मेवाड़ में जिसकी पार्टी, वहीं राजस्थान की सत्ता पर क्या हटा पाऐंगे राहुल और PM मोदी ?

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जयपुर। मेवाड़ में अपनी अपनी पार्टी को जीत दिलाने के लिए कांग्रेस और बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. इस क्षेत्र में कांग्रेस नेता राहुल गांधी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक जनसभा कर चुके हैं.

‘जिसने मेवाड़ को जीत लिया उसने राजस्थान जीत लिया’ राजनीति में राजस्थान को लेकर ये कहावत काफी मशहूर है. शायद यही कारण है कि मेवाड़ में कांग्रेस से लेकर भारतीय जनता पार्टी तक, सभी सियासी दलों ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी है.

राजस्थान का द्वार कहा जाने वाला मेवाड़ का अपना सैकड़ों साल पुराना इतिहास है. यहां के शासकों राणा सांगा, बप्पा रावल, महाराणा प्रताप के किस्सों ने मेवाड़ को भारत में ही नहीं पूरी दुनिया में अलग पहचान दिलाई है.

अपने ऐतिहासिक महत्व के साथ ही मेवाड़ राजस्थान की सियासत में भी रसूख रखता है. यही कारण है कि इस बार भी इस सीट पर अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है.

इस संभाग में कांग्रेस नेता राहुल गांधी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक जनसभा कर चुके हैं. चुनावी मौसम में इस क्षेत्र में हर रोज रैलियां और जनसभाएं होना आम बात है.
यहां तक की देश प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बांसवाड़ा के मानगढ़ धाम आ चुके हैं और अब राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का अलग चरण मेवाड़ से ही शुरू होने वाला है. इस सीट को जीतने के के लिए दोनों पार्टियों के बीच आरोप- प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया.

इन आरोपों में सबसे आम आरोप है वंशवाद का. यानी अपने परिवार को ही राजनीति में आगे बढ़ाना.

ऐसे में इस रिपोर्ट में समझते हैं कि क्या इस चुनाव में मेवाड़ को वंशवाद के आरोपों में कितनी सच्चाई है, और कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के लिए यह सीट इतनी जरूरी क्यों है?

पहले समझते हैं मेवाड़ राजस्थान के लिए कितना जरूरी

मेवाड़ जयपुर से 394 किमी. दक्षिण में बसा हुआ एक जिला है जिसकी सीमाएं मध्य प्रदेश और गुजरात से मिलती हैं. इस इलाके को भले ही ऐतिहासिक तौर पर मेवाड़ कहा जाता है लेकिन मौजूदा समय में ये उदयपुर संभाग कहलाता है.

इस साल संभागों में हुए बदलाव के बाद उदयपुर संभाग में उदयपुर, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, भीलवाड़ा और सलूम्बर जिले आते हैं. इससे पहले इस संभाग में बांसवाड़ा, डूंगरपुर, प्रतापगढ़ जिले भी आते थे.

मेवाड़ ने ही राजस्थान को चार मुख्यमंत्री दिए हैं, इन मुख्यमंत्रियों में मोहन लाल सुखाड़िया ऐसे नेता रहे हैं जिन्होंने सबसे ज़्यादा समय तक यानी कुल 16 सालों तक इस पद को संभाला. इसके अलावा मेवाड़ के नेताओं को मंत्रिमंडल में भी जगह मिलती रही है.

मेवाड़ में जिसकी पार्टी, वहीं राजस्थान की सत्ता पर

मेवाड़ के पुराने चुनावी परिणाम को देखें तो पाएंगे कि साल 2018 के परिणाम के अलावा पिछले सभी चुनावों में वही पार्टी सत्ता में है जिसने इस संभाग में जीत हासिल की हो.

