वायु प्रदूषण से भारत में होती है सर्वा‎‎धिक मौतें, उसके बाद है अन्‍य कई देशों का नम्‍बर

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नई दिल्ली । दु‎निया भर के देशों की अपेक्षा वायु प्रदूषण से भारत में मौत का आंकड़ा सर्वा‎‎धिक है। जन्म के समय वजन कम होने से लेकर आंखें, फेफड़े, त्वचा और हृदय सहित लगभग सभी अंगों को नुकसान पहुंचाने वाली जहरीली हवा एक मीठा जहर बन गई है। इसके कारण देश में मौतों और बीमारियों का आंकड़ा बढ़ रहा है, और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य भी प्रभावित हो रहा है।

दरअसल, इससे संबंधित एक अध्ययन से पता चला है कि प्रदूषण मनुष्यों के लिए सबसे बड़ा अस्तित्व संबंधी खतरा बनकर उभरा है। इससे वैश्विक स्तर पर हर साल 90 लाख से अधिक लोगों की मौत हो रही है। अध्ययन से पता चला है कि दुनिया के अन्‍य देशों की तुलना में भारत में वायु प्रदूषण से अधिक लोगों की मौत होती है। इसके परिणामस्वरूप 2019 में भारत में 16.7 लाख मौतें हुईं जो उस साल दुनिया भर में इस कारण हुई मौतों का 17.8 प्रतिशत थी।

भारत की औसत पार्टिकुलेट मैटर सांद्रता 2019 में 70.3 माइक्रोग्राम/क्यूबिक मीटर थी जो दुनिया में सबसे अधिक है। मौजूदा वर्ष की बात करें तो शिकागो विश्वविद्यालय के ऊर्जा नीति संस्थान द्वारा 2023 के लिए अगस्‍त में जारी वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (एक्यूएलआई) रिपोर्ट से पता चला है कि वायु प्रदूषण से दुनिया के सबसे प्रदूषित शहर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में जीवन प्रत्‍याशा 11.9 साल कम हो गई है। शोधकर्ताओं ने कहा कि पीएम 2.5 भारत में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा खतरा है। हृदय रोगों और बाल एवं मातृ कुपोषण की तुलना में औसत भारतीय के जीवन में 5.3 वर्ष कम हो जाते हैं।

सर गंगा राम अस्पताल के बाल चिकित्सा विभाग के वरिष्ठ सलाहकार डॉ. धीरेन गुप्ता वायु प्रदूषण को धीमा जहर कहते हैं। उन्‍होंने बताया ‎कि यह अजन्मे, नवजात शिशुओं और सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करना शुरू कर देता है। इससे जन्म के समय वजन कम होता है, बड़े होने पर एलर्जी हो सकती है। यह न केवल फेफड़े, बल्कि हृदय को भी प्रभावित करता है; वायरल संक्रमण और एलर्जी को अधिक घातक बनाता है; फेफड़ों को स्थायी क्षति होती है; यहां तक कि गैर-दमा रोगियों को भी बार-बार खांसी हो सकती है; यह आंखों, मस्तिष्क, त्वचा, हृदय को प्रभावित करता है।

खराब हवा में सांस लेने का खामियाजा पांच साल से कम उम्र के बच्चों को सबसे अधिक भुगतना पड़ता है। 2016 की डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण से एक घंटे में करीब 12 मौतें होती हैं। बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण के कारण 2016 में पांच वर्ष से कम उम्र के 1,01,788 बच्चों की समय से पहले मृत्यु हो गई। घर के बाहर की हवा प्रदूषित होने से देश में हर घंटे लगभग सात बच्चे मर जाते हैं, और उनमें से आधे से अधिक लड़कियाँ हैं। डॉ. नांगिया ने बताया कि अन्य कमजोर समूहों में 60 वर्ष से अधिक आयु के वे लोग शामिल हैं जो पहले से ही बीमारियों से जूझ रहे होते हैं। इनके अलावा वे लोग जिन्‍हें पुराना हृदय रोग, लिवर की बीमारी, किडनी की बीमारी, मस्तिष्क की बीमारी या इस तरह की कोई भी बीमारी है। ऐसे लोग भी जो किसी प्रकार की इम्यूनोसप्रेसिव थेरेपी पर हैं।

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