इस गांव में चमगादड़ को मानते है देवी का रुप, ग्रामीणों की अनोखी मान्यता

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नई दिल्‍ली । बिहार के सुपौल जिले में एक गांव है, जहां लाखों की तादाद में चमगादड़ों का बसेरा है। चमगादड़ों को लेकर ग्रामीणों की अनोखी मान्यता है, गांव के लोग चमगादड़ को देवी का रूप मानते हैं और खुशियों का प्रतीक समझते हैं।

आइए विस्तार से जानते हैं पूरा मामला क्या है?

ग्रामीणों की मानें तो लहरनिया गांव (त्रिवेणीगंज ब्लॉक, सुपौल) में दो लोगों ने (शिव नारायण सिंह और हित नारायण सिंह) क़रीब सौ साल पहले कहीं और से चमगादड़ लाया और उसे पाल रहे थे। आज की तारीख में गांव में लाखों की तादाद में चमगादड़ों का बसेरा है। गांव के लोग चमगादड़ों को देवी का रूप मानते हुए पूजा करते हैं।

गांव के लोगों का कहना है कि एक्सपर्ट लोग कोरोना फ़ैलने का ज़िम्मेदार चमगादड़ को मानते हैं, लेकिन लहरनियां गांव के लोग चमगादड़ को खुशहाली का प्रतीक मानते हैं। वहीं ग्रामीणों का मानना है कि भविष्य में होने वाली घटनाओं का भी चमगादड़ पहले ही सेंकेत दे देते हैं।

ग्रामीणों की मानें तो चमगादड़ को शुभ मानते हुए हमलोग उसे पनाह देने के साथ ही हिफाज़त भी कर रहे हैं। लहरनिया गांव वार्ड-5 के रहने वाले रिक्कु सिंह की मानें तो उनके दादा (शिव नारायण सिंह और हित नारायण सिंह) ने करीब सदियों पहले कहीं और से चमगादड़ लाकर गांव में पालना शुरू किया था। अब उनकी तादाद बढ़कर लाखों में हो गई है।

चमगादड़ों को हम लोग देवी का रूप मानते हैं और उसकी पूजा भी करते है। उन्होंने कहा कि साल 2008 में नेपाल के कुसहा में पूर्वी कोसी बांध टूटने से काफी तबाही हुई थी। हम लोगों के गांव में बाढ़ का पानी नहीं घुसा था। 2015 में भूकंप आने से पहले ही चमगादड़ आकाश में उड़कर आगाह करने लगे थे। घरों से लोग बाहर निकल गए थे, फिर भूकंप आया था।

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