देश में विवाह संस्था की रक्षा-संरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की अहम टिप्पणी..
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (5 फरवरी, 2024) को अविवाहित महिलाओं को सरोगेसी की अनुमति देने से जुड़ी एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सख्त टिप्पणी की। कोर्ट ने इसकी अनुमति देने में आपत्ति जताते हुए कहा, “देश में विवाह संस्था की रक्षा और उसका संरक्षण किया जाना चाहिए। हम पश्चिमी देशों की तर्ज पर नहीं चल सकते जहां शादी के बिना बच्चे पैदा करना असामान्य बात नहीं है।”
सर्वोच्च अदालत की यह टिप्पणी 44 साल की एक अविवाहित महिला की याचिका पर सुनवाई के दौरान आई। चूंकि, भारत में शादी के बिना सरोगेसी की अनुमति नहीं है और इस मामले में महिला ने सरोगेसी के जरिए मां बनने की अनुमति मांगने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
‘शादी के दायरे में आकर मां बनना आदर्श’
जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “भारतीय समाज में एक अकेली महिला का शादी के बिना बच्चे को जन्म देना नियम नहीं था, बल्कि यह अपवाद था। यहां शादी के दायरे में आकर मां बनना आदर्श है। शादी से बाहर मां बनना कोई आदर्श नहीं है।”
आप रूढ़िवादी का टैग दे सकती हैं- जज ने कहा
जज नागरत्ना आगे बोले, “हम इस पर चिंतित हैं। हम बच्चे के कल्याण के दृष्टिकोण से यह बात कर रहे हैं। देश में विवाह जैसी संस्था जीवित रहनी चाहिए या नहीं? हम पश्चिमी देशों की तरह नहीं हैं। यहां शादी जैसी चीजों को संरक्षित किया जाना चाहिए। आप बेशक हमें इसके लिए बहुत कुछ कह सकती हैं, रूढ़िवादी होने का टैग दे सकती हैं। हम इसे स्वीकार करते हैं।”
सर्वोच्च अदालत ने नहीं मानी दलील
मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने वाली याचिकाकर्ता ने वकील श्यामल कुमार के जरिए सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम की धारा 2 (एस) की वैधता को चुनौती देते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था। सुनवाई की शुरुआत में बेंच ने महिला से कहा कि मां बनने के और भी तरीके हैं। बेंच ने इसके साथ ही सुझाव दिया कि वह शादी कर सकती है या बच्चा गोद ले सकती है। हालांकि, उसके वकील की ओर से कहा गया, “वह शादी नहीं करना चाहती है, जबकि गोद लेने की प्रक्रिया का वेटिंग टाइम बहुत लंबा है।” अदालत ने इस पर कहा, “शादी जैसी चीज को खिड़की से बाहर नहीं फेंका जा सकता। 44 साल की उम्र में सरोगेट बच्चे का पालन-पोषण करना मुश्किल है। आपको जीवन में सब कुछ नहीं मिल सकता है। आपके मुवक्किल ने अविवाहित रहना पसंद किया। हम समाज और विवाह संस्था को लेकर भी चिंतित हैं। हम पश्चिम की तरह नहीं हैं जहां कई बच्चे मां और पिता के बारे में नहीं जानते हैं। हम नहीं चाहते कि बच्चे माता-पिता के बारे में जाने बिना यहां घूमें।”