S.I.R और ‘वन्दे मातरम्’ जैसे मुद्दों को बार-बार उछालना केवल भाजपा का राजनीतिक बहाना: विजय शंकर नायक
असल मुद्दा तो प्रधानमंत्री मोदी अपने ही घोषित 75 वर्ष के सिद्धांत से जनता का ध्यान भटकाना है
RANCHI: आदिवासी मूलवासी जनाधिकार मंच के केन्द्रीय उपाध्यक्ष सह पूर्व विधायक प्रत्याशी विजय शंकर नायक ने कहा की भारतीय जनता पार्टी द्वारा सार्वजनिक रूप से प्रचारित और अपनाए गए तथाकथित 75 वर्ष आयु-सिद्धांत को लेकर आज देश भर में गंभीर प्रश्न खड़े हो रहे हैं।
यह सिद्धांत कोई विपक्षी आरोप नहीं, बल्कि स्वयं भाजपा नेतृत्व द्वारा घोषित और लागू किया गया राजनीतिक मानदंड रहा है।
श्री नायक ने आगे कहा की यह सर्वविदित है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान तथा उसके बाद कई सार्वजनिक अवसरों पर यह बात कही थी कि भाजपा में 75 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद सक्रिय राजनीति और पदों से मार्गदर्शन की भूमिका में जाने की परंपरा है।
इसी सिद्धांत के आधार पर भाजपा के कई वरिष्ठ और संस्थापक नेताओं को सक्रिय राजनीति से बाहर कर दिया गया।
श्री नायक ने आगे कहा की 75 वर्ष के सिद्धांत से लालकृष्ण आडवाणी, डॉ. मुरली मनोहर जोशी, यशवंत सिन्हा,शांता कुमार , सुमित्रा महाजन जैसे नेताओं की राजनीति समाप्त हुई।
और इस सिद्धांत के चलते भाजपा के अनेक वरिष्ठ नेता धीरे-धीरे राजनीतिक हाशिये पर चले गए।
इन नेताओं की सक्रिय भूमिका भजपा में समाप्त होना इस बात का प्रमाण है कि यह सिद्धांत केवल कथन नहीं, बल्कि व्यवहार में लागू किया गया।
आज प्रश्न यह है कि जो सिद्धांत दूसरों पर लागू हुआ, क्या वही सिद्धांत प्रधानमंत्री स्वयं पर लागू होगा या नहीं?
वही सिद्धांत, जिस पर वरिष्ठ भाजपा नेताओं की राजनीति समाप्त कर दी गई, आज खुद प्रधानमंत्री पर लागू क्यों नहीं हो रहा?
अगर यह नियम सबके लिए था, तो प्रधानमंत्री पर भी लागू होना चाहिए। जनता अब केवल शब्दों से नहीं, बल्कि कर्म और जवाबदेही से जवाब चाहती है।
यह सिद्धांत केवल दूसरों को हटाने का औजार नहीं, बल्कि लोकतंत्र और नैतिक राजनीति की कसौटी है।”
श्री नायक ने यह यह भी बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जन्म 17 सितंबर 1950 को हुआ था और 17 सितंबर 2025 को उन्होंने 75 वर्ष की आयु पूर्ण कर ली है।
ऐसे में 75 वर्ष का सिद्धांत अब कोई भविष्य का प्रश्न नहीं, बल्कि वर्तमान की कसौटी बन चुका है। यदि 75 वर्ष का नियम वास्तव में राजनीतिक नैतिकता और संगठनात्मक लोकतंत्र का आधार है, तो उसका पालन सबसे पहले शीर्ष नेतृत्व द्वारा होना चाहिए।
लोकतंत्र में नेता से बड़ा उसका वचन होता है। यदि घोषित सिद्धांतों का पालन नहीं किया जाता, तो जनता का विश्वास राजनीति से उठने लगता है। देश आज यह जानना चाहता है कि क्या प्रधानमंत्री अपने ही बताए गए मानकों पर खरे उतरेंगे,
या यह सिद्धांत केवल राजनीतिक सुविधा तक सीमित था। यह मांग किसी व्यक्ति विशेष के विरोध में नहीं, बल्कि राजनीतिक नैतिकता, सार्वजनिक जवाबदेही और लोकतांत्रिक परंपरा के पक्ष में है। प्रधानमंत्री से अपेक्षा नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक नैतिकता की यह सीधी मांग है कि वे 75 वर्ष के सिद्धांत को पूरा करते हुए पद से हटें और स्वयं उदाहरण प्रस्तुत करें।
अन्यथा यह सिद्ध हो जाएगा कि यह सिद्धांत संगठन और नेताओं को हटाने का औजार था, न कि सभी पर समान रूप से लागू होने वाला नैतिक मानदंड।देश जानना चाहता है—क्या 75 वर्ष का सिद्धांत केवल लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और अन्य वरिष्ठ नेताओं के लिए था, या प्रधानमंत्री के लिए भी?
