‘दुनिया यूरोप की जागीर नहीं’ विदेश मंत्री जयशंकर के बयान पर रुस ने भी मिलाया सुरु में सुरु

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नई दिल्‍ली । रूस ने भारत के विदेश मंत्री के एक बयान पर सुर में सुर मिलाया है। रूस भारत का पारंपरिक दोस्त है। बदलती वैश्विक कूटनीति में भी रूस और भारत की दोस्ती प्रगाढ़ है।

भले ही रूस और यूक्रेन जंग में अमेरिका रूस का दुश्मन बन गया हो, या चीन व उत्तर कोरिया रूस को परोक्ष रूप से समर्थन कर रहे हों या फिर इजराइल हमास जंग हो। ऐसे में बदलती वैश्विक कूटनीति में खेमे भी बन रहे हों, पर भारत और रूस की दोस्ती पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। इस बात का उदाहरण रूसी विदेश मंत्री के ताजा बयान से देखने को मिल रहा है। उन्होंने भारतीय समकक्ष एस. जयशंकर के उस बयान का समर्थन किया है, जिसमें जयशंकर ने बदलती वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भारत का पक्ष रखा था। जयशंकर ने परोक्ष रूप से यही कहा था कि दुनिया यूरोप की जागीर नहीं है।

ग्लोबल साउथ और ग्लोबल ईस्ट के देश बन रहे नए ‘खिलाड़ी’

रूसी विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने कहा कि ‘दुनिया यूरोप ही नहीं है बल्कि इससे कहीं ज्यादा है।’ लावरोव ने कहा कि वैश्विक मंच पर ग्लोबल साउथ और ग्लोबल ईस्ट का उभार हो रहा है। मॉस्को स्थित प्राइमाकोव रीडिंग्स इंटरनेशनल फोरम में सोमवार को बोलते हुए रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि ‘आज दुनिया में बदलाव हो रहा है। पहले कुछ देशों को ही वैश्विक अहमियत मिलती थी और वो खासकर पश्चिमी देश होते थे, इसकी वजह भी थी।’ लावरोव ने कहा कि ‘आज वैश्विक मंच पर नए खिलाड़ी उभर रहे हैं और इनमें ग्लोबल साउथ और ग्लोबल ईस्ट प्रमुख हैं। इनकी संख्या भी बढ़ती जा रही है।’

पश्चिमी देश खुलकर करते हैं यूक्रेन का समर्थन

रूसी विदेश मंत्री ने कहा कि ‘यह सही मायने में वैश्विक बहुमत है। अब देश अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हैं ना कि किसी दूसरे देश के हितों को।’ रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते रूस पर पश्चिमी देशों ने कड़े प्रतिबंध लगाए हुए हैं। वहीं पश्चिमी देश खुलकर यूक्रेन का समर्थन कर रहे हैं। ये भी वजह है कि रूसी विदेश मंत्री पश्चिमी देशों पर निशाना साधते रहते हैं।

क्या कहा था जयशंकर ने?

बीते दिनों भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था कि यूरोप को उस मानसिकता से बाहर आने की जरूरत है। इसमें उन्हें लगता है कि यूरोप की दिक्कतें दुनिया की दिक्कतें हैं और जो दुनिया की दिक्कतें हैं, वो यूरोप की परेशानी नहीं है। दरअसल रूस से तेल खरीदने के भारत के फैसले का बचाव करते हुए जयशंकर ने ये बात कही थी। बातचीत के दौरान लावरोव ने एस जयशंकर के इस बयान का जिक्र भी किया।

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