साल 2013 में हुए चुनाव में 28 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी ने 25 सीटें अपने नाम की थी, जबकि कांग्रेस को सिर्फ दो सीटें मिली थी. उस वक्त राजस्थान में भी भारतीय जनता पार्टी की ही सरकार सत्ता में आई थी.
इसी तरह साल 2008 में इस संभाग से कांग्रेस ने 19 और भारतीय जनता पार्टी ने 7 सीटें जीती थी, इस बार भी राज्य में कांग्रेस की पार्टी सत्ता में आई.
साल 2003 में परिसीमन से पहले 25 सीटों में से भारतीय जनता पार्टी को 18 और कांग्रेस को 5 सीटें मिलीं. इस बार राज्य में भी सरकार भारतीय जनता पार्टी की ही बनी.
हालांकि साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ जब भारतीय जनता पार्टी को 15 सीटें मिली और कांग्रेस को 10 सीटें, फिर भी राज्य में सरकार कांग्रेस की थी.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट

एक रिपोर्ट में राजनीतिक विश्लेषक कुंजन आचार्य इसी सवाल का जवाब देते हुए कहते हैं, ‘‘मेवाड़ सालों से सत्ता का द्वार कहलाता है लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में पहली बार ऐसा हुआ कि मेवाड़ को और पार्टी ने जीता और सत्ता में कोई और पार्टी आ गई.

अपवाद होते रहते हैं लेकिन आज भी मेवाड़ को जीतना सभी पार्टियों की प्राथमिकता है. उन्होंने कहा कि इस संभाग में वैसे तो कुल 200 से में से 28 सीटें हैं लेकिन इनका प्रभाव चाहे वो किसी लहर में हो, जातीय हो या भावनात्मक हो, अन्य सीटों पर भी पड़ता है.’’

एक और वरिष्ठ पत्रकार उग्रसेन राव ने एबीपी से बातचीत में कहा, ‘‘पूरे देश में महाराणा प्रताप और मीरा का नाम स्थापित है. यह क्षेत्र वीरता और भक्ति का एक ऐसा पुंज है जिस पर पूरे राजस्थान को गर्व है और ये बात राजनीतिक पार्टियां भी काफी अच्छे से समझती हैं.’’

मेवाड़ की सियासत पर वंशवाद का आरोप

उदयपुर की राजनीति पर नजर डालें तो अब तक कई ऐसे विधायक और सांसद हैं जिनके परिवार में पिता, भाई, पति भी विधायक रह चुके हैं और उन्हें टिकट भी इसी बलबूते पर मिला है. इन उम्मीदवारों में कुछ तो जीतकर आगे बढ़ गए लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो अब भी कोशिश में लगे हैं. आइए देखते हैं कौन हैं वह चेहरे जिन्हें विरासत में राजनीति मिली.

पूर्व सांसद रघुवीर सिंह मीणा: कुछ दिनों पहले ही रघुवीर सिंह मीणा कांग्रेस वर्किंग कमेटी में सदस्य पद से हटाए जाने को लेकर चर्चा में आई थी. मीणा की जगह मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीय दी गई. रघुवीर सिंह मीणा उदयपुर की सलूंबर विधानसभा से विधायक और उदयपुर सांसद रह चुके हैं. इनके पिता देवेंद्र मीणा भी विधायक रह चुके हैं.

प्रीति शक्तावत: प्रीति शक्तावत कांग्रेस में हैं और वो उदयपुर जिले की वल्लभनगर विधानसभा से विधायक हैं. इसी विधानसभा से विधायक रह चुके प्रीति शक्तावत के पति दिवंगत गजेंद्र सिंह शक्तावत के निधन के बाद उपचुनाव हुआ, जिसमें प्रीति शक्तावत खड़ी हुई और जीतकर विधायक बनीं.

गजेंद्र सिंह शक्तावत: दिवंगत नेता गजेंद्र सिंह शक्तावत वल्लभनगर विधानसभा सीट से विधायक थे. उनके पिता गुलाब सिंह शक्तावत गृहमंत्री रह चुके हैं और कांग्रेस के कद्दावर नेता भी थे.

भारतीय जनता पार्टी के विधायक प्रताप लाल गमेती: उदयपुर जिले की गोगुंदा सीट से दूसरी बार विधायक बने प्रताप लाल गमेती के भाई भूरा गमेती गोगुंदा से ही दो बार विधायक रहे.

विवेक कटारा: पूर्व विधायक खेमराज कटारा और पूर्व विधायक सज्जन कटारा के पुत्र विवेक कटारा उदयपुर ग्रामीण विधानसभा से खड़े हुए थे लेकिन हार का सामना करना पड़ा.

पूर्व कांग्रेस सांसद इंदुबाला सुखाड़िया: पूर्व मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाड़िया के निधन के बाद पत्नी इंदुबाला सुखाड़िया उदयपुर लोकसभा से सांसद रहीं.

