एसबीआई महिला अधिकारी की आत्महत्या में तीन वरिष्ठ अधिकारियों पर गंभीर आरोप, जांच पर उठ रहे सवाल

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जबलपुर । एक महिला… एक पढ़ी-लिखी, उच्च पद पर कार्यरत महिला अधिकारी, जब अपने ही ऑफिस में उत्पीड़न से टूटकर शिकायत करती है और उसकी आवाज को कोई गंभीरता से नहीं लेता तो आखिर दोष किसका माना जाए? उस महिला ने न्याय की उम्मीद में शिकायत दर्ज की, बार-बार मदद की गुहार लगाई, पर वह न तो किसी पोर्टल पर सुनी गई और न ही उन अधिकारियों द्वारा, जिन्हें उसकी सुरक्षा और सम्मान का ध्यान रखना था। आज वह महिला फिर कभी कोई शिकायत नहीं करेगी… क्योंकि उसने खुद को समाप्त कर लिया है। लेकिन सवाल यह है कि क्या हमारा सिस्टम कभी इतना संवेदनशील होगा कि ऐसी त्रासदी दोबारा न हो? अब दोष किसे दें; उत्पीड़क को, अधिकारियों की उदासीनता को, या उस व्यवस्था को जो संवेदनशीलता खो चुकी है?

इन्हीं सवालों के बीच जबलपुर में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की सहायक प्रबंधक आरती शर्मा की आत्महत्या का मामला गहराता जा रहा है। उनके परिचित द्वारा पुलिस अधीक्षक (एसपी) और थाना सिविल लाइन को दी गई शिकायत ने बैंक की आंतरिक कार्यप्रणाली को लेकर कई गंभीर आरोपों को उजागर किया है। शिकायत में बैंक के तीन अधिकारियों पर लापरवाही, शिकायत को दबाने और आरोपी का संरक्षण करने तक के आरोप लगाए गए हैं।

गरिमा पोर्टल पर दर्ज हुई थी शिकायत, कार्रवाई में लापरवाही का आरोप

शिकायत के अनुसार, आरती शर्मा ने 29 मार्च 2025 को बैंक के गरिमा पोर्टल पर मानसिक और लैंगिक उत्पीड़न की शिकायत दर्ज कराई थी। यह शिकायत तत्कालीन डिप्टी मैनेजर अभय प्रसाद के खिलाफ थी। शिकायतकर्ता का कहना है कि यह शिकायत बैंक प्रबंधन तक 21 अप्रैल को पहुँची, लेकिन तब भी वरिष्ठ अधिकारी डीजीएम हरिराम सिंह और सीएमएचआर प्रशांत सिंह ने न तो कोई ठोस कदम उठाया और न ही प्रक्रिया के अनुरूप समय पर कार्रवाई की।

शिकायत में आरोप है कि इन अधिकारियों ने शिकायत को जानबूझकर दबाया और आरोपि‍त कर्मचारी को संरक्षण देते रहे। शिकायतकर्ता ने यह भी कहा है कि संवेदनशील शिकायत पर समय पर कार्रवाई न होने से आरती गहरे तनाव में थीं और अंततः 26 अप्रैल को उन्होंने आत्महत्या कर ली।

जांच को लेकर बैकडेटेड नोटिंग का आरोप

शिकायत का एक और गंभीर पहलू यह है कि आरती शर्मा की मृत्यु के बाद बैंक प्रबंधन की ओर से 30 अप्रैल की बैकडेटेड नोटिंग तैयार की गई, ताकि ऐसा लगे कि मामले की जांच पहले ही पूरी कर ली गई थी। शिकायतकर्ता का कहना है कि यह कृत्य अनैतिक ही नहीं कानूनन अपराध भी है, क्योंकि यह साक्ष्यों में हेरफेर के दायरे में आता है। इसी आधार पर शिकायतकर्ता ने पुलिस अधीक्षक से भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) की धारा 115, 61, 196, 74(2), 351 और 357 के तहत एफआईआर दर्ज करने की मांग की है।

