राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह का निमंत्रण अस्वीकार करना कांग्रेस के हिन्दू धर्म विरोध को दर्शाता है- सुधांशु त्रिवेदी

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नई दिल्ली। कांग्रेस ने अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने के निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया है। इससे भाजपा ने उसकी तीखी आलोचना की है। भाजपा ने कांग्रेस के आड़े हाथों लिया है। भाजपा सांसद सुधांशु त्रिवेदी ने कहा, यह नेहरू की कांग्रेस है, यह महात्मा गांधी की कांग्रेस नहीं है। रामराज की प्राण प्रतिष्ठा का निमंत्रण अस्वीकार करना कांग्रेस के अंदर के हिन्दू धर्म विरोध को दर्शाता है।गुरुवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा कि कांग्रेस ने नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार किया। कांग्रेस ने जीएसटी लागू करने के ऐतिहासिक फैसले का बहिष्कार किया। जी20 शिखर सम्मेलन का बहिष्कार किया। कांग्रेस ने कारगिल विजय दिवस का भी बहिष्कार किया।

उन्होंने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के नेतृत्व में मई 1998 में किए गए पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद कांग्रेस ने 10 दिन तक कोई बयान नहीं दिया। यहां तक कि कांग्रेस ने अपनी पार्टी के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के भारत रत्न समारोह का भी बहिष्कार किया था। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की इसी बहिष्कार मानसिकता के कारण जनता भी उनका सत्ता से बहिष्कार कर रही है। यहां एक बात स्पष्ट है कि कांग्रेस अपने प्रवृत्ति के अनुरूप काम कर रही है।

सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि 500 सालों के संघर्ष के बाद राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है लेकिन कांग्रेस अपनी प्रवृत्ति के अनुरूप काम कर रही है। सोमनाथ मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का भी जवाहरलाल नेहरू ने बहिष्कार किया था। नेहरू द्वारा 24 अप्रैल, 1951 में लिखे पत्र में प्राण प्रतिष्ठा का बहिष्कार किया गया था। फिर इंदिरा के जमाने में अयोध्या में 1976 में राम मंदिर साक्ष्य निकल रहे थे तो वहां काम रुकवा दिया गया था। सोनिया गांधी के जमाने में राम को काल्पनिक बता दिया गया लेकिन राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कांग्रेस के लिए मौका था कि वे अपने आप को बदल सकते थे।

उन्होंने कहा कि राम मंदिर के मुख्य पक्षकार अंसारी ने भी निमंत्रण स्वीकार किया है। कांग्रेस की परंपरा के सारे दल आज हाहाकार मचा रहे हैं। कांग्रेस गोत्र के सभी दलों ने स्पष्ट कर दिया है कि राजनीतिक दृष्टि से वे निष्प्राण होते जा रहे हैं। वे लोग प्रधानमंत्री मोदी के विरोध में भगवान के विरोध तक चले गए। हर ऐतिहासिक अवसर का विरोध करते- करते आज भारतीयता के मूल्यों पर उनकी कट्टरपंथ की राजनीति अधिक महत्वपूर्ण नजर आती है।

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