नाबालिग को उसकी इच्छा के विरुद्ध संरक्षण गृह में रखना गलत: हाईकोर्ट

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इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। इस फैसले के तहत किसी भी नाबालिग को उसकी इच्छा के विरुद्ध राजकीय बालिका संरक्षण गृह या किसी भी अन्य संरक्षण गृह में नहीं रखा जा सकता है।

कोर्ट ने इसी के साथ राजकीय बालिका संरक्षण गृह में रखी गई पीड़िता को उसके पति के साथ जाने की अनुमति दे दी है।

साथ ही पति के खिलाफ दर्ज अपहरण और रेप का मुकदमा रद्द कर दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने जालौन के मनोज कुमार उर्फ मोनू कठेरिया की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।

जानकारी के मुताबिक मोनू कटारिया ने याचिका में उसके खिलाफ उरई में दर्ज अपहरण, रेप और पोक्सो एक्ट के तहत मुकदमे में दाखिल चार्ज शीट रद्द करने की मांग की थी।

याची के अधिवक्ता का कहना था कि याची के खिलाफ यह मुकदमा पीड़िता की मां ने दर्ज कराया है।

जबकि वास्तविकता यह है कि पीड़िता के साथ उसका प्रेम संबंध था और दोनों ने अपनी मर्जी से शादी कर ली।

लेकिन मेडिकल रिपोर्ट में पीड़िता की आयु 16 वर्ष बताए जाने के आधार पर पीड़िता को राजकीय बालिका संरक्षण गृह भेज दिया गया और मोनू को इस मामले में जेल जाना पड़ा।

बाद में हाईकोर्ट से उसकी जमानत हो गई।

कहा गया कि मुकदमा दर्ज कराने के बावजूद पीड़िता की मां ने उससे अभिरक्षा में लेने से इनकार कर दिया, जिससे उसे संरक्षण गृह भेजना पड़ा।

संरक्षण गृह में पीड़िता ने एक बच्चे को जन्म भी दिया। पीड़िता ने मजिस्ट्रेट के समक्ष बयान में अपनी आयु स्पष्ट रूप से 19 वर्ष बताई है।

कहा गया कि याची पीड़िता का पति होने के कारण उसे अभिरक्षा में लेने के लिए अधिकृत है।

कोर्ट ने हाईकोर्ट के कई निर्णय का हवाला दिया कहा कि इस स्थिति में यदि पीड़िता नाबालिग भी है, तब भी उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध संरक्षण गृह में नहीं रखा जा सकता है।

इस न्यायालय की राय में पीड़िता की आयु 18 वर्ष से अधिक की है। पीड़िता ने एक बच्चे को भी जन्म दिया है।

मां और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं इसलिए कोर्ट ने पीड़िता की कस्टडी उसके पति मोनू कठेरिया को सौंपने का निर्देश देते हुए मोनू के खिलाफ चल रहे मुकदमे की कार्रवाई को रद्द कर दिया है।

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