एसबीआई मुख्यालय में सवालों से बचते दिखे अधिकारी

मामले पर बैंक का पक्ष जानने के लिए जब हमारी टीम एसबीआई मुख्यालय पहुँची, तो डीजीएम हरिराम सिंह उपलब्ध नहीं मिले। वहीं, सीएमएचआर प्रशांत सिंह से मुलाकात हुई, लेकिन उन्होंने कैमरे पर बयान देने से इंकार कर दिया और कहा, “हम इस पर बोलने के लिए अधिकृत नहीं हैं।” जब उनसे शिकायत से जुड़े दस्तावेज या पोर्टल की रिपोर्ट उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया, तो उन्होंने कोई भी दस्तावेज साझा नहीं किया। इससे बैंक की पारदर्शिता पर सवाल और गहराते हैं।

सीएमएचआर के बयानों में विरोधाभास

प्रशांत सिंह ने बातचीत के दौरान कई विरोधाभासी बातें कहीं, पहले कहा कि गरिमा पोर्टल में कोई शिकायत दर्ज ही नहीं हुई। जब मृतका की लिखित शिकायत का उल्लेख किया गया, तो कहा कि उसे गरिमा शिकायत मानकर POSH कमेटी ने जांच कर ली थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि आरोपी डिप्टी मैनेजर की वेतन वृद्धि रोकी गई थी। साथ ही मामले को दो कर्मचारियों का “आपसी विवाद” बताकर उसकी गंभीरता को कम करने की कोशिश की। उन्होंने मृतका के इंदौर ट्रांसफर की बात भी कही, लेकिन इसका कोई प्रमाण नहीं दिखाया। इन विरोधाभासों ने जांच प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर और अधिक संदेह पैदा कर दिया है।

बैंक प्रबंधन की भूमिका पर उठे सवाल

शिकायत इस बात पर गंभीर सवाल खड़े करती है कि यदि शिकायत 21 अप्रैल को प्रबंधन तक पहुंच चुकी थी, तो किसी भी अधिकारी ने पीड़ित महिला को तुरंत सुरक्षा, सहायता या सुनवाई क्यों नहीं दी? यदि POSH कमेटी ने जांच पूरी कर ली थी, तो उसकी रिपोर्ट और कार्रवाई की जानकारी क्यों साझा नहीं की गई? अगर आरोपी की वेतन वृद्धि रोकना पड़ा, तो यह संकेत है कि मामला सतही नहीं था, फिर भी शिकायतकर्ता को क्यों बताया गया कि पोर्टल पर कोई शिकायत नहीं है?

इस संबंध में हिस ने मनोवैज्ञानिक डॉ. राजेश शर्मा से बात की और जानना चाहा कि ऐसी परिस्‍थ‍िति में पीड़‍ित की मानसिक स्‍थ‍िति आखिर क्‍या हो सकती है, उन्‍होंने कई अन्‍य उदाहरण दोकर समझाया कि कार्यस्थल पर उत्पीड़न की शिकायतों पर ढिलाई बरतना कर्मचारी के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, साथ ही ये संस्थान की विश्वसनीयता भी कर्मचारी एवं उनके परिवारजन के मन से समाप्‍त करता है।

पुलिस अधीक्षक ने जांच के आदेश दिए

जबलपुर पुलिस अधीक्षक संपत उपाध्याय ने कहा, “मामले की शिकायत मिली है। निष्पक्ष जांच कराई जा रही है। जांच में जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ विधि सम्मत कार्रवाई की जाएगी।” पुलिस अब यह जांच रही है कि क्या शिकायत वाकई दबाई गई, क्या बैकडेटेड नोटिंग तैयार की गई, और क्या अधिकारियों ने कर्तव्य की उपेक्षा करके अपराध की श्रेणी में आने वाले कार्य किए।

उल्‍लेखनीय है कि आरती शर्मा की आत्महत्या कार्यस्थल पर महिला सुरक्षा, शिकायत निवारण तंत्र की संवेदनहीनता और संवेदनशील मामलों में अधिकारियों की जवाबदेही पर चुभता सवाल है। जब एक महिला अपनी सुरक्षा और सम्मान के लिए शिकायत करती है और व्यवस्था ही उसे जवाब नहीं देती तो ऐसे हादसे घटते हैं। अब पूरा शहर और बैंकिंग जगत पुलिस जांच के नतीजों और बैंक प्रबंधन की आगे की कार्रवाई का इंतजार कर रहा है।

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