दिग्गजों में कड़ा संघर्ष, 5 पर त्रिकोणीय मुकाबला
ग्वालियर विधानसभा चुनाव.. मंत्री, पूर्व मंत्री सहित सभी मैदान मारने बहा रहे पसीना
विधानसभा चुनाव में इस बार भाजपा-कांग्रेस के दिग्गजों की साख भी दांव पर लगी है। मंत्री और पूर्व मंत्रियों के सामने जीत की बड़ी चुनौती है। ग्वालियर-चंबल की 34 में से 15 हॉट सीटें हैं। जहां वर्तमान या पूर्व मंत्री मैदान में हैं। इसमें १० सीटें ऐसी हैं, जिस पर कड़ा मुकाबला है।
यानी दिग्गजों के लिए भी जीत दर्ज करना आसान नहीं होगा। 5 सीटें त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी हैं। हालांकि सभी दलों के प्रत्याशी जीत के लिए बड़ी मशक्कत कर रहे हैं, देखना यह है कि कौन मैदान मारता है। पिछले चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने अंचल की 34 में से 26 सीटों पर जीत दर्ज की थी। इस बार कई दिग्गजों ने दल-बदलकर चुनाव में फिर ताल ठोकी है। कोई बसपा से भाजपा-कांग्रेस में गया तो कोई कांग्रेस से भाजपा और भाजपा से कांग्रेस में आकर चुनावी रण में लड़ रहा है।
तोमर को ठाकुर-ब्राह्मण उम्मीदवार से चुनौती
दिमनी से केंद्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर त्रिकोणीय मुकाबले में उलझे हैं। इस बार तोमर के खिलाफ कांग्रेस ने विधायक रवीन्द्र सिंह तोमर को उतारा है तो बसपा से गिर्राज दंडौतिया मैदान में हैं। अब तक भाजपा से तोमर समर्थक ही प्रत्याशी उतरते रहे हैं। जीत के लिए तोमर को ठाकुर वोटर्स की नाराजगी को दूर कर लामबंद करना होगा।
मिश्रा को एंटी इन्कंबेंसी से निपटना होगा
दतिया से डॉ. नरोत्तम मिश्रा के सामने राजेन्द्र भारती मैदान हैं। दोनों चौथी बार आमने-सामने हैं। भारती सरकार के भ्रष्टाचार और अपराध को मुद्दा बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं। मिश्रा के सामने सरकार की एंटी इन्कंबेंसी भी चुनौती है। दलित-ओबीसी का वोट बैंक ही इस सीट पर हार-जीत तय करेगा।
आदिवासी के साथ किरार वोट भी लाने होंगे पाले में
भितरवार में कांग्रेस के पूर्व मंत्री लाखन सिंह का भाजपा के मोहन सिंह राठौर से मुकाबला है। लाखन का क्षेत्र में बड़ा नेटवर्क है, तो राठौर का यह पहला चुनाव है। वे कांग्रेस से ही बीजेपी में आए हैं। क्षेत्र में ठाकुर वोट भी कम हैं। किरार-ब्राह्मण बाहुल्य क्षेत्र है। सहरिया आदिवासी अब तक लाखन के पक्ष में वोट करते रहे हैं। ऐसे में राठौर को इन्हें अपने पक्ष में लाना बड़ी चुनौती बनी हुई है।
सक्रियता रहेगी माया सिंह के लिए चुनौती
ग्वालियर पूर्व से भाजपा से पूर्व मंत्री माया सिंह मैदान में हैं। उनका मुकाबला कांग्रेस के सतीश सिकरवार से है। सिकरवार पिछली बार भाजपा के टिकट से लड़े थे, उन्हें मुन्नालाल गोयल ने हराया था। उपचुनाव में कांग्रेस के टिकट पर लड़े सिकरवार ने जीत दर्ज की थी। इस सीट पर भी कड़ा मुकाबले है। माया क्षेत्र में कम सक्रिय हैं। सिकरवार जनसंपर्क में आगे हैं।
