अविवेक का समापन और विवेक रूपी दीप प्रज्वलन का पर्व है ‘देव दीपावली’
– प्रो. आर. एन. त्रिपाठी
कार्तिक मास की पूर्णिमा को देव दीपावली का पर्व मनाया जाता है. भारतीय संस्कृति में इसे पृथ्वी पर देवताओं के उतरने की मान्यता के रूप में जाना जाता है।
इस दिन देश की अन्य नदियों के साथ-साथ विश्व के सबसे प्राचीन शहर काशी में अर्धवृत्ताकार गंगा के नगरीय छोर को दीपकों से सजाया जाता है, मानो बाबा काशी विश्वनाथ के नेतृत्व में समस्त देवतागण पृथ्वी पर देवत्व का बोध कराने आ रहे हों. दो दशकों से निरंतर आयोजित होने वाले इस उत्सव ने महोत्सव का रूप धारण कर विश्व-प्रसिद्धि हासिल कर ली है।
देव दीपावली की मान्यता
मान्यतानुसार त्रिपुर राक्षस का भगवान शिव ने वध करके अत्याचार से मुक्ति दिलाई, इसलिये वह त्रिपुरारी कहलाते हैं, एक मान्यता है कि राजा दिवोदास ने काशी में देवताओं को प्रतिबंधित कर दिया था. बाद में भगवान शंकर ने रूप बदलकर पंच-गंगा घाट पर स्नान कर इस प्रतिबंध को हटाया. इसीलिये देवता काशी में ही दीपोत्सव मनाते हैं. इस दिव्य त्योहार की दिव्यता मिट्टी के दियों एवं सुगंधियों तथा मंत्रों के स्वर से और अच्छी हो जाती है. काशी संस्कृति और संस्कार की नगरी है. त्याग और बलिदान इसका कर्मक्षेत्र है. इसी तिथि पर प्रकाश पर्व के रूप में गुरुनानक जन्मोत्सव भी मनाया जाता है जो सहचर भाव पैदा करता है।
काशी में देव दीपावली की भव्यता देखने दुनिया के तमाम देशों के सैलानी आते हैं. देव दीपावली के बहाने हमें इसकी ऐतिहासिक भाव-भूमि की उपयोगिता को भी ढूंढना होगा. गंगा, जो भारतीय संस्कृति की श्रोतस्वनी है, वह अविरल कैसे हो, स्वच्छ कैसे हो, हमें इसकी चिंता करनी होगी. हम नदियों में देवत्व देखते हैं तो उन्हें प्रदूषण से बचाने का सुकृत्य भी हमें ही करना होगा. जबतक हम हृदय में पवित्र भाव नहीं रखेंगे, तब तक देवागमन नहीं हो पायेगा. अस्तु नदियों को स्वच्छ रखना ही प्रथम देवाराधन है।
भगवान त्रिपुरारी की कहानी
वापस भगवान त्रिपुरारी पर लौटते हैं. उनसे जुड़ी एक कथा यह है कि उन्होंने तीन तत्वों को जो तारक और विन्धुमाल ने प्राप्त किया उसे नष्ट किया, जो समाज के लिये हानिकारक थे. मानव रचना के मूल में भी सत-रज-तम तीन तत्व हैं, इनका अनुकूल समायोजन करके ही हम देवत्व ला सकते हैं. वर्तमान समाज में अच्छे नागरिक का दायित्व बनता है कि वह भय, भूख, भ्रष्टाचार रूपी तीन समस्याओं को नष्ट करे, तब देवत्व अपने आप धारण कर लेगा. अहंकार, क्रोध, लोभ, वासना की मुक्ति के बाद हमारे भीतर का देवत्व जागता है, भैतिक तमस को हम दीपक/पूजा आदि के प्रतीक से नष्ट करते हैं लेकिन धारणा रूपी सुकृत्य इस उत्सव को यथार्थ रूप दे सकता है।
देव दीपावली के दिन ही विष्णु जी का मत्स्यावतार भी है. उनका अवतार भी मानवता को बचाने और दानवता को नष्ट करने के लिये हुआ था. इस दिन हमें भी सूख रही मानवीय संवेदनाओं को बचाने का प्रयास करना होगा. हमारे त्योहार समष्टि की पीड़ा के निवारण हेतु बने हैं, इनके पीछे छुपी कथायें इनके प्रयोगात्मक भाव-भूमि को दर्शाती हैं, ताकि उत्कृष्ट जीवन का निर्माण हो. इसीलिये दान, ज्ञान, उपासना, यज्ञ आदि के विधान बनाये गये हैंय पर्यावरण शुद्धि के लिए अपनी प्रकृति को अन्तर्मुखी करना होगा, अपनी लिप्साओं के विरुद्ध बगावत करनी होगी. अपनी अन्तरात्मा से प्यार करना होगा, सहजीविता और सहभागिता करनी होगी, प्रकृति के साथ तभी हमारा देवाराधन सफल होगा।
एक चर्चित भजन है- ‘हमने आंगन नहीं बुहारा कैसे आयेंगे भगवान…’. हमारे इस समाज में अनैतिकता, उन्माद, जाति, क्षेत्रवाद, भय, भूख, अतृप्त आकांक्षाओं, धनलिप्सा रूपी अनेक गंदगियां भर गई हैं, जो निरन्तर पीड़ा, पतन एवं पराभव को बढ़ा रही हैं. हमें इनकी सफाई करनी होगी और तेजी से करनी होगी, क्योंकि जीवन छोटा है और इसमें व्याप्त खुशियां अनन्त हैं. देव दीपावली जैसे पर्व उन खुशियों को ढूंढने के लिए ही मनाए जाते हैं. समय के बदलते मूल्यों में मानवीय मानदण्डों की महत्ता खो न जाये, इसका ध्यान रखना होगा. निजी स्वार्थ की कुटिल नीति को छोड़ना होगा. हमारे त्योहार इनकी मुक्ति हेतु हृदय परिवर्तन के पवित्र साधन हैं।
इसी धरा पर सदेह बहुत सारे लोगों ने देवत्व को प्राप्त किया है, हमारा उद्देश्य सदैव दुर्बुद्धि और दुःप्रवृत्तियों को विनष्ट करने के लिये रहा है. पूर्ण सामंजस्य से हम अविवेक को नष्ट करेंगे, विवेक रूपी दीपक जो परोपकारिता, सहजीविता, समता, समानता के भाव से दीपित होगा, उसे जलायेंगे. पथ विचलित होने वालों को सही पथ दिखाने में अपने आचरण का प्रकाश करेंगे, तभी सचमुच जीवन रूपी उपवन में दिया भी जलेगा और देवत्व का प्रवेश भी होगा।
-डॉ. आर. एन. त्रिपाठी काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के समाजशास्त्र विभाग में प्रोफेसर और उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) के सदस्य हैं।
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए हम उत्तरदायी नहीं है.)