गाजा में फहराया अपना झंडा, जानिएं अब आगे क्या करेगा इजरायल
नई दिल्ली । हमास के खिलाफ लड़ाई में इजरायली फौज ने निर्णायक मोड़ की तरफ कदम बढ़ा दिया है। इजरायल सुरक्षा बल (IDF) के जवान अब तक गाजा पट्टी में दो मील से भी ज्यादा अंदर घुस चुके हैं और वहां हमास आतंकियों पर कहर बरपा रहे हैं। लगभग दो दशक में पहली बार ऐसा हुआ है, जब IDF ने फिलिस्तीनी क्षेत्र में अपना राष्ट्रीय ध्वज फहराया है। न्यूयॉर्क पोस्ट के अनुसार, हाल ही में IDF जवानों को गाजा शहर में एक बिल्डिंग पर कब्जा कर उसके ऊपर इजरायली झंडा फहराते हुए देखा गया है।
अमेरिकी मीडिया हाउस के मुताबिक इस घटना का एक वीडियो भी कैमरे में कैद हुआ है, जिसमें इजरायली झंडा लहराते IDF के सैनिकों की तस्वीरें एक यहूदी मीडिया आउटलेट इजरायल हायो द्वारा सोशल मीडिया पर प्रसारित की गईं। IDF के एक बयान के मुताबिक, IDF अब दावा कर रही है कि वे हमास को वैसे ही हरा रही है जैसे दुनिया ने ISIS आतंकियों को हराया था। इजरायली फौज के बयान में कहा गया है कि कट्टरपंथी इस्लाम मानवता का दुश्मन है। उसे शिकस्त देकर इजरायल इस दुनिया को बेहतर बनाने की जंग लड़ रही है।”
लंबी जंग नहीं चाह रहे इजरायली रणनीतिकार
विशेषज्ञों का मानना है कि इजरायली अधिकारी गाजा के लिए दीर्घकालिक योजनाओं और रणनीतिक रूप से लंबी लड़ाई की नहीं सोच रहे हैं क्योंकि गाजा पट्टी में चल रहा उनका जमीनी हमला एक महंगा सौदा है। उधर, हमास ने भी लड़ाई को लंबा खींचने की तैयारी कर रखी है, जबकि यूएन, अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस समेत तमाम यूरोपीय देश और भारत भी इजरायल पर गाजा पट्टी में संघर्ष विराम का दबाव बना रहे हैं। ऐसे में इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के पास तीन बड़े विकल्प बचते हैं।
विकल्प-1: गाजा पर पुनः कब्ज़ा
विशेषज्ञों का मानना है कि हमास के मंसूबों को कुचल रहा इजरायल अगर दुनिया की धमकियों और अंतरराष्ट्रीय दबाव की परवाह किए बिना इसी रास्ते पर चलता रहा तो वह गाजा पट्टी पर फिर से कब्जा कर सकता है और फिलिस्तीनी क्षेत्र पर फिर से शासन करने का जिम्मेदार बन सकता है। बता दें कि इजरायल ऐसा पहले भी कर चुका है। 1967 और 1973 की जंग में इजरायल ने अरब लीग को हरा दिया था और गाजा पर कब्जा कर लिया था। हालांकि, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिम कार्टर की पहल पर मिस्र और इजरायल ने शांति समझौता किया था। फिर 2005 में इजरायल ने गाजा पट्टी से अपने सैनिकों को वापस बुला लिया था। इसके दो साल बाद ही 2007 में हमास ने गाजा पट्टी में चुनाव जीत लिया। इसके बाद फिर से इजरायल और हमास में ठन गई।
मौजूदा समय में इजरायल द्वारा गाजा पर फिर से कब्जा करना एक चुनौतीपूर्ण विकल्प हो सकता है क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पिछले दिनों अपने एक इंटरव्यू में इस बारे में साफ तौर पर चेतावनी दी है कि इजरायल के लिए गाजा पट्टी पर फिर से कब्जा करना “एक बड़ी गलती होगी”, और इजरायली सैनिकों को बड़े पैमाने पर हिंसक प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा। मौजूदा हवाई हमलों ने इजरायल के प्रति फिलिस्तीनी रवैये को इस तरह से कठोर कर दिया है कि वो लंबे समय तक जंग कर सकते हैं।
विकल्प-2: हमास का खात्मा कर छोड़ दें गाजा