त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी भिंड सीट
भिंड सीट त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी है। कांग्रेस के टिकट पर पूर्व मंत्री चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी प्रत्याशी हैं जो पिछली बार भाजपा के टिकट पर लड़े थे। संजीव सिंह भाजपा से टिकट न मिलने पर फिर से बसपा से लड़ रहे हैं। भाजपा ने नरेन्द्र सिंह कुशवाह को टिकट दिया है। राकेश सिंह की ब्राह्मण, ठाकुर के साथ जैन वोटर्स में भी अच्छी पकड़ है।
शिवपुरी में फंसे
पिछोर से 6 बार विधायक रहे कांग्रेस के दिग्गज केपी सिंह इस बार शिवपुरी सीट से भाजपा के देवेन्द्र कुमार जैन के सामने हैं। इस सीट से लगातार यशोधरा राजे सिंधिया जीत दर्ज करती रही हैं। वैश्य वर्ग यहां भाजपा का साथ देता रहा है। बीजेपी के प्रभाव से वैश्य को दूर कर १४ हजार मुस्लिम मत को सिंह को अपने पाले में लाना होगा।
बघेल और ब्राह्मण वोटर्स को पाले में लाना कुशवाह के लिए चुनौती
ग्वालियर ग्रामीण से भारत सिंह कुशवाह उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण (स्वतंत्र प्रभार) मंत्री हैं। इनके सामने कांग्रेस से साहब सिंह गुर्जर प्रत्याशी हैं। गुर्जर पिछली बार बीएसपी से लड़े थे। इस बार दोनों में कड़ा मुकाबला है। बीएसपी के सुरेश बघेल मैदान में हैं। भाजपा के सामने इस बार बघेल और ब्राह्मणों को साधने की चुनौती है।
जमीनी स्तर का नेता होने का मिल सकता है फायदा
ग्वालियर सीट से प्रद्युम्न सिंह तोमर चौथी बार मैदान में हैं। २०१८ में कांग्रेस टिकट से चुनाव लडक़र मंत्री बने थे। सिंधिया गुट के तोमर ने उपचुनाव में भी जीते। इस बार मुकाबला कांग्रेस के सुनील शर्मा से है। इस सीट पर ब्राह्मण-मुस्लिम वोट को पक्ष में लाना प्रद्युम्न के लिए चुनौती है। हालांकि, जमीनी स्तर पर राजनीति करने का फायदा हो सकता है।
दो ठाकुर के बीच दलित वोट बैंक पर नजर
अटेर से भाजपा के मंत्री अरविंद सिंह भदौरिया के सामने पूर्व विधायक हेमंत कटारे मैदान में हैं। भाजपा से पूर्व विधायक रहे मुन्ना सिंह भदौरिया बसपा से मैदान में हैं। इस बार दो ठाकुर आमने-सामने होने से ठाकुर वोट बंटेंगे। इस सीट पर ब्राह्मण और ठाकुर दोनों वोटर्स का बड़ा रोल है। २० प्रतिशत से ज्यादा दलित और 15 हजार लोधी वोटर्स जिस पाले में जाएंगे, उसे जीत मिल सकती है।
पोहरी में है बसपा-दलित बड़ा फैक्टर
पोहरी से सिंधिया समर्थक सुरेश धाकड़ राज्य मंत्री हैं। भाजपा से लड़ रहे धाकड़ का मुकाबला कांग्रेस के कैलाश कुशवाह से है। कुशवाह पिछली बार बसपा से खड़े हुए थे। यहां कुशवाह वोटर्स ज्यादा हैं। धाकड़ को विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है। बसपा के प्रद्युमन वर्मा भी ताल ठोक रहे हैं। ऐसे में मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। धाकड़ के साथ जाटव वोटर्स भी बसपा की ताकत बन सकते हैं।