ऑल इज वेल’। उसके बाद डॉ. कलाम छात्रों की ओर मुड़े और बोले ‘आज हम कुछ नया सीखेंगे’ और इतना कहते ही वे पीछे की ओर गिर पड़े। पूरे सभागार में सन्नाटा पसर गया और इस प्रकार इस महान विभूति ने दुनिया से सदा के लिए विदा ले ली।

(लेखक, स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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