मि़डिल-ईस्ट में संघर्ष लंबा न चले, गाजा पट्टी में शांति स्थापित हो जाए और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इजरायल की विन-विन कंडीशन रहे। ऐसी सूरत में इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के पास दूसरा विकल्प यह है कि वो गाजा पट्टी में हमास को जड़ से उखाड़ फेंकें और गाजा पट्टी पर यहूदी शासन करने की न सोचें। लेकिन इस स्थिति में, गाजा पट्टी में पहले से भी ज्यादा अराजकता फैलने और हिंसक संघर्ष होने की आशंका है क्योंकि कई समूह हमास के खात्मे से उपजे वैक्यूम को भरने के लिए तेजी से प्रतिस्पर्धा कर सकते हैं।
इजराइल के रीचमैन यूनिवर्सिटी में फिलिस्तीनी मामलों के प्रोफेसर, माइकल मिलशेटिन कहते हैं, “यह उस नई व्यवस्था की तरह लग सकता है जिसे अमेरिका ने 2003 में बाथ शासन के पतन के बाद इराक में स्थापित करने की कोशिश की थी।” उनका कहना है कि इनमें से कई समूह (जैसे इस्लामिक जिहाद) संभवतः हमास से भी अधिक उग्र हो सकते हैं, जो नागरिकों के खिलाफ क्रूर हिंसा में शामिल रहे हैं और 2017 के चार्टर में 1967 की सीमा-रेखा के मुताबिक दो देशों के समाधान के समर्क रहे हैं। मिलशेटिन के मुताबिक, गाजा पर अधिकार जमाने के लिए उत्तरी अफ्रीका, सीरिया और इराक के आतंकवादी समूह भी आपस में मिल सकते हैं। ऐसी स्थिति इजराइल की सीमा पर छोटे मोगादिशु जैसा हो सकता है।
विकल्प-3: गाजा पर शासन के लिए लाया जाए नया खिलाड़ी
मिलशेटिन का मानना है कि इतने कम समय में हमास का खात्मा पूरी तरह से गाजा पट्टी से हो जाए, यह मुश्किल सा दिखता है क्योंकि हमास दावा करता रहा है कि उसके पास 300 मील की गहराई वाले टनल्स हैं और गाजा की सघन आबादी वाले इलाकों में शहरी योद्धा हैं, जो किसी भी सेना के लिए बड़ी चुनौती है। इस बात की भी संभावना है कि इजरायली फौज भले ही हमास के ठिकानों को ध्वस्त कर दे लेकिन लोगों के जेहन से हमास वाली सोच खत्म नहीं कर सकता है।
ऐसे में विशेषज्ञ तीसरे विकल्प की बात करते हैं। इस स्थिति में, इजरायल गाजा के भीतर अन्य स्थानीय गुटों की तलाश कर सकता है और एक नई सत्तारूढ़ पार्टी बनाने के लिए उनके साथ साझेदारी करने की कोशिश कर सकता है। टाइम मैग्जीन को दिए एक इंटरव्यू में मिलशेटिन कहते हैं, “इस विकल्प में जनजातियों के प्रमुख, गैर सरकारी संगठनों के लोग, या महापौर, यहां तक कि मौजूदा फिलिस्तीनी प्राधिकरण को नियंत्रित करने वाले राजनीतिक दल फतह के वरिष्ठ व्यक्ति भी हो सकते हैं।”
फिलिस्तीनी प्राधिकरण पर क्या सोच?
ऑस्ट्रेलिया नेशनल यूनिवर्सिटी में मध्य पूर्व की राजनीतिक अर्थव्यवस्था पढ़ाने वाले अनस इक्तेत का कहना है कि अगर ऐसा होता है, तो इजरायल फिलिस्तीनी प्राधिकरण (PA) को ही शामिल करने को अपनी प्राथमिकता रखेगा। इक्तेत ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि गाजा में हमास को पूरी तरह से सत्ता से हटाना इजरायल के लिए व्यवहार्य है, लेकिन अगर वे ऐसा करते हैं, तो हमने अतीत में जो देखा है, उसके आधार पर फिलिस्तीनी प्राधिकरण ही इजरायल के लिए सबसे उपयुक्त या सबसे तार्किक विकल्प हो सकता है।”
बता दें कि 2006 में चुनाव हारने से पहले फिलिस्तीनी प्राधिकरण ही गाजा पर शासन करता था। हमास और फतह के बीच हिंसक झड़पों के कारण 2007 में फिलिस्तीनी प्राधिकरण गाजा पट्टी से पूरी तरह से पीछे हट गया था। तब से इस क्षेत्र पर हमास का शासन है। हालांकि, एक बड़ी चुनौती यह भी है कि फ़तह और फ़िलिस्तीनी प्राधिकरण (PA) हाल के वर्षों में फिलिस्तीनियों के बीच बेहद अलोकप्रिय हो गए हैं। प्राधिकरण के शासन वाले वेस्ट बैंक में भी फिलिस्तीनी PA को इजरायल के पिट्ठू के रूप में देखते हैं। अगर तीसरा विकल्प लागू हुआ तो इजरायल पीए के सहारे वहां भी शासन कर सकता है और अंतरराष्ट्रीय फलक पर भी लीड ले सकता है।