आरक्षण के सकारात्मक कार्रवाई की वजह से ही SC में आज जज, क्यों बोले जस्टिस गवई?
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बीआर गवई ने कहा है कि अगर वह दलित समुदाय से नहीं होते तो आज की तारीख में शीर्ष न्यायालय में जज नहीं होते। उन्होंने कहा कि आरक्षण यानी सकारात्मक कार्रवाई की वजह से ही हाशिए पर रहने वाले समुदाय के लोग भी भारत में शीर्ष सरकारी पदों तक पहुंचने में कामयाब हो सके हैं। उन्होंने कहा, “यदि सुप्रीम कोर्ट में सामाजिक प्रतिनिधित्व के तहत अनुसूचित जाति के शख्स को इसका लाभ नहीं दिया गया होता तो शायद वह दो साल बाद पदोन्नत होकर इस पद पर पहुंचते।”
उन्होंने अपने को एक उदाहरण के तौर पर पेश करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट में उनकी पदोन्नति दो साल पहले की गई है क्योंकि कॉलेजियम दलित समुदाय के न्यायाधीशों को बेंच में रखना चाहता था। जस्टिस गवई, जो पहले बॉम्बे हाई कोर्ट में वकालत करते थे, ने कहा कि बॉम्बे हाई कोर्ट का जज बनने के पीछे भी यह एक कारक था। जस्टिस गवई ने कहा कि जब उन्हें 2003 में बॉम्बे हाई कोर्ट में जज के रूप में नियुक्त किया गया था, तब वह एक वकील थे और उस समय हाई कोर्ट में कोई दलित जज नहीं था।
उन्होंने कहा, “हाई कोर्ट के जज के रूप में मेरी नियुक्ति में दलित होना एक बड़ा कारक था।” जस्टिस गवई को 14 नवंबर 2003 को हाई कोर्ट का जज बनाया गया था। वह उस तारीख से 11 नवंबर 2005 तक बॉम्बे हाई कोर्ट में एडिशनल जज रहे। उसके बाद उन्हें 12 नवंबर 2005 को स्थायी जज बना दिया गया था। वह इस पद पर 24 मई 2019 तक रहे। इसके बाद उन्हें पदोन्नति देकर सुप्रीम कोर्ट लाया गया। वह 23 नवंबर 2025 को रिटायर होंगे। फिलहाल वह भी सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम का हिस्सा हैं।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुकाबिक, जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने ये बातें न्यूयॉर्क सिटी बार एसोसिएशन (NYCB) द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहीं, जहां वह अपने जीवन पर विविधता, समानता और समावेशन के प्रभाव से जुड़े एक सवाल का उत्तर दे रहे थे। NYCB लॉ के छात्रों और वकीलों का एक स्वैच्छिक संगठन है।
रिपोर्ट के मुताहिक, इस कार्यक्रम में कानून के शासन को बनाए रखने और व्यक्तिगत अधिकारों को आगे बढ़ाने में भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका में न्यायपालिका की भूमिका पर एक क्रॉस-सांस्कृतिक चर्चा हुई।