इस बीमारी का डायबिटीज से कैसे हैं संबंध,क्या है डायबिटीक रैटिनोपैथी
डायबिटीज एक ऐसी बीमारी है जिसके सबसे ज्यादा मरीज हिंदुस्तान में हैं. एक अनुमान के मुताबिक हिंदुस्तान में 74 मिलियन लोग डायबिटिक है. अगर किसी को डायबिटीज की बीमारी एक बार हो जाए तो इसे खत्म करना बहुत ही मुश्किल होता है इसे सिर्फ अच्छे खान-पान और नियमित एक्सरसाइज से कंट्रोल किया जा सकता है न की पूरी तरह खत्म.
डायबिटीज का असर हमारे शरीर के अन्य अंगों पर भी पड़ता है. अगर इसे कंट्रोल न किया जाए तो परिणामस्वरूप ये हमारी आंखों को भी काफी नुकसान पहुंचा सकती है जिसकी वजह से हमारी आंखों की रोशनी भी कम हो सकती है. डायबीटिज से जुड़ी आंखों की इसी बीमारी को डायबिटिक रेटिनोपैथी का नाम दिया गया है.
क्या है डायबिटीक रेटिनोपैथी
डायबिटिक रेटिनोपैथी एक ऐसी समस्या है जिससे डायबिटीज के 30-40 प्रतिशत मरीज परेशान हैं. ये बीमारी हाई ब्लड शुगर की वजह से होती है. हाई ब्लड शुगर रहने और 10 साल से ज्यादा पुरानी डायबिटीज होने के कारण आंखों के पर्दों पर इसका असर पड़ने लगता है. आंख का पर्दा न्यूरल टिश्यू और खून की नसों से बना होता है. यहां से जो हम देखते हैं उसकी तस्वीर पीछे नसों और ब्रेन तक जाती है. जिससे हमें साफ दिखाई देता है लेकिन हाई ब्लड शुगर रहने से रेटिना में मौजूद खून की नसें कमजोर होने लगती है और उनमें से खून का रिसना शुरू हो जाता है और कई बार आंख के पर्दें पर सूजन तक आ जाती है जिससे व्यक्ति को देखने में परेशानी होती है. इसी स्थिति को मेडिकल टर्म में डायबिटीक रेटिनोपैथी कहते हैं.
डायबिटीक रेटिनोपैथी को दो स्टेजों में बांटा गया है. जैसे अर्ली डायबिटीक रेटिनोपैथी और एडवांस डायबिटीक रेटिनोपैथीअर्ली डायबिटीक रेटनोपैथी जिसे आमतौर पर नॉन प्रोलिफेरिटिव डायबिटीक रेटिनोपैथी कहा जाता है. इसे नॉन-प्रोलिफेरेटिव इसलिए कहा जाता है क्योंकि डायबिटीक रेटिनोपैथी के प्रारंभिक चरण के दौरान आंखों में न्यू ब्लड वैसेल्स नहीं बनती और इस दौरान पुरानी क्षतिग्रस्त नसों में से खून रिसने लगता है.
एडवांस डायबिटीक रेटिनोपैथी को प्रोलिफेरेटिव डायबिटीक रेटिनोपैथी भी कहा जाता है. यह रेटिनोपैथी का ऐसा चरण हैं जिसमें डैमेज ब्लड वैसेल्स पूरी तरह बंद हो जाते हैं. रेटिना में नई रक्त वाहिकाएं बननी शुरू हो जाती हैं. जिससे रेटिना के अंदर नई असामान्य ब्लड वैसेल्स का विस्तार होना शुरू हो जाता है और परिणामस्वरूप जेली जैसा पदार्थ रिसना शुरू हो जाता हैं जो आंख के केंद्र को पूरी तरह से भर देता है. इससे देखने में काफी परेशानी होनी शुरू हो जाती है.
इसके शुरूआती लक्षणों में
1. आंखे के सामने काले और भूरे रंग के धब्बे दिखाई देना
2. आंखों में धुंधलापन
3. आंखों के सामने अंधेरा छाना
4. रंगों को समझने में कठिनाई होना
5. और गंभीर समस्या में बिल्कुल भी दिखाई ना देना शामिल है.
डायबिटीक रेटिनोपैथी की गंभीरता के आधार पर इसका इलाज किया जाता है. इसका इलाज डायबिटीज को मैनेज करके भी किया जा सकता है जबकि गंभीर मामलों में लेजर उपचार या सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है.
इसलिए डायबिटीज के मरीज को अपने खाने-पीने और नियमित व्यायाम का खास ध्यान रखना चाहिए ताकि उनकी ब्लड शुगर कंट्रोल में रहें और साथ ही उन्हें अपनी आंखों की नियमित जांच भी करवानी चाहिए ताकि इस बीमारी से शुरूआत से ही बचा जा सके.