बसंती देवी मीणा: बसंती देवी मीणा पूर्व सांसद रघुवीर सिंह मीणा की पत्नी हैं और बसंती देवी मीणा सलूंबर से विधायक रही हैं.

मेवाड़ में किस जाति का कितना प्रभाव?

चाहे लोकसभा चुनाव हो विधानसभा, भारत में किसी भी चुनाव में जीत हार के लिए जातीय समीकरण काफी मायने रखती है. मेवाड़ की बात करें तो यह आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र और अन्य में अलग-अलग जातियों की मिली जुली संख्या है.

यहां ज्यादातर जाट, माहेश्वरी, गुर्जर, राजपूत, ब्राह्मण, और अनुसूचित जातियों के मतदाता रहते हैं. जाट और गुर्जर यहां ओबीसी में आते हैं. जानकारों की मानें तो उदयपुर सिटी ब्राह्मण और जैन बाहुल्य सीट है. जबकि चित्तौड़गढ़ और वल्लभनगर में राजपूत मतदाताओं की संख्या ज्यादा है और यही कारण है कि इस क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी का वर्चस्व है.

गुर्जरों की आबादी भीलवाड़ा के मांडल में सबसे ज्यादा है जबकि आसींद में किसी पार्टी को जीत हासिल करनी है तो गुर्जर और ब्राह्मण दोनों की ज़रूरत पड़ती है. ठीक इसी तरह कुंभलगढ़ में राजपूत और माहेश्वरी की संख्या ज्यादा है इसलिए इस क्षेत्र में इसी जाति के उम्मीदवार ही जीतते रहे हैं. जबकि नाथद्वारा में अधिकतर ब्राह्मण और जैन प्रत्याशी की जीत हुई है.

उदयपुर सीटों को लेकर बीजेपी और कांग्रेस का आरोप प्रत्यारोप

भारतीय जनता पार्टी के उदयपुर सिटी जिला अध्यक्ष रविंद्र श्रीमाली ने हाल ही में गहलोत सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस पिछले चार सालों से हर मोर्चे पर विफल रही है. अब चुनाव नजदीक है तो अंत में जिस तरह से रेवड़ियां बांटने का काम कर रहे हैं, चाहे जितनी भी कोशिश कर लें, राज्य की जनता तय कर चुकी है कि वह इस बार भारतीय जनता पार्टी को ही विजयी बनाएगी.

रविंद्र के इस बयान के बाद उदयपुर के पूर्व सांसद और कांग्रेस नेता रघुवीर सिंह मीणा ने भी पलटवार करते हुए कहा, ‘‘यही काम भारतीय जनता पार्टी करे तो ठीक है, दूसरी पार्टी करे तो वो रेवड़ियां खिलाती हैं. अगर हमारे पार्टी (कांग्रेस) 100 यूनिट बिजली भी दे रही है तो इसे मुप्त की रेवड़ी नहीं कह सकते. ये लाभ भारतीय जनता पार्टी के लोग भी ले रहे हैं, कांग्रेस के लोग भी ले रहे हैं, ये लोगों को सहायता है.’’

एक नजर राजस्थान के पिछले विधानसभा चुनाव पर

इस राज्य में साल 2018 में 7 दिसंबर को विधानसभा चुनाव हुआ था और इसी साल अक्टूबर महीने की शुरुआत में चुनाव कार्यक्रम की घोषणा की गई थी. राजस्थान में 200 विधानसभा सीटें हैं. पिछले चुनाव यानी साल 2018 के में, कांग्रेस पार्टी ने 99 सीटों पर अपना वर्चस्व कायम किया था. जो बहुमत की संख्या से सिर्फ दो सीटें कम थी. बता दें कि प्रदेश में किसी भी पार्टी को बहुमत से जीत हासिल करवानी है तो कम से कम 101 सीटों पर जीत दर्ज करना होगा.

इस चुनाव में 99 सीटें अपने नाम करने के बाद कांग्रेस ने बहुजन समाज पार्टी (BSP) और राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के समर्थन के साथ बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया और सत्ता में आ गई. वहीं दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी (BJP) को 73 सीटें मिली थी और कांग्रेस के बाद भारतीय जनता पार्टी दूसरे नंबर पर रही.

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