सूर्य उपासना का चार दिवसीय अनुपम लोकपर्व छठ संपन्न

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सुख-समृद्धि का पड़ा अर्घ्य

RANCHI : चैत्र शुल्क पक्ष की सप्तमी तिथि पर सोमवार को व्रतधारियों ने सुबह 5:28 बजे उदयीमान भुवन भास्कर संग उनकी पहली किरण उषा को दूध से अर्घ्य अर्पित कर नमन किया।

पुत्र-रत्न, सुख-समृद्धि एवं निरोग काया की कामना को लेकर अर्घ्य देने, कोशी भरने और हवन के पश्चात व्रतधारियों का 36 घंटे का निराहार व निर्जला महापर्व सम्पन्न हुआ।

फिर शुरू हुआ व्रतियों द्वारा महाप्रसाद वितरण और खोइचा भराई का रस्म। अनुष्ठान के चौथे दिन व्रतधारियों द्वारा उगते सूर्य को अर्घ्य देने के उपरान्त अन्न-जल ग्रहण कर पारण किया।

वहीं, षष्ठी तिथि पर रविवार को व्रतियों ने सूर्य की अतिंम किरण प्रत्यूषा के साथ अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया।

इस योग में श्रद्धालु भक्ति की रोशनी में सूरूज देवा की कृपा से निहाल थे। इस दौरान श्रद्धालुओं को सूर्यदेव के प्रादुरभाव का एहसास होता रहा।
छत पर हौज बनाकर भगवान भास्कर को दिया अर्घ्य
आधुनिकता के इस युग में व्रती नदी, तालाब,पोखर एवं डैम में शोर-शराबा और लोगों की हुजुम से दूर अपने घरों की छत पर कुछ लोगों ने हौज बनाकर भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया।

भक्ति और आध्यात्म से परिपूर्ण भगवान भुवन भास्कर की उपासना का अनुपम लोकपर्व राजधानी के धुर्वा डैम, डोरण्डा बटम तालाब, सेक्टर थ्री स्थित मत्स्य विभाग का तालाब सहित अन्य तालाबों, पोखर और कुआ में व्रतियों ने छठ किया।

कुछ व्रतधारियों ने दंडवत होकर आदित्य देव की आराधना किया।

वहीं, षष्ठीं तिथि के दिन रविवार की शाम ढली सुरज ने अपना रास्ता बदला। व्रतियों संग भक्तों ने प्रभु सूर्य को अर्घ्य दिया।

फिर व्रतियों ने अपने-अपने घरों की ओर रुख किये। व्रतधारी दूसरे अर्घ्य की तैयारी में लग गये। सोमवार की सुबह लाल किरणे उदयामान होते ही व्रतियों ने भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया।

व्रतधारी आशा और प्रत्युषा समेत आदित्य प्रभु की आशीष पाने के लिए उत्सुकता के साथ छठ घटों में खड़े दिखे।

सोमवार को व्रती पारण कर व्रत को पूर्ण किया।
डाला सजाने का काम दोपहर के बाद
रविवार की दोपहर से छठ की लोकगीतों के बीच डाला सजाने और उनमें प्रसाद रखने का काम शुरू हो गया था।

व्रती ने डाला में प्रसाद, फल और अन्य पूजा सामग्री एकत्रित कर छठ घाट की ओर रूख किया।

पिछले शाम की पुनरावृत्ति प्रक्रिया सप्तमी तिथि की सुबह भी की गयी। व्रतधारियों द्वारा रविवार को दोपहर 3 बजे और सोमवार को अगले सुबह 4 बजे के बाद से छठ घाट पर जाने का क्रम शुरू हुआ।

रास्ते भर गीत गाया गया एवं विभीन्न सामाजिक और धार्मिक संगठनों द्वारा व्रतधारियों का स्वागत किया गया।
छठ गीतों की होती रही मनन
चार दिवसीय छठ उपासना में 72 घंटे की पूजन और 36 घंटे का निर्जला उपवास के दौरान राजधानी एवं इसके आस-पास छठ गीतों की मनन होती रही।

केरवा जे फरेला घवद से ओह पर सुगा मेड़राय…, उगु न सुरुज देव भइलो अरग के बेर …, सेविले चरन तोहार हे छठी मइया …, महिमा तोहर अपार …,चार कोना के पोखरवा …, आदि गीतों से छठमय हुई।

प्रसाद मांगने की परंपरा
उगते सूर्य को अर्घ्य देने के उपरान्त व्रतधारियों ने भगवान की पूजा और होम किया।

पूजन के पश्चात टीका लगाने और प्रसाद लेने के लिये छठ घटों पर लोगों की भीड़ जुटी। पूजा की समाप्ति पर प्रसाद मांगने की परंपरा चली आ रही है।

कहते हैं कि छठीं मइया का प्रसाद मांगने से पुण्य मिलता है।
दंडवत प्रणाम करते छठ घाट तक पहुंचे व्रती
कई छठ व्रतधारी दंडवत प्रणाम करते हुये छठ घाट तक पहुंचे।

छठी मइया और भगवान भास्कर से विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिये व्रती दंडवत प्रणाम करते हुए छठघाट जाते है।

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