MBBS: विदेश से MBBS करने वालों के लिए राहत, SC ने स्टाइपेंड को लेकर सुनाया अहम फैसला

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नई दिल्‍ली । सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि विदेश से एमबीबीएस करने वालों के साथ अलग व्यवहार नहीं किया जा सकता और उन्हें इंटर्नशिप के दौरान अपने उन साथियों के समान ही स्टाइपेंड दिया जाना चाहिए जिन्होंने भारतीय कॉलेजों से एमबीबीएस किया है। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति प्रसन्ना भालचंद्र वराले की पीठ ने कुछ डॉक्टरों की ओर से पक्ष रख रही वकील तन्वी दुबे की दलीलों पर संज्ञान लिया कि कुछ मेडिकल कॉलेजों में विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट्स को उनकी इंटर्नशिप के दौरान स्टाइपेंड नहीं दिया जा रहा है।

पीठ ने सोमवार को राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) से तीन कॉलेजों का ब्योरा मांगा जिसमें विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट्स को स्टाइपेंड के भुगतान की जानकारी हो। इन कॉलेज में अटल बिहारी वाजपेयी सरकारी मेडिकल कॉलेज, विदिशा; डॉ लक्ष्मीनारायण पांडेय सरकारी मेडिकल कॉलेज, रतलाम और कर्मचारी राज्य बीमा निगम मेडिकल कॉलेज, अलवर शामिल हैं।

अदालत ने कहा कि यह सर्वोपरि है कि स्टाइपेंड का भुगतान किया जाए और कॉलेजों को चेतावनी दी कि अगर स्टाइपेंड के भुगतान पर उसके पहले के आदेश का पालन नहीं किया गया तो सख्त कदम उठाए जाएंगे। पीठ ने कहा, ”मेडिकल कॉलेज एमबीबीएस छात्रों और विदेश से चिकित्सा स्नातक करने वाले छात्रों को अलग-अलग करके नहीं देख सकते।”

पूरी इंटर्नशिप अवधि के दौरान स्टाइपेंड मिले

इससे पहले, 23 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने पांच विदेशी मेडिकल ग्रेजुएट द्वारा याचिका दायर किए जाने के बाद एनएमसी और अटल बिहारी वाजपेयी सरकारी मेडिकल कॉलेज दोनों से जवाब मांगा था। अदालत ने यह भी कहा कि एनएमसी और संबंधित निकायों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे छात्रों को अन्य मेडिकल कॉलेजों के दिशानिर्देशों का पालन करते हुए पूरी इंटर्नशिप अवधि के दौरान स्टाइपेंड मिले। ये छात्र फिलहाल विदिशा के अटल बिहारी वाजपेयी शासकीय मेडिकल कॉलेज में इंटर्नशिप कर रहे हैं।

हर साल हजारों भारतीय छात्र विदेश पढ़ाई के लिए जाते है

गौरतलब है कि भारत में एमबीबीएस की सीटें कम होने के चलते हर साल हजारों भारतीय छात्र डॉक्टरी की पढ़ाई करने चीन, यूक्रेन, रूस, किर्गिस्तान, बांग्लादेश जैसे देशों में जाते हैं। भारत में डॉक्टरी करने का लाइसेंस पाने के लिए इन्हें न सिर्फ एफएमजीई परीक्षा करनी होती है बल्कि देश के अस्पताल में इंटर्नशिप भी करनी होती है। इंटर्नशिप के दौरान स्टाइपेंड न मिलने की शिकायत लेकर ही युवा डॉक्टर कोर्ट पहुंचे थे।

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