आम चुनाव से पहले CAA लागू करने की तैयारी में केंद्र सरकार, जानें क्या है कानून, किसे मिलेगी नागरिकता

0

नई दिल्‍ली । केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर ने दावा किया है कि अगले सात दिन के अंदर नागरिकता (संशोधन) कानून (CAA) पूरे देश में लागू कर दिया जाएगा. ठाकुर ने यह बयान पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना में आयोजित एक जनसभा को संबोधित करते हुए दिया।

शांतनु ने बंगाली में कहा, मैं गारंटी दे सकता हूं कि अगले सात दिनों में ना सिर्फ पश्चिम बंगाल में, बल्कि पूरे देश में सीएए लागू किया जाएगा. इस बयान के बाद सीएए एक बार फिर चर्चा में है. भारतीय नागरिकता कानून क्या है और इसके लागू होने से क्या बदल जाएगा? किन प्रावधानों पर सबसे ज्यादा आपत्तियां हैं… जानिए सभी बड़े सवालों के जवाब।

बता दें कि भारतीय नागरिकता (संशोधन) कानून पर 5 साल पहले ही मुहर लग गई थी. हालांकि, यह अब तक लागू नहीं हो पाया है. सीएए को लेकर पूरे देश में बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए थे. खासकर पूर्वोत्तर के सात राज्य इसके खिलाफ हैं. विरोध को लेकर नॉर्थ ईस्ट सबसे ज्यादा प्रभावित रहा है. वहां तोड़फोड़ की वजह से करोड़ों की संपत्ति का नुकसान हुआ था. इस कानून के खिलाफ विपक्ष का भी कड़ा रुख देखने को मिला था. इस महीने की शुरुआत में खबर आई थी कि सीएए के नियम केंद्र के पास तैयार हैं और लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले अधिसूचित (नोटिफाई) कर दिया जाएगा।

क्या है सीएए?

सिटिजनशिप अमेंडमेंट एक्ट के लागू होने पर तीन पड़ोसी मुस्लिम बाहुल्य देशों पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए उन लोगों को भारत की नागरिकता मिल जाएगी, जो दिसंबर 2014 तक किसी ना किसी प्रताड़ना का शिकार होकर भारत आए. इसमें गैर-मुस्लिम माइनोरिटी- हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शामिल हैं. नागरिकता संशोधन बिल पहली बार 2016 में लोकसभा में पेश किया गया था. यहां से तो ये पास हो गया था, लेकिन राज्यसभा में अटक गया था. बाद में इसे संसदीय समिति के पास भेजा गया और फिर 2019 का चुनाव आ गया. फिर से मोदी सरकार बनी. दिसंबर 2019 में इसे लोकसभा में दोबारा पेश किया गया. इस बार ये बिल लोकसभा और राज्यसभा, दोनों जगह से पास हो गया. 10 जनवरी 2020 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल गई थी. लेकिन उस समय कोरोना के कारण इसमें देरी हुई।

क्या मंजूरी मिलने के 5 साल बाद लागू हो पाएगा CAA?

CAA को लेकर साल 2020 से लगातार एक्सटेंशन लिया जा रहा है. दरअसल, संसदीय प्रक्रियाओं की नियमावली के मुताबिक किसी भी कानून के नियम राष्ट्रपति की सहमति के 6 महीने के भीतर तैयार किए जाने चाहिए. ऐसा ना होने पर लोकसभा और राज्यसभा में अधीनस्थ विधान समितियों से विस्तार की मांग की जानी चाहिए. सीएए के केस में 2020 से गृह मंत्रालय नियम बनाने के लिए संसदीय समितियों से नियमित अंतराल में एक्सटेंशन लेता रहा है।

9 राज्यों के डीएम को क्या मिले अधिकार?

पिछले दो साल में 9 राज्यों के 30 से ज्यादा जिला मजिस्ट्रेटों और गृह सचिवों को बड़े अधिकार दिए गए हैं. डीएम को तीन देशों से आए गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों को भारतीय नागरिकता देने की शक्तियां दी गई हैं. नागरिकता गृह मंत्रालय की 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक 1 अप्रैल 2021 से 31 दिसंबर 2021 तक इन गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यक समुदायों के कुल 1,414 विदेशियों को भारतीय नागरिकता दी गई है. जिन 9 राज्यों में नागरिकता दी गई है, वे गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और महाराष्ट्र हैं।

किसे मिलेगी नागरिकता?

नागरिकता देने का अधिकार पूरी तरह से केंद्र सरकार के पास है. पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी धर्म से जुड़े शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगा. जो लोग 31 दिसंबर 2014 से पहले आकर भारत में बस गए थे, उन्हें ही नागरिकता मिलेगी. इस कानून के तहत उन लोगों को अवैध प्रवासी माना गया है, जो भारत में वैध यात्रा दस्तावेज (पासपोर्ट और वीजा) के बगैर घुस आए हैं या फिर वैध दस्तावेज के साथ तो भारत में आए हैं, लेकिन तय अवधि से ज्यादा समय तक यहां रुक गए हों।

आवेदन करने की प्रक्रिया क्या होगी?

पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन होगी. इसके लिए ऑनलाइन पोर्टल भी तैयार किया गया है. आवेदकों को वह साल बताना होगा, जब उन्होंने दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश किया था. आवेदकों से कोई दस्तावेज नहीं मांगा जाएगा. नागरिकता से जुड़े जितने भी ऐसे मामले पेंडिंग हैं वे सब ऑनलाइन कन्वर्ट किए जाएंगे. पात्र विस्थापितों को सिर्फ पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन करना होगा. उसके बाद गृह मंत्रालय जांच करेगा और नागरिकता जारी कर देगा।

क्यों हो रहा है विरोध?

– विपक्ष का कहना है कि इस कानून के जरिए खासतौर पर मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाया जा रहा है. वे जानबूझकर अवैध घोषित किए जा सकते हैं. वहीं, बिना वैध दस्तावेजों के भी बाकियों को जगह मिल सकती है. विपक्ष का तर्क है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है जो समानता के अधिकार की बात करता है।

– हालांकि पूर्वोत्तर के पास अलग वजह है. वे मानते हैं कि अगर बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यकों को नागरिकता मिली, तो उनके राज्य के संसाधन बंट जाएंगे. एक बड़ा वर्ग यह भी कहता है कि पूर्वोत्तर के मूल लोगों के सामने पहचान और आजीविका का संकट पैदा हो जाएगा।

– पूर्वोत्तर के मूल निवासी यानी वहां बसे आदिवासी लोग सीएए के विरोध में हैं. इन राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और त्रिपुरा शामिल हैं।

– इन सातों राज्यों के मूल लोग सजातीय हैं. इनका खानपान और कल्चर काफी हद तक मिलता है. लेकिन कुछ दशकों से यहां दूसरे देशों से अल्पसंख्यक समुदाय भी आकर बसने लगा. खासकर बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक बंगाली यहां आने लगे।

नॉर्थ ईस्ट में क्यों बस गए शरणार्थी?

– नॉर्थ-ईस्ट इस समय अल्पसंख्यक बंगाली हिंदुओं का गढ़ बन गया है. इसकी वजह भी सामने आई है. दरअसल, पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से में बड़ी संख्या संख्या में बंगाली भाषी बसे हुए थे, जिन पर लगातार हिंसा हो रही थी. वहां युद्ध हुआ और बांग्लादेश बन गया. लेकिन, कुछ ही समय में बांग्लादेश में भी हिंदू बंगालियों पर अत्याचार होने लगे, क्योंकि ये देश भी मुस्लिम बहुसंख्यक है।

– पाकिस्तान और बांग्लादेश में अत्याचार से परेशान होकर लोगों ने पलायन शुरू कर दिया और भागकर भारत आने लगे. इन लोगों को वैसे तो अलग-अलग राज्यों में बसाया जा रहा था, लेकिन पूर्वोत्तर का कल्चर इन्हें अपने ज्यादा करीब लगा और वे वहीं बसने लगे. चूंकि पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा बांग्लादेश से सटी हुई है इसलिए भी वहां से लोग आते हैं।

क्या बदल जाएगा?

मेघालय में वैसे तो गारो और जैंतिया जैसी ट्राइब मूल निवासी हैं, लेकिन अल्पसंख्यकों के आने के बाद वे पीछे रहे गए. हर जगह माइनोरिटी का दबदबा हो गया. इसी तरह त्रिपुरा में बोरोक समुदाय मूल निवासी है, लेकिन वहां भी बंगाली शरणार्थी भर चुके हैं. यहां तक कि सरकारी नौकरियों में बड़े पद भी उनके ही पास जा चुके हैं. अब अगर सीएए लागू होता है तो मूल निवासियों की बचीखुची ताकत भी चली जाएगी. दूसरे देशों से आकर बसे हुए अल्पसंख्यक उनके संसाधनों पर कब्जा कर लेंगे. यही डर है, जिसकी वजह से पूर्वोत्तर सीएए का भारी विरोध कर रहा है।

असम में क्या फर्क पड़ेगा?

असम में 20 लाख से ज्यादा हिंदू बांग्लादेशी अवैध रूप से निवास कर रहे हैं. यह दावा साल 2019 में वहां के स्थानीय संगठन कृषक मुक्ति संग्राम कमेटी ने किया था. यही हालात बाकी राज्यों के हैं।

आमतौर पर कैसे मिलती है नागरिकता?

कानूनन भारत की नागरिकता के लिए कम से कम 11 साल तक देश में रहना जरूरी है. लेकिन, नागरिकता संशोधन कानून में इन तीन देशों के गैर-मुस्लिमों को 11 साल की बजाय 6 साल रहने पर ही नागरिकता दे दी जाएगी. बाकी दूसरे देशों के लोगों को 11 साल का वक्त भारत में गुजारना होगा, भले ही फिर वो किसी भी धर्म के हों।

बीजेपी के एजेंडे में शामिल है सीएए?

CAA लागू करना BJP की प्रतिबद्धता में शामिल है. बंगाल के बनगांव से बीजेपी सांसद शांतनु ठाकुर ने वही बात दोहराई है, जो केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अपने सीएए को लेकर बयान में कही थी. पिछले साल दिसंबर में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार सीएए लागू करेगी और इसे कोई भी रोक नहीं सकता है. शाह की इस टिप्पणी को तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पर निशाना माना गया, जो सीएए का जबरदस्त विरोध करती रही हैं. शाह ने कोलकाता में एक रैली में घुसपैठ, भ्रष्टाचार, राजनीतिक हिंसा और तुष्टीकरण के मुद्दों पर ममता बनर्जी के खिलाफ तीखे हमले किए थे और लोगों से टीएमसी की सरकार को बंगाल से हटाने और 2026 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जिताने की अपील की थी. सीएए को लागू करने का वादा पश्चिम बंगाल में पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों में भाजपा का एक प्रमुख चुनावी मुद्दा था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *