त्रिदेवों के मुख से माता हुई अवतरित, पढ़ें मां चंद्रघंटा की अनोखी कहानी
नई दिल्ली । आज है नवरात्रि (Navratri)का तीसरा दिन। 17 अक्टूबर के दिन शारदीय (Sharadiya)नवरात्रि का तीसरा दिन है। जिस दिन माता चंद्रघंटा देवी (Mata Chandraghanta Devi)की पूरे विधि-विधान से पूजा अर्चना की जाती है। दुर्गा मैया के 9 स्वरूप हैं। 9 स्वरूपों की अपनी गाथाएं हैं। माथे पर अर्धचंद्र लिए माता चंद्रघंटा दैत्यों का नाश करती हैं। इसलिए आइए जानते हैं चंद्रघंटा माता के अवतरित होने के अनोखी कहानी, स्वरूप, मंत्र के बारे में-
चंद्रघंटा माता का स्वरूप
माता चंद्रघंटा का रूप अलौकिक है। माता के मस्तक पर अर्ध चंद्रमा विराजमान है, जिस कारण ही इन्हें चंद्रघंटा के नाम से पुकारा जाता है। स्वर्ण की भांति चमकीला माता का शरीर, 10 भुजाओं वाला है। अस्त्र-शस्त्र से सुशोभित मैया सिंह पर सवार हैं। पूरी विधि-विधान से चंद्रघंटा माता की पूजा करने और कथा का पाठ करने से शरीर के सभी रोग, दुख, कष्ट आदि दूर हो सकते हैं।
चंद्रघंटा मां का पसंदीदा रंग- लाल
चंद्रघंटा मां का पसंदीदा फूल- गुलाब और कमल
चंद्रघंटा मां का पसंदीदा भोग- दूध की खीर, दूध से बनी मिठाई
चंद्रघंटा मां का मंत्र-
ॐ देवी चन्द्रघण्टायै नमः॥
ह्रीं श्री अम्बिकायै नम:
चंद्रघंटा माता की कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्वर्ग पर राक्षसों का उपद्रव बढ़ने पर दुर्गा मैया ने चंद्रघंटा माता का रूप धारण किया था। महिषासुर नमक दैत्य ने सभी देवताओं को परेशान कर रखा था। महिषासुर स्वर्ग लोक पर अपना अधिकार जमाना चाहता था और सभी देवताओं से युद्ध कर रहा था। महिषासुर के आतंक से परेशान सभी देवता भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास जा पहुंचे। सभी देवताओं ने खुद पर आई विपदा का वर्णन त्रिदेवों से किया और मदद मांगी। देवताओं की विनती और असुरों का आतंक देख त्रिदेव को बहुत गुस्सा आया। त्रिदेवों के क्रोध से एक ऊर्जा निकली। इसी ऊर्जा से माता चंद्रघंटा देवी अवतरित हुई। माता के अवतरित होने पर सभी देवताओं ने माता को उपहार दिया। माता चंद्रघंटा को भगवान शिव ने अपना त्रिशूल, श्री हरि विष्णु जी ने अपना चक्र, सूर्य ने अपना तेज, तलवार, सिंह और इंद्र ने अपना घंटा माता को भेंट के रूप में दिया। अस्त्र शास्त्र शिशु शोभित मां चंद्रघंटा ने महिषासुर का मर्दन कर स्वर्ग लोक और सभी देवताओं को रक्षा प्रदान की।
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