Manipur violence: मणिपुर को हिंसा से बचाया जा सकता था!, आखिर हाईकोर्ट ने अपने आदेश का पलट दिया…

0

मणिपुर । पिछले करीब दस माह से मणिपुर हाईकोर्ट के जिस आदेश के कारण समूचा मणिपुर हिंसा की आग में झुलस रहा था, हाईकोर्ट ने अब अपने आदेश का वह हिस्सा ही डिलीट कर दिया है. मणिपुर हाईकोर्ट ने 27 मार्च 2023 को एक रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में शामिल करने के लिए केंद्र सरकार को सिफारिश भेजे. याचिका में कहा गया था कि मैतेई समुदाय ऐतिहासिक रूप से वंचित रहा है और एसटी का दर्जा उन्हें आरक्षण और अन्य लाभों का हकदार बनाएगा।

हाईकोर्ट के इस आदेश को गलत संदर्भ में लेने के बाद ही पूरे मणिपुर में हिंसा भड़क गई थी, जिसमें अब तक दो सौ से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और राज्य में अभी भी कई जगहों पर छिटपुट हिंसा जारी है. दरअसल हाईकोर्ट के इस निर्णय को कुकी समुदाय ने अपनी हार की तरह देखा था, क्योंकि मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह खुद मैतेई समुदाय से आते हैं।

जंगलों में रहने वालों लोगों को बेदखल किया

अदालत के इस फैसले से पहले ही बीरेन सिंह सरकार ने कुछ ऐसे काम शुरू कर दिए थे, जिसे कुकी समुदाय के लोग खुद पर हमले की तरह देख रहे थे. जैसे फरवरी 2023 के महीने में बीरेन सिंह की सरकार ने चुराचांदपुर, कांगपोकपी और तेंगनूपाल जिलों में बेदखली अभियान चलाया. जंगलों में रहने वाले लोगों को ये कहकर निकाला जाने लगा कि ये म्यांमार से आए घुसपैठिए हैं।

इसके बाद मार्च 2023 में बीरेन सिंह सरकार ने एक त्रिशंकु शांति संधि से अपने हाथ वापस खींच लिए. ये संधि थी सस्पेन्शन ऑफ ऑपरेशन, जो केंद्रीय गृह मंत्रालय, राज्य सरकार और कुकी उग्रवादी गुटों के बीच हुई थी. इसमें कहा गया था कि उग्रवादी, सेना और पुलिस एक दूसरे पर गोली नहीं चलाएंगे, न ही ऐसी नौबत लाएंगे।

सीएम बीरेन सिंह ने शांमि संधि से हाथ पीछ़े खींच लिया

बीरेन सिंह द्वारा इस शांति संधि से हाथ खींचने पर उनकी बहुत आलोचना हुई थी. ऐसे माहौल में हाईकोर्ट का आदेश आने के बाद कुकी समुदाय के लोगों को लगा कि राज्य सरकार उन्हें निशाना बनाने की कोशिश कर रही है और हाईकोर्ट के फैसले के बाद कुकी समुदाय ने आंदोलन शुरू कर दिया।

हाई कार्ट ने अपना फैसला पलटा

अब मणिपुर हाईकोर्ट में जस्टिस गोलमेई की पीठ ने कहा है कि दस माह पहले दिया गया वह फैसला महाराष्ट्र सरकार बनाम मिलिंद एवं अन्य के मामले में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विपरीत है. महाराष्ट्र सरकार बनाम मिलिंद एवं अन्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अदालतें अनुसूचित जनजाति की सूची में संशोधन या बदलाव नहीं कर सकतीं।

इस वजह से कोर्ट अपने पुराने फैसले में संशोधन कर रहा है. राज्य में जिस तरह से हिंसा की आग धधक रही है, संभव है कि अदालत के जेहन में यह बात भी रही हो. महाराष्ट्र सरकार बनाम मिलिंद एवं अन्य का मामला दो दशक से भी अधिक पुराना है. अगर दस माह पहले दिए गए फैसले को राज्य सरकार बेहतर ढंग से जनता तक पहुंचाती तो राज्य को दस माह तक हिंसा की आग में झुलसने से बचाया जा सकता था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You